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2015 : एक खालीपन के बीच बनी रहेंगी धौनी से उम्मीदें
-प्रवीण सिन्हा- वरिष्ठ खेल पत्रकार क्रिकेट में इस वर्ष विश्व कप के अलावा कोई बड़ा आयोजन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं हुआ है, जिसमें भारत का दबदबा रहा हो, लेकिन टेनिस, बैडमिंटन समेत कई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने कामयाबी के परचम लहराये हैं. देश में क्रिकेट की लोकप्रियता के वर्चस्व के बीच सानिया मिर्जा और […]
-प्रवीण सिन्हा-
वरिष्ठ खेल पत्रकार
क्रिकेट में इस वर्ष विश्व कप के अलावा कोई बड़ा आयोजन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं हुआ है, जिसमें भारत का दबदबा रहा हो, लेकिन टेनिस, बैडमिंटन समेत कई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने कामयाबी के परचम लहराये हैं.
देश में क्रिकेट की लोकप्रियता के वर्चस्व के बीच सानिया मिर्जा और सायना नेहवाल के करिश्मे से लोगों को इन खेलों का एक नया रूप देखने काे मिला. हॉकी में ओलिंपिक में क्वालिफाइ करने के बाद से आगामी आयोजन के लिए हमारी उम्मीदें बढ़ गयी हैं. बीत रहे साल में भारतीय खिलाड़ियों द्वारा हासिल उपलब्धियों और खेल जगत के लिए हासिल सबक-संकेत पर नजर डाल रहा है आज का वर्षांत विशेष…
नये साल का आगाज होने को है. ऐसे में यह चर्चा होनी लाजिमी है कि खेल और खिलाड़ियों के लिहाज से बीत रहे वर्ष में हमने क्या खोया, क्या पाया और आनेवाले साल में हमारे सामने कौन सी नयी चुनौतियां होंगी. इस साल अन्य क्षेत्रों की तरह भारतीय खेल जगत में भी कई एसे मौके आये, जिससे खेल-प्रेमियों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया, तो कई एसे भी मौके आये, जिन्हें याद कर एक खालीपन-सा अहसास होता है.
क्रिकेट : धौनी ही रहे सबसे धुरंधर
बात भारतीय खेल की हो तो सबसे पहले क्रिकेट जेहन में आता है, क्योंकि यह खेल देश में एक जुनून की तरह खेल-प्रेमियों के दिलोदिमाग में बस गया है. 2015 विश्व कप क्रिकेट में भारतीय टीम खिताब से दो कदम दूर रह गयी, लेकिन क्रिकेट जगत में मची हलचल के बीच टीम का प्रदर्शन बुरा नहीं माना जायेगा. फिर साल का समापन टीम ने टर्निंग विकेट पर दक्षिण अफ्रीका को टेस्ट सीरीज में 3-0 से धोकर किया. क्रिकेट-प्रेमी इसे एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं.
रिकॉर्ड के लिहाज से इस उपलब्धि पर गर्व करना भी जायज है. लेकिन देश के सर्वश्रेष्ठ कप्तान महेंद्र सिंह धौनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भारतीय टीम में उनकी कमी शिद्दत से महसूस की गयी.
श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शानदार प्रदर्शन के बावजूद टेस्ट क्रिकेट में धौनी की अनुपस्थिति और टीम में एक खालीपन का खूब अहसास हुआ. धौनी ने अपनी करिश्माई कप्तानी में टीम को जिस तरह से शिखर पर पहुंचाया, भारतीय टीम उस राह पर लंबे समय तक चल पायेगी, इस बात का दावा नहीं किया जा सकता है.
हालांकि धौनी ने अब भी वनडे और ट्वेंटी-20 में भारतीय टीम की कमान संभाल रखी है, लेकिन भारतीय क्रिकेट में लगता नहीं है कि सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है. धौनी ने साहसिक फैसले करते हुए तमाम विपक्षी टीमों को अपनी धरती और विदेशों में चुनौती दी. उन्होंने टीम में जीत की आदत डाली. कहने को भारतीय टेस्ट टीम अब भी जीत रही है, लेकिन मैच की पहली ही गेंद से टर्न लेते विकेट पर विपक्षी टीम को हराने से भारतीय क्रिकेट का कितना भला होगा, यह वक्त बतायेगा.
