क्रिकेट में उठापटक, सानिया-साइना के दबदबे के लिये याद रहेगा वर्ष 2015

नयी दिल्ली : भारतीय क्रिकेट में मैदान के अंदर और बाहर वर्ष 2015 में बदलाव का दौर दिखा लेकिन टेनिस स्टार सानिया मिर्जा और चोटी की बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने अगले साल के ओलंपिक के लिये अपनी पुख्ता तैयारियों का सबूत पेश करने के साथ ही दिखाया कि क्रिकेट से इतर अन्य खेलों में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 27, 2015 3:53 PM

नयी दिल्ली : भारतीय क्रिकेट में मैदान के अंदर और बाहर वर्ष 2015 में बदलाव का दौर दिखा लेकिन टेनिस स्टार सानिया मिर्जा और चोटी की बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने अगले साल के ओलंपिक के लिये अपनी पुख्ता तैयारियों का सबूत पेश करने के साथ ही दिखाया कि क्रिकेट से इतर अन्य खेलों में भी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं.

मैदान के अंदर और बीसीसीआई में चल रही उठापटक के कारण वर्ष भर में हालांकि सुर्खियों में क्रिकेट ही रहा. चाहे वह विराट कोहली का आस्ट्रेलियाई श्रृंखला के बीच में टेस्ट कप्तानी हासिल करना हो या फिर एन श्रीनिवासन का कई प्रयासों के बावजूद बीसीसीआई और आईसीसी पद से हटना, क्रिकेट में निसंदेह नाटकीय उठापटक चलता रहा. बायें हाथ के तेज गेंदबाज 37 साल के जहीर खान और आक्रामक बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने भी इस साल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लिया. इन दोनों ने 14 साल भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया.
क्रिकेट से इतर सानिया ने सफलता की नित नई कहानियां लिखी. उन्होंने कुल दस खिताब जीते जिनमें दो ग्रैंडस्लैम शामिल हैं. उन्होंने स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस के साथ जोड़ी बनायी. इन दोनों ने वर्ष में 55 मैच जीते और केवल सात गंवाये. इससे ये दोनों महिला युगल में विश्व में नंबर एक जोड़ी भी बन गयी. पुरुषों में लिएंडर पेस ने हिंगिस के साथ मिलकर तीन ग्रैंडस्लैम जीतकर खुद का रुतबा बनाये रखा.
यदि टेनिस कोर्ट पर सानिया का दबदबा रहा तो साइना ने बैडमिंटन कोर्ट पर जलवा बरकरार रखा. वह विश्व की नंबर एक शटलर बनने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी. वह हालांकि कम समय तक इस स्थान पर रह पायी और चोटों के कारण उनकी रैंकिंग पर असर पड़ा. लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता ने दो खिताब जीते तथा वह आल इंग्लैंड और विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी भी बनी.
अन्य खेलों में निशानेबाजों ने ओलंपिक कोटा हासिल किया और अब रियो डि जनेरियो में पदक के लिये निगाह उन पर टिकी रहेगी. भारत में खेल प्रशासन फिर से अच्छी तरह से व्यवस्थित नहीं रहा. पुरुष और महिला खिलाड़ी जहां रियो ओलंपिक की तैयारियों में जुटे हैं वहीं कुछ खेलों विशेषकर मुक्केबाजी अंदरुनी राजनीति का शिकार रहा. इस खेल का असल में राष्ट्रीय महासंघ भी नहीं है.
विजेंदर सिंह पेशेवर मुक्केबाज बने और उन्होंने अब तक अपने तीनों मुकाबले नाकाआउट में जीते हैं. इस साल क्रिकेट श्रृंखला की शुरुआत आस्ट्रेलिया से हुई. पिछले साल मेलबर्न टेस्ट के बाद महेंद्र सिंह धौनी के संन्यास लेने के बाद से टेस्ट टीम की कमान संभाल रहे कोहली ने बेहतरीन तरीके से भारतीय टीम की अगुआई की. भारत ऑस्ट्रेलिया में हार गया लेकिन दिल्ली के बल्लेबाज कोहली ने श्रीलंका में पहली बार पूर्ण श्रृंखला में टेस्ट टीम की कप्तानी करते हुए उसे 2-1 से जीत दिलाई जो टीम इंडिया की इस देश में 22 साल बाद श्रृंखला में पहली जीत है.
