नयी दिल्ली : क्रिकेट प्रशासक एन श्रीनिवासन को आज उस समय झटका लगा जब उच्चतम न्यायालय ने उन्हें हितों के टकराव के आधार पर बीसीसीआई का कोई भी चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया. न्यायालय ने इसके साथ ही आईपीएल कांड में सजा का निर्धारण करने के लिये पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की समिति गठित कर दी. न्यायालय के इस आदेश से चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रायल्य का भविष्य खतरे में पड सकता है.
न्यायालय ने बहुतप्रतीक्षित फैसला सुनाते हुये कहा कि चेन्नई सुपर किंग्स के अधिकारी और बीसीसीआई के निर्वासित अध्यक्ष के दामाद गुरुनाथ मयप्पन तथा राजस्थान रायल्स के सह-मालिक राज कुन्द्रा के खिलाफ सट्टेबाजी के आरोप साबित हो गये हैं जबकि श्रीनिवासन के खिलाफ पर्दा डालने के आरोप ‘साबित नहीं हुये.
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला की खंडपीठ ने बीसीसीआई के पदाधिकारियों को इंडियन प्रीमियर लीग और चैम्पियंस लीग में व्यावसायिक हित रखने की अनुमति देने संबंधी नियमों को निरस्त कर दिया. न्यायाधीशों ने कहा, श्रीनिवासन को आईपीएल टीम खरीदने की अनुमति देने संबंधी बीसीसीआई के नियमों में संशोधन अनुपयुक्त है क्योंकि क्रिकेट में हितों का टकराव बहुत भ्रामक स्थिति को जन्म देता है.
न्यायाधीशों ने कहा, श्रीनिवासन सहित कोई भी व्यक्ति, जिसका व्यावसायिक हित हो, बीसीसीआई में किसी भी पद के लिये अयोग्य होगा और व्यावसायिक हित के आधार पर यह अयोग्यता उस समय तक प्रभावी रहेगी जब तक ऐसे व्यावसायिक हित रहेंगे. न्यायालय ने बीसीसीआई से कहा कि वह छह सप्ताह के भीतर पदाधिकारियों के चुनाव के लिये वार्षिक आम सभा की बैठक आहुत करें.
न्यायमूर्ति ठाकुर ने फैसला सुनाते हुये कहा, आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी में मयप्पन की संलिप्तता की जांच पर पर्दा डालने के श्रीनिवासन के खिलाफ आरोप ‘साबित नहीं हुये’ और ‘कुल मिलाकर पर्दा डालने के मामले में श्रीनिवासन के खिलाफ सिर्फ संदेह का मामला है. न्यायालय ने कहा कि सिर्फ खिलाड़ी और टीम के अधिकारी ही नहीं बल्कि कदाचार के लिये फ्रैंचाइजी को भी दंडित करना होगा.
ऐसी स्थिति में चेन्नई सुपर किंग्स और आईपीएल का भविष्य खतरे में पड सकता है क्योंकि आईपीएल के नियमों में खिलाडियों, टीम के मालिकों और अधिकारियों के कदाचार की स्थिति में फ्रैंचाइजी रद्द करने का प्रावधान है. पूर्वप्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा की अध्यक्षता में न्यायाधीशों की समिति गठित करते हुये न्यायालय ने कहा, दुराग्रह को दूर करने और तथ्यपरक तथा पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित करने के लिये मयप्पन और कुन्द्रा को दी जाने वाली सजा के निर्धारण और टीमों के भाग्य का फैसला करने हेतु एक स्वतंत्र सिमति की आवश्यकता है.
इस समिति में शीर्ष अदालत के ही सेवानिवृत्त न्यायाधीश अशोक भान और आर वी रवीन्द्रन को शामिल किया गया है. यह समिति बीसीसीआई के मुख्य ऑपरेटिंग अधिकारी सुन्दर रमण के खिलाफ सट्टेबाजी के आरोपों की जांच करेगी और यदि वह दोषी पाये गये तो उन्हें सजा भी देगी.
न्यायालय ने समिति से कहा कि वह मयप्पन, कुन्द्रा और दूसरे व्यक्तियों को नोटिस जारी करे और छह महीने के भीतर अपना काम पूरा करके रिपोर्ट पेश करे. इसके साथ ही यह समिति बीसीसीआई में सुधार लाने के बारे में भी सिफारिशें देगी. शीर्ष अदालत ने कहा कि बीसीसीआई के नियम 6.2.4 में फरवरी, 2008 में किये गये संशोधन कानून की नजर में टिकाउ नहीं हैं और इन्हें निरस्त करना ही होगा. इसी संशोधन के जरिये क्रिकेट प्रशासकों को आईपीएल और चैम्पियंस लीग में टीमे खरीद कर इसमें व्यावसायिक हित बनाने की अनुमति प्रदान की गयी थी.
