ऐसी विदाई तो माराडोना पेले को नसीब नहीं हुई

।। अमिताभ कुमार ।। ताजमहल पैलेस होटल, मुंबई. इस सुबह जब मैं अपना नाश्ता ले रहा था, महेंद्र सिंह धौनी रेस्तरां के ग्राउंड फ्लोर पर आये. प्रज्ञान ओझा आये. फिर शमी. विराट कोहली और दूसरे बाद में आये. उनकी आंखों से ऐसा लग रहा था कि वे अभी नींद में से उठ कर आ रहे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 16, 2013 4:11 AM

।। अमिताभ कुमार ।।

ताजमहल पैलेस होटल, मुंबई. इस सुबह जब मैं अपना नाश्ता ले रहा था, महेंद्र सिंह धौनी रेस्तरां के ग्राउंड फ्लोर पर आये. प्रज्ञान ओझा आये. फिर शमी. विराट कोहली और दूसरे बाद में आये. उनकी आंखों से ऐसा लग रहा था कि वे अभी नींद में से उठ कर आ रहे हों. लेकिन सचिन तेंडुलकर नहीं आये. कॉरिडोर में, मैं उस विंडो डिसप्ले के सामने से गुजरा, जिसमें होटल के प्रसिद्ध अतिथियों की तसवीरें लगी थीं. प्रधानमंत्री नेहरू, क्वीन एलिजाबेथ, जॉन लेनन, बराक ओबामा, लेखक वीएस नायपॉल. और विश्व कप उठाये हंसते हुए सचिन की हस्ताक्षर युक्त तसवीर.

जब सुबह में खिलाड़ियों ने नाश्ता कर लिया, तब अंत में सचिन तेंडुलकर लिफ्ट से बाहर निकले. वह टीम बस की ओर गये. उनके कानों पर चांदी के रंग का इयर फोन लगा हुआ, तनाव के साथ उनके होंठों पर हल्की से मुस्कुराहट. उनके बायें कंधे से काले रंग के बैग में बैट टंगा था. अब तक भीड़ चुपचाप थी, बस में जानेवाले एक-एक खिलाड़ी को गौर से निहार रही थी. तभी आवाज आने लगी. सा.चिन, सा.चिन. हाथ हिलाते हुए.

पिछली रात, मैंने सचिन के बायोग्राफर (जीवनी लेखक) बोरिया मजूमदार से बात की थी. वह मुझे यह बताना चाहते थे कि यह एक अभूतपूर्व विदाई (फेयरवेल) है. किसी भी खेल में, यहां तक कि पेले और माराडोना को भी इस तरह की विदाई नसीब नहीं हुई थी.सचिन तेंडुलकर भावनात्मक शिखर पर विदाई ले रहे हैं. मैंने पूछा क्यों? मजूमदार ने कहा, ‘ सचिन तेंडुलकर एक क्रिकेटर नहीं हैं, वह एक विचार हैं. एक ऐसा विचार जिसे भारतीय दिल से प्यार करते हैं और उसका जश्न मनाते हैं. वह एक स्वभाव हैं.’

मैं टाटा साहित्यिक महोत्सव में अतिथि के रूप में मुंबई आया हूं. यह मेरा सौभाग्य है कि महोत्सव का पहला दिन भी तेंडुलकर के अंतिम टेस्ट मैच का पहला दिन था. जब मैंने बुधवार की रात में होटल में प्रवेश किया, रिसेप्शन में पहली चीज, जिस पर मैंने गौर किया, वह था एक बड़ा-सा क्रिकेट बैट और बीच में फूलों से बनी एक आकृति. बैट पीले फूलों की पंखुड़ियों से बने थे, जबकि गेंद टहटहे लाल रंगों की.