कोहली की अगुआई में युवा टीम ने इसके बाद घरेलू सरजमीं पर दुनिया की नंबर एक टीम दक्षिण अफ्रीका को 3-0 से हराकर इतिहास रचा. यह दक्षिण अफ्रीका की विदेशी सरजमीं पर नौ साल में पहली हार है. चार मैचों की इस श्रृंखला के दौरान हालांकि पिच को लेकर काफी चर्चा हुई. आईसीसी ने नागपुर की पिच को ‘खराब’ करार दिया और आधिकारिक चेतावनी भी दी.
जगमोहन डालमिया के निधन के बाद शशांक मनोहर दुनिया के सबसे ताकतवर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई के अध्यक्ष बने और 2013 के स्पाट फिक्सिंग मसले के सामने आने के एक साल से अधिक समय बाद एन श्रीनिवासन को बाहर होना पड़ा. उन्हें आईसीसी चेयरमैन का पद भी छोड़ना पड़ा और उनकी जगह मनोहर को यह पद सौंपा गया. इंडियन प्रीमियर लीग में मैदान के अंदर और बाहर ड्रामा जारी रहा. चेन्नई सुपरकिंग्स और राजस्थान रायल्स फ्रेंचाइजियों को उनके अधिकारियों गुरुनाथ मयप्पन और राज कुंद्रा के 2013 सत्र के दौरान सट्टेबाजी से जुडी गतिविधियों में शामिल रहने के कारण इस लुभावनी टी20 लीग से दो साल के लिए निलंबित कर दिया गया.
सीएसके के पूर्व टीम प्रिंसिपल मयप्पन और रायल्य के सह मालिक कुंद्रा पर सट्टेबाजी में शामिल होने और आईपीएल तथा खेल की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए आजीवन निलंबन लगाया गया. न्यायमूर्ति आरएम लोढा की अगुआई वाली समिति ने अधिकारियों और टीमों को यह सजा सुनाई गई.
इन दो टीमों के खिलाड़ी हालांकि आईपीएल का हिस्सा रहेंगे और फिलहाल कुछ खिलाडियों को दो नयी टीमों पुणे और राजकोट ने चुना. पुणे ने धौनी जबकि राजकोट ने सुरेश रैना को सबसे पहले चुना जो अब तक सीएसके का अहम हिस्सा रहे हैं और इस टीम के साथ तीन बार खिताब जीत चुके हैं.
अन्य खेलों की बात करें तो भारत के युवा निशानेबाजों ने इस साल स्वदेश और विदेशी सरजमीं पर बेहतरीन प्रदर्शन करके सुर्खियों बटोरी जबकि दिग्गज निशानेबाजों में से सात ने रियो ओलंपिक के लिये कोटा स्थान हासिल किया. ओलंपिक चैम्पियन अभिनव बिंद्रा, पिस्टल निशानेबाज जीतू राय, गगन नारंग और अपूर्वी चंदेला ने अगले साल रियो द जनेरियो में होने वाले ओलंपिक खेलों के लिये कोटा स्थान हासिल किया.
आम तौर पर भारतीय निशानेबाजी की कमजोर कड़ी माने जाने वाले स्कीट वर्ग में भी मेराज अहमद खान ने भारत के लिये पहला ओलंपिक कोटा पाया. अटलांटा ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता एनियो फाल्को के मार्गदर्शन में भारत के स्कीट निशानेबाजों ने अच्छा प्रदर्शन किया है. भारतीय हाकी टीम ने वर्ष 2015 में मैदान के बाहर की घटनाओं से अक्सर प्रभावित होने के बावजूद मैदान के अंदर कुछ विशिष्ट उपलब्धियां हासिल की. इस उतार चढ़ाव वाले वर्ष में जहां खिलाडियों ने कुछ ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की वहीं कोच पाल वान ऐस को बाहर करने और गुरबाज सिंह के निलंबन के कारण विवाद भी पैदा हुए.