न्यायालय ने कहा कि श्रीनिवासन बीसीसीआई का मुखिया और इंडिया सीमेन्ट्स लि का प्रबंध निदेशक थे जो चेन्नई सुपर किंग्स की मालिक है और इसने हितों के टकराव की स्थिति पैदा कर दी. चेन्नई सुपर किंग्स की मालिक इंडिया सीमेन्ट्स में श्रीनिवासन के बहुत कम शेयर होने संबंधी दलील गुमराह करने वाली थी क्योंकि उनके परिवार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से इस कंपनी पर कहीं अधिक नियंत्रण है.
न्यायालय ने कहा कि किसी भी प्रशासक को खेल में व्यावसायिक हित रखने की अनुमति देने के लिये बीसीसीआई के नियमों में संशोधन ‘कर्तव्य भंग’ है और यह खेल की शुद्धता में बाधक है. न्यायाधीशों ने कहा, 6.2.4 संशोधन ही असली खलनायक है. बीसीसीआई ने आईपीएल प्रकरण की जांच के लिये समिति गठित करते समय निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया.
न्यायालय ने फैसला सुनाते हुये कहा कि उसने क्या बीसीसीआई राज्य है या नहीं जैसे विभिन्न मुद्दों पर सात प्रश्न तैयार किये थे. न्यायालय ने कहा कि हालांकि सांविधानिक संरचना के दायरे में बीसीसीआई ‘राज्य’ नहीं है लेकिन बीसीसीआई के कार्य ‘सार्वजनिक कार्य’ हैं और ऐसी स्थिति में वे संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के रिट अधिकार क्षेत्र में आते हैं.
न्यायालय ने न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट स्वीकार करते हुये कहा कि उसे मयप्पन और कुन्द्रा के टीम अधिकारी के रुप में सट्टेबाजी में शामिल होने के निष्कर्ष से असहमति व्यक्त करने की कोई वजह नजर नहीं आती है.
न्यायालय ने कहा कि हालांकि राज्य सरकार और केंद्र सरकार बीसीसीआई को पूर्ण स्वायतता देती है जो राष्ट्रीय टीम का चयन करती है और जिसका क्रिकेट पर पूर्ण नियंत्रण है लेकिन उसने (राज्य) क्रिकेट बोर्ड के अधिकारों को चुनौती देने के लिये कोई कानून बनाना उचित नहीं समझा.
–सुप्रीम कोर्ट ने दिया एन श्रीनिवासन को बड़ा झटका, कहा, नहीं लड़ सकेंगे बीसीसीआई अध्यक्ष पद का चुनाव
-पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढ़ा के नेतृत्व में एक तीन सदस्यीय कमेटी गठित की गयी है, जो इस बात का निर्णय लेगी कि राज कुंद्रा और गुरुनाथ मयप्पन को क्या सजा दी जाये.
–राजस्थान रॉयल्स के मालिक राज कुंद्रा और एन श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन पर सट्टेबाजी के आरोप साबित हुए.
–चेन्नई सुपरकिंग्स और राजस्थान रॉयल्स के भाग्य का फैसला बीसीसीआई नहीं बल्कि एक स्वतंत्र कमेटी करेगी : सुप्रीम कोर्ट
-सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बीसीसीआई के नियमों में संशोधन कर एन श्रीनिवासन को आईपीएल टीम खरीदने की इजाजत देना गलत
-सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि एन श्रीनिवासन पर जो आरोप लगाये गये हैं, वे साबित नहीं होते हैं.चेन्नई सुपरकिंग्स के मैचों में एन श्रीनिवासन की गहरी रुचि नजर आती है, उनके व्यवहार से संदेह उत्पन्न होता है, लेकिन उसे साबित नहीं किया जा सकता.
-सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि जांच के दौरान मुद्गल समिति ने हर नियम का पालन किया और पाया कि राज कुंद्रा के खिलाफ जो आरोप है, वे सत्य हैं.
-गुरुनाथ मयप्पन सट्टेबाजी में शामिल थे, लेकिन उस बात से श्रीनिवासन का कोई लेना-देना नहीं.
-कोई नियम हितों के टकराव की अनुमति नहीं देता है : सुप्रीम कोर्ट
-इंडिया सीमेंट्स में एन श्रीनिवासन की छोटी हिस्सेदारी की बात भ्रामक.
-खेल तभी तक खेल रहता है, जबतक कि वह किसी भी तरह धोखाधड़ी से परे हो.
-कोर्ट ने बीसीसीआई से पूछा, क्या वह अपनी विश्वसनीयता दावं पर लगा सकती है.