2016 में ट्वेंटी-20 विश्व कप पर रहेंगी नजरें
वर्ष 2016 में भारत में ट्वेंटी-20 विश्व कप का आयोजन होना है और एक बार फिर क्रिकेट-प्रेमियों की धौनी से ही उम्मीदें बंधेगी कि वह भारतीय टीम की नैया पार लगा दें. धौनी में एक कुशल कप्तान का नैसर्गिक गुण है और वह नये वर्ष की शुरुआत में आस्ट्रेलिया दौरे पर सीमित ओवरों के मैच में हर बार की तरह टीम को एकजुट रखने की हरसंभव कोशिश करेंगे.
इसके बाद भारतीय टीम श्रीलंका के खिलाफ भी सीमित ओवरों के मैच खेलेगी. धौनी अगर टीम को एकजुट रखते हुए खिलाड़ियों से शानदार प्रदर्शन कराने की अपनी कोशिश में सफल रहे, तो भारतीय टीम एक बार फिर ट्वेंटी-20 विश्व कप का ताज पहनने में सफल हो सकती है.
महिला खिलाड़ियों का रहा दबदबा
बैडमिंटन : शीर्ष पर सायना
हैदराबादी बाला सायना नेहवाल ने सिर्फ तीन इंच की छोटी सी शटल के दम पर जिस एवरेस्ट को फतह किया है, वह न केवल दूसरे बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए एक मिसाल है, बल्कि भारतीय युवाओं के लिए बेहतरीन प्रेरणा भी है. बैडमिंटन कोर्ट को ही अपनी जिंदगी बना चुकीं सायना ने 2015 विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीत इतिहास रचा. लंदन ओलिंपिक की कांस्य पदक विजेता सायना ने वर्ष 2015 में विश्व वरीयता क्रम में पहला स्थान हासिल करते हुए भारतीय परचम लहराया. इन्हीं उपलब्धियों के दम पर सायना नेहवाल अर्जुन पुरस्कार, पद्मश्री और राजीव गांधी खेल रत्न जैसे सम्मान हासिल कर चुकी हैं.
सायना की जीत की अदम्य इच्छाशक्ति, खेल के प्रति प्रतिबद्धता और एकाग्रता ने उन्हें अन्य खिलाड़ियों से अलग एक विशिष्ट पहचान दी है. एशियाई खेल और ओलिंपिक में सायना कांस्य पदक जीतनेवाली देश की इकलौती महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैं.
विश्व बैडमिंटन पर लंबे समय से राज कर रहे चीन का वर्चस्व साइना ने ही सबसे पहले तोड़ा. जिन चीनी खिलाड़ियों से खेलने में अन्य खिलाड़ी घबराती थीं, सायना से उन चीनी खिलाड़ियों में खौफ पैदा हो गया है. सायना ने भारतीय महिला बैडमिंटन को एक नयी ऊंचाई दी है, जिसे आज दुनिया सलाम कर रही है.
टेनिस छायी रहीं सानिया
इस बीच सानिया मिर्जा ने दर्जनों खिताब सहित विश्व टेनिस के चारों ग्रैंड स्लैम यानी आस्ट्रेलियन ओपन, फ्रेंच ओपन, विंबलडन और यूएस ओपन का युगल खिताब अपने नाम कर भारतीय महिला टेनिस में इतिहास रचा. महिला युगल टेनिस में स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस के साथ जोड़ी बना कर सानिया ने धूम मचा रखी है, जिसकी वजह से आज सारी दुनिया उन्हें सलाम कर रही है. इसी तरह सायना नेहवाल और पीवी सिंधू ने महिला बैडमिंटन में एक के बाद एक सफलताएं अर्जित करते हुए एक नये युग की शुरुआत की. इन दोनों ने भारतीय महिला बैडमिंटन जगत को एक दिशा दी है, जो शिखर की ओर जाती है.
किसी भी खेल में सफलताएं हासिल करना एक बड़ी बात होती है और सफलताओं के बीच इतिहास रच देना एक नये युग की शुरुआत. वर्ष 2015 के विंबलडन टेनिस में ठीक एेसा ही किया लिएंडर पेस, सानिया मिर्जा और युवा सुमित नागल ने. इन तीनों ने टेनिस जगत के सबसे पुराने, सबसे प्रतिष्ठित विंबलडन ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में खिताब जीत कर इतिहास रच दिया. भारतीय टेनिस में एेसा पहले कभी नहीं हुआ था और लगता नहीं है कि भविष्य में एेसा कभी होगा. अंतरराष्ट्रीय टेनिस जगत में भारतीय परचम लहरा रहे 42 वर्षीय लिएंडर पेस ने मार्टिना हिंगिस के साथ मिश्रित युगल खिताब जीता, जो उनके चमकदार करियर का 16वां ग्रैंड स्लैम खिताब था.