भारतीय महिला हाकी टीम ने जहां 36 साल बाद ओलंपिक में वापसी की वहीं पुरुष टीम ने हॉकी विश्व लीग फाइनल में तीसरा स्थान हासिल करके किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में पदक नहीं जीत पाने के 33 साल के मिथक को तोड़ा. ये दोनों भारतीय हाकी की बड़ी उपलब्धियां रही लेकिन वान ऐस की रुखी विदाई और अनुभवी मिडफील्डर गुरबाज का नौ महीने के लिये निलंबन से भारतीय हाकी के लिये यह वर्ष घटनाप्रधान बन गया.
एंटवर्प में हॉकी विश्व लीग (एचडब्ल्यूएल) सेमीफाइनल में भारत का प्रदर्शन उतार चढ़ाव वाला रहा. वह तीसरे-चौथे स्थान के लिये खेले गये मैच में ब्रिटेन से 1-5 से हारकर तीसरे स्थान पर रहा. लेकिन सबसे बड़ा विवाद भारत के एंटवर्प से लौटने के बाद हुआ. वान ऐस की हाकी इंडिया के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा के साथ बहस के बाद पद से बर्खास्त कर दिया गया. वह छह महीने ही इस पद पर रहे.
कुश्ती की बात करें तो दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार और उदीयमान सितारे नरसिंह यादव के बीच रियो के टिकट को लेकर विवाद ने जहां मैट के बाहर सुर्खियां बंटोरी वहीं इस साल शुरू हुई प्रो कुश्ती लीग ने देश के युवाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला. नरसिंह ने भारत के लिये इस साल ओलंपिक कोटा हासिल किया. ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त अधिकतर समय चोटों से जूझते रहे लेकिन जितने भी टूर्नामेंट खेले, उनमें प्रदर्शन अच्छा रहा.
पूरे साल कुश्ती जगत में यह बहस भी चलती रही कि रियो ओलंपिक में पुरुषों के 74 किलो फ्रीस्टाइल में नरसिंह को भेजा जाना चाहिये या सुशील को. भारत ने अभी तक इसी वर्ग में ओलंपिक कोटा हासिल किया है. लंदन ओलंपिक में सुशील और नरसिंह अलग अलग भारवर्ग में उतरे थे. सुशील ने 66 किलोवर्ग में रजत पदक जीता जबकि नरसिंह 74 किलो में पहले ही दौर में बाहर हो गए थे. इसके बाद सुशील 74 किलोवर्ग में आ गए जब फिला ने भार वर्गों का नये सिरे से ऐलान किया. सुशील ने 2013 में नये भार वर्ग में जाने के बाद से दो टूर्नामेंटों में भाग लेकर एक रजत और एक स्वर्ण पदक जीता.
मैट पर एक साल से अधिक समय से नजर नहीं आये सुशील की गैर मौजूदगी में नरसिंह ने इस वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व करके लगातार पदक जीते. ओलंपिक पर नजरें गडाये योगेश्वर ने चोटिल होने के कारण चुनिंदा टूर्नामेंट ही खेले लेकिन उनमें अपनी छाप छोड़ी.
लंदन ओलंपिक के इस कांस्य पदक विजेता को घुटने की चोट के कारण सितंबर में लास वेगास में हुई विश्व चैम्पियनशिप से नाम वापिस लेना पड़ा जिससे उनकी काफी आलोचना हुई. भारतीय खेलों में एक और सफल कहानी गोल्फर अनिर्बान लाहिडी ने लिखी. उन्होंने इस साल भारतीय गोल्फ को नयी उंचाइयों तक पहुचाते हुए दो यूरोपीय टूर खिताब जीते और एक मेजर टूर्नामेंट में पांचवें स्थान पर रहे.
इस साल एशिया, अमेरिका और यूरोप में कई टूर्नामेंटों में भाग लेने वाले लाहिडी ने इंडियन ओपन और मेबैंक मलेशिया ओपन खिताब जीता जबकि पीजीए चैम्पियनशिप में पांचवें स्थान पर रहे. उन्होंने प्रेसिडेंट्स कप के लिये क्वालीफाई किया, एशियाई आर्डर आफ मेरिट में शीर्ष रहे और विश्व रैंकिंग में कैरियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 34वीं पायदान तक पहुंचे.