लेकिन जब अपने कमरे में गया, मैं दूसरी यादों में खो गया. एक लंबा कॉरीडोर, इसकी मार्बल से बनी फर्श, दीवारों पर टंगी महंगी कलाकृतियां. रह-रह कर पत्थर की कलाकृतियां और हरे पौधों वाले गमलों की तसवीर मस्तिष्क में घूम रही थी. इस दृश्य को मैंने पहले देखा था. संभवत: आपने भी इस दृश्य को देखा होगा. पांच साल पहले नवंबर की वह खूनी रात, जैसा कि सीसीटीवी फुटेज में दर्ज है- टी शर्ट पहने युवा, बेसबॉल वाइजर लिये, पर तुरंत ही हाथों में उनके राइफल लहरा रहे थे. बड़े स्क्रीन पर मैंने ग्रेनेड धमाकों से लगी आग और उससे उठते धुएं के बीच अतिथियों और होटल स्टाफ के शवों को देखा था. उस फ्लोर पर जिस तरह का मार्बल लगा था, वह अब भी मेरे जेहन में कैद है.

मैंने अपना सामान पहुंचाते स्टाफ से पूछा कि क्या वह उस रात यहां था? उसने कहा, हां. वह होटल की उसी विंग में था, जिस जगह हम खड़े थे. उसने मुङो बताया कि इस घटना के बाद कई रातों तक उसे लगता कि उसके कानों में बंदूकों की आवाज गूंज रही है और उसकी नींद टूट जाती. जब मैंने टीवी खोला, तो पहले चैनल पर एक वीडियो दिखा, जिसमें दिखाया गया कि आग लगने की स्थिति में बाहर निकलने के कौन-कौन से रास्ते हो सकते हैं. ‘हमारे लिये आपकी सुरक्षा महत्वपूर्ण है.’

लेकिन आज कॉरीडोर में केवल सा.चिन, सा.चिन की आवाजें आ रही थीं. मेरा मानना है कि सचिन जो भी हैं और हम उनके प्रति जैसा विचार रखते हैं, ये सारे गुण मूलत: भारतीय हैं. कल, मैच के पहले दिन, सचिन की मां अपने बेटे का पहला मैच देखने आयीं. रजनी तेंडुलकर ने इससे पहले अपने बेटे का मैच नहीं देखा था. वह घर पर ही रह कर प्रार्थना करतीं. लेकिन 200 वें टेस्ट मैच में वह अंतत: आयीं. दिन खत्म होने पर, उन्हें स्टेडियम के बड़े परदे पर दिखाया गया. एक वृद्ध, कमजोर-सी दिखने वाली महिला, व्हील चेयर पर बैठी हुई. उनके दिखाई देने पर 30 हजार दर्शक उनके सम्मान में उठ खड़े हुए. उत्तर अमेरिका और यूरोप में दर्शक कभी एक खिलाड़ी के माता-पिता को इस तरह का सम्मान नहीं देंगे.

इस दृश्य पर मेरी क्या प्रतिक्रिया हुई? प्रत्येक भारतीय में एक निजी सचिन है. एक सचिन, जिस पर हम अपनी इच्छाएं, अपना भय, अपनी कल्पनाएं उकेरते हैं. जब मैंने टीवी पर यह सुना कि उन्होंने स्टेडियम में एक रैंप (ढलाननुमा सतह) बनवाने का अनुरोध किया है, ताकि उनकी मां के व्हील चेयर को यहां लाया जा सके, तब मुङो लगा कि वह वैसे ही बेटे थे, जैसा मैं चाहता था. जैसा कि मैंने कहा, मैं एक साहित्यिक महोत्सव में भाग लेने मुंबई आया था, लेकिन अब बिना पटना गये, जहां मेरे माता-पिता हैं, मैं अमेरिका स्थित परिवार के पास लौट जाऊंगा. सचिन मुझसे बेहतर पुत्र हैं.

कुछ क्षण पहले, मैंने अंतिम बार उन्हें आउट होते देखा. मेरी इच्छा थी कि वह शतक जड़ते. ऐसा इसलिए कि वह अपनी आंखों से ऊपर की ओर देखते और शांत भाव से अपने पिता से प्रार्थना करते.

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