हितों के टकराव से बचने के लिए बीसीसीआई के सदस्य करेंगे करार
नयी दिल्ली : खेल की छवि साफ सुथरी बनाने के प्रयास के तहत बीसीसीआई ने सभी बोर्ड सदस्यों को सूचित किया है कि वे एक करार पर हस्ताक्षर करें जिसमें उन्हें घोषणा करनी होगी कि संबंधित क्रिकेट संघों के पदाधिकारी रहते हुए उनका कोई ‘हितों का टकराव’ नहीं होगा. दो राज्य संघों को पहले ही […]
नयी दिल्ली : खेल की छवि साफ सुथरी बनाने के प्रयास के तहत बीसीसीआई ने सभी बोर्ड सदस्यों को सूचित किया है कि वे एक करार पर हस्ताक्षर करें जिसमें उन्हें घोषणा करनी होगी कि संबंधित क्रिकेट संघों के पदाधिकारी रहते हुए उनका कोई ‘हितों का टकराव’ नहीं होगा.
दो राज्य संघों को पहले ही बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर से पत्र मिल गया है जिसमें उन्होंने सभी पदाधिकारियों को अपने व्यावसायिक हितों की घोषणा करने और करार पर हस्ताक्षर करने के निर्देश दिये हैं. यह भी पता चला है कि बीसीसीआई की विभिन्न उप समितियों के सभी अधिकारियों को भी यह पत्र भेजा गया है. अध्यक्ष, सचिव, संयुक्त सचिव और कोषाध्यक्ष को भी इस करार पर हस्ताक्षर करने होंगे.
हितों का टकराव नहीं संबंधित नियम में बीसीसीआई से किसी भी तरह के व्यावसायिक संबंध नहीं की बात शामिल होगी. इसमें आईपीएल टीमों में हिस्सेदारी, प्रायोजन या किसी खास खिलाड़ी के हितों को देखना भी शामिल है. एक राज्य संघ के वरिष्ठ अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, हां, हमें बीसीसीआई सचिव से आज पत्र मिला है. उसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि हाल के विवादों से बीसीसीआई की छवि खराब हुई है. उन्होंने कहा है कि हम सभी को अपने व्यावसायिक हितों के बारे में लिखित में जानकारी देनी होगी.
अधिकारी ने कहा, उन्होंने साफ लिखा है कि यदि पाया जाता है तो बीसीसीआई से जुडे किसी भी अधिकारी के हितों के टकराव के संकेत मिलते हैं तो उन्हें अपने पद पर रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी. समयसीमा दी गयी है लेकिन मैं इस बारे में कोई खुलासा नहीं करुंगा. मैं यह जानता हूं कि यह सभी बीसीसीआई अधिकारियों पर लागू होता है.
बीसीसीआई से अधिसूचना हासिल करने वाले एक अन्य अधिकारी ने कहा, इन बातों पर चर्चा हुई थी लेकिन सचिव ने बीसीसीआई को लेकर जनता की भावनाओं को लेकर चिंता जतायी थी. सभी सीनियर पदाधिकारी समझते हैं कि खेल का भरोसा बहाल करने के लिये कुछ ठोस कदम उठाने की जरुरत है.
हितों के टकराव का मसला 2008 में प्रमुखता से उठा था जब एन श्रीनिवासन जो तब बोर्ड के कोषाध्यक्ष थे, ने चेन्नई सुपरकिंग्स टीम को खरीदा था. श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन के सट्टेबाजी की गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण सीएसके की काफी छीछलेदारी हुई थी. उच्चतम न्यायालय से नियुक्त लोढा समिति ने मयप्पन को आजीवन निलंबित कर दिया था. हितों के टकराव का एक और प्रमुख मामला तब उठा था जब एक पूर्व भारतीय कप्तान समानान्तर प्लेयर्स मैनेजमेंट फर्म चला रहा था जबकि वह एक राज्य खेल संघ का अध्यक्ष और आईपीएल फ्रेंचाइजी का हिस्सा भी था.