बेंगलुरु : चेतेश्वर पुजारा ने फिर से रन बनाने शुरु कर दिये हैं और उन्होंने अपनी हाल की सफलता का श्रेय भारत ए टीम के कोच राहुल द्रविड की तकनीक को लेकर दी गयी सलाह को दिया. पुजारा को ऑस्ट्रेलियाई दौरे के दौरान अंतिम एकादश से बाहर कर दिया गया था. उन्होंने बल्लेबाजों के लिये मुश्किल पिचों पर श्रीलंका के खिलाफ आखिरी टेस्ट मैच में नाबाद 145 और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 77 रन की जानदार पारियां खेलकर शानदार वापसी की.
वह हालांकि अपनी सफलता के राज को विस्तार से नहीं बताना चाहते लेकिन उन्होंने खुलासा किया कि द्रविड ने उन्हें छोटा स्टांस (पांवों के बीच की दूरी को कम करना) अपनाने की सलाह दी थी. पुजारा ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘मुझे अपने स्टांस और पांवों के बीच की दूरी के बारे में पता है. अब मेरा थोडा छोटा स्टांस है और : दोनों पांवों के बीच दूरी थोड़ी कम हो गयी है.
मैंने श्रीलंका श्रृंखला से पहले इस बारे में अपने पिताजी : पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर अरविंद पुजारा : और राहुल भाई से चर्चा की और इस नतीजे पर पहुंचा कि मैं क्या करना चाहता हूं.’ दायें हाथ के इस बल्लेबाज ने इसके साथ ही स्टांस व्यक्तिगत चीज होती और किसी को भी कोई खास तकनीक अपनाने के लिये सहज होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक स्टांस के अपने फायदे और नुकसान हैं. इसमें खिलाडी कितना सहज महसूस करता है और उसकी तकनीक महत्व रखती है. इसलिए प्रत्येक खिलाड़ी का स्टांस अलग होता है. महत्वपूर्ण यह होता है कि आप इसमें कितने सहज महसूस कर रहे हैं. ‘
राजकोट के इस 27 वर्षीय क्रिकेटर के लिये सफलता का मूलमंत्र खुद पर विश्वास बनाये रखना है क्योंकि खराब फार्म ज्यादा लंबी नहीं चलती. पुजारा ने कहा, ‘‘ (अंतिम एकादश से बाहर करने के बाद) मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी नहीं कर पाउंगा. क्योंकि मेरी शुरुआत अच्छी हो रही थी और मैंने घरेलू क्रिकेट में काफी रन बनाये थे. इसलिए मुझे खुद पर भरोसा था.
कुछ अवसरों पर मैं उम्मीद के अनुरुप रन नहीं बना पाया लेकिन यह दौर चला गया और अब मैं फार्म में हूं. ‘ उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप सभी क्रिकेटरों पर गौर करो तो कोई ऐसा दौर रहा जब उन्होंने उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया लेकिन एक बार जब आप खुद पर विश्वास करना शुरु कर देते हो और अपने खेल पर कड़ी मेहनत करते हो, घरेलू या क्लब मैचों में रन बनाते हो तो आपका मनोबल बढ़ता है. ‘
मुरली विजय के अलावा वह पुजारा थे जिनका टर्निंग विकेट पर दक्षिण अफ्रीकी स्पिनरों के सामने फुटवर्क सही दिख रहा था. उन्होंने घरेलू मैचों में स्पिनरों के सामने अच्छे प्रदर्शन को इसका श्रेय दिया. उन्होंने कहा, ‘‘घरेलू क्रिकेट में खेलना और स्पिनरों के सामने रन बनाना अच्छा अनुभव रहा. इससे मुझे विकेटों को समझने में मदद मिली और मैं स्पिनरों के सामने अपनी रणनीति को समझता हूं. ‘ पुजारा ने अब तक 29 टेस्ट मैचों में 2326 रन बनाये हैं.
उन्होंने कहा कि गेंद की फ्लाइट का सही अनुमान लगाने और अच्छे फुटवर्क से ही वह स्पिनरों का प्रभावी ढंग से सामना कर पाये. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह सभी चीजों का मिश्रण था. यदि आप पिछले टेस्ट मैच पर गौर करो तो मेरा फुटवर्क वास्तव में अच्छा था और मैंने लेंथ का अनुमान भी सही लगाया. ये दोनों जरुरी होते हैं. यह जानना जरुरी है कि कौन सी गेंद अंदर आ सकती है और कौन सी गेंद आप छोड़ सकते हो और किस लाइन पर आपको खेलना है. ‘
पुजारा ने पहले टेस्ट मैच में विजय के साथ दो अर्धशतकीय साझेदारियां निभायी और उनका मानना है कि आक्रमण पर हावी होना महत्वपूर्ण होता है. उन्होंने कहा, ‘‘जब पहला विकेट गिरने के बाद मैं बल्लेबाजी के लिये आया तो साझेदारी निभाना महत्वपूर्ण था. हम दोनों स्पिनरों के खिलाफ अच्छा खेलते हैं.
आक्रामक खेलना है या रक्षात्मक हम जानते थे कि हम क्या कर रहे हैं. अधिकतर समय हम गेंदबाजों पर हावी रहे. हमने उनके स्पिनरों को अच्छी तरह से समझा और स्ट्राइक रोटेट की. हमने ढीली गेंदों पर स्कोर बनाया और ओवरों के बीच में एक दूसरे के साथ स्थिति का आकलन करते रहे. ‘ पुजारा ने चिन्नास्वामी स्टेडियम पर ही पांच साल पहले आस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में आगाज किया था और 72 रन की शानदार पारी खेली थी. उन्होंने कहा, ‘‘मेरे दिमाग में वह सुखद यादें अब भी ताजा है.
वह 2010 था और मैंने इस मैदान पर आस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया. यहां आकर अच्छा लगता है. मैंने न्यूजीलैंड के खिलाफ भी एक और टेस्ट मैच यहां खेला था. यह मेरे पसंदीदा मैदानों में से एक है. मैं इस मैच में भी यहां अच्छा प्रदर्शन करना चाहता हूं. ‘ इस बल्लेबाज ने हालांकि महेंद्र सिंह धौनी और विराट कोहली की कप्तानी शैली के बीच तुलना करने से इन्कार कर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘मैं कभी तुलना में विश्वास नहीं करता. दोनों कप्तानों की अपनी रणनीति होती है. मैं कुछ नहीं कहना चाहता. किसी भी कप्तान का एकमात्र लक्ष्य टीम को जीत दिलाना होता है. ‘