दूसरी ओर सानिया मिर्जा लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अकेले दम भारतीय महिला टेनिस की चुनौती पेश करती रही हैं.
पर 2015 में उनका पहली बार विंबलडन महिला युगल टेनिस खिताब जीतने का सपना पूरा हुआ. सानिया ने भी मार्टिना हिंगिस के साथ ही युगल खिताब जीता. पेस और सानिया के अलावा राजधानी की तंग गलियों से निकलते हुए सुमित नागल ने जूनियर वर्ग का युगल खिताब जीत इतिहास रचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.
कायम है पेस का दमखम : 42 वर्षीय लिएंडर पेस के लिए एेसा लगता है, जैसे उनकी उम्र ठहर सी गयी है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ वह निरंतर नयी ऊंचाइयों को छू रहे हैं. 1996 अटलांटा ओलिंपिक में पुरुष एकल का कांस्य पदक जीत पेस ने देश का महानतम टेनिस खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर लिया था. यही नहीं 1992 से 2012 तक लगातार ओलिंपिक खेलों में भाग लेते हुए लिएंडर पेस ने एक और इतिहास रच दिया.
वह भारत के इकलौते खिलाड़ी और दुनिया के इकलौते एेसे टेनिस खिलाड़ी हैं, जिन्होंने लगातार छह ओलिंपिक खेलों में भाग लिया है. अगर कोई राजनीति आड़े न आये और सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो पद्मश्री (2001) से सम्मानित पेस अगले साल रियो ओलिंपिक में सानिया मिर्जा के साथ पदकों के सबसे तगड़े दावेदार के रूप में भाग लेते नजर आयेंगे.
सानिया-हिंगिस की शानदार जोड़ी
दूसरी ओर हिंगिस के साथ मार्च, 2015 में जोड़ी बनाने के बाद सानिया ने लगातार शानदार प्रदर्शन करते हुए विंबलडन और यूएस ओपन ग्रैंड स्लैम खिताब सहित कुल 10 खिताब जीते.
सानिया मिर्जा और मार्टिना हिंगिस ने साथ खेलते हुए विश्व वरीयता क्रम में नंबर एक स्थान हासिल कर लिया है. सानिया इसे अपना सौभाग्य मानती हैं और उन्हें हिंगिस के साथ खेलना बेहद पसंद है.
हिंगिस के पास जहां जबरदस्त ग्राउंड स्ट्रोक और बैकहैंड शॉट हैं, वहीं चार बार की ग्रैंड स्लैम चैंपियन सानिया का फोरहैंड शॉट बकौल उनकी जोड़ीदार इतनी दमदार है कि उसे रिटर्न करना किसी के लिए भी आसान नहीं होता. इन दोनों की बैकहैंड और फोरहैंड की विशेषज्ञता के सामने प्रतिद्वंद्वी जोड़ी असहाय सी नजर आती है. इस स्थिति में 28 वर्षीय सानिया का स्वर्णिम अध्याय अभी आगे भी जारी रहने की पूरी उम्मीद है.
हॉकी : टीम ने दिखाया दम
हॉकी में भारत का प्रदर्शन कुल मिलाकर अच्छा रहा. भारतीय हॉकी टीम ने हॉकी वर्ल्ड लीग फाइनल में कांस्य पदक जीत रियो ओलिंपिक की दमदार तैयारी का संकेत दे दिया. इस लीग से पहले भारतीय टीम ने आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए आभास करा दिया था कि उसे हल्के तौर पर नहीं लिया जा सकता. सरदार सिंह ने नेतृत्व में भारतीय टीम ने आक्रामक खेल का प्रदर्शन करते हुए रियो ओलिंपिक के लिए उम्मीद की किरणें जगा दी हैं.
गोल्फ : सितारों से हुई चमक कायम
पानीपत के 11 वर्षीय शुभम ने 2015 में अमेरिका में आयोजित जूनियर विश्व चैंपियनशिप और जूनियर अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप जीत इतिहास रचा. सीमित संसाधनों के बीच शुभम ने छोटी सी उम्र में यूरोपीय खिलाड़ियों को मात देकर साबित कर दिया है कि वह भारतीय गोल्फ की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने में सक्षम हैं.
इसी तरह बेंगलुरू की स्कूली छात्रा अदिति अशोक ने मोरक्को के माराकेश में कुल 23 अंडर पार 265 स्कोर कर न केवल महिला यूरोपीय टूर खिताब जीता, बल्कि यूरोपीय स्कूल फाइनल क्वालीफाइंग स्पर्धा जीतने वाली भारत की पहली महिला गोल्फर बनने का एेतिहासिक कारनामा भी कर दिखाया.
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