दिल्ली के चिराग कुमार ने भी फिटनेस समस्याओं को अलविदा कहते हुए दिल्ली गोल्फ क्लब पर पेनासोनिक ओपन जीता. वहीं जीव मिल्खा सिंह और अर्जुन अटवाल जैसे धुरंधर लय हासिल करने के लिये जूझते रहे. मुक्केबाजी की बात करें तो भारतीय मुक्केबाजी प्रशासन एक बार फिर गलत कारणों से चर्चा में रहा लेकिन रिंग के अंदर विजेंदर सिंह की पेशेवर मुक्केबाजी में शानदार शुरुआत और शिव थापा के विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में पदक ने कुछ हद तक 2015 में निराशा को दूर किया.
ओलंपिक और विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज विजेंदर ने उस समय सबको हैरान कर दिया जब ब्रिटेन के ट्रेनिंग दौरे के दौरान उन्होंने पेशेवर बनने के फैसले की घोषणा की.
विजेंदर के हालांकि पेशेवर सर्किट में भारत के नंबर एक पेशेवर मुक्केबाज का स्थान खाली हो गया और फिलहाल कोई इसका सर्वसम्मत दावेदार नहीं है. शिव थापा (56 किग्रा), मनदीप जांगडा (69 किग्रा) और विकास कृष्णन (75 किग्रा) हालांकि विजेंदर की जगह लेने के प्रबल दावेदार हैं. शिव ने इन सभी में बेहतर प्रदर्शन किया है और वह विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीतने वाले सिर्फ तीसरे मुक्केबाज हैं.
असम के 22 साल के शिव ने 2015 में शानदार प्रदर्शन करते हुए एशियाई चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता और फिर दोहा में विश्व चैम्पियनशिप में भी कांस्य पदक जीतने में सफल रहे. वह हालांकि ओलंपिक कोटा हासिल नहीं कर पाए जिसके लिए विश्व चैम्पियनशिप क्वालीफाइंग प्रतियोगिता थी.
दोहा में कोई भारतीय मुक्केबाज ओलंपिक कोटा हासिल नहीं कर पाया लेकिन अगर प्रशासन में विवाद को देखें तो विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतना भी छोटी उपलब्धि नहीं है. प्रशासनिक विवाद के कारण राष्ट्रीय महासंघ को तीन साल में दूसरी बार निलंबन का सामना करना पड़ा.
महिला मुक्केबाजी में पूर्व विश्व चैम्पियन एल सरिता देवी ने 2014 एशियाई खेलों के बाद लगा एक साल का प्रतिबंध पूरा करने के बाद वापसी की. मणिपुर की इस मुक्केबाज ने चीन में ट्रेनिंग सह प्रतियोगिता के दौरान अच्छा प्रदर्शन करके मजबूत वापसी की. फुटबाल में भारतीय टीम ने एक बार फिर निराशाजनक प्रदर्शन किया लेकिन बीते साल भारतीय फुटबाल में इंडियन सुपर लीग और पूर्व महान खिलाडी पेले का भारत दौरा हावी रहा.
फीफा अंडर 17 विश्व कप 2017 की मेजबानी की तैयारी कर रहे भारत की राष्ट्रीय टीम ने एक फिर सभी को निराश किया. टीम 2018 फीफा विश्व कप क्वालीफाइंग के छह मैचों में सिर्फ तीन अंक जुटा सकी. सकारात्मक पक्ष हालांकि आईएसएल दो की सफलता रही और चेन्नईयिन एफसी की टीम जोरदार वापसी करते हुए चैम्पियन बनी. भारत ने 2017 में छह शहरों में होने वाले अंडर 17 विश्व कप की तैयारी भी तेज कर दी. पिछले टूर्नामेंट के मेजबान चिली ने नवंबर में यहां आधिकारिक तौर पर भारत को जिम्मेदारी सौंपी.
क्यू खेलों की बात करें तो एक बार फिर पंकज आडवाणी का नाम पूरे साल सुर्खियों में रहा और उन्होंने लंबे समय से चला आ रहा अपना दबदबा बदस्तूर कायम रखते हुए एक और विश्व खिताब जीता और अब उनके नाम 15 विश्व खिताब हो गए हैं.
आडवाणी ने अगस्त में गत चैम्पियन चीन के यान बिंगताओ को 6-2 से हराकर वर्ल्ड 6 रेड स्नूकर चैम्पियनशिप जीती जो उनका 13वां विश्व खिताब था. क्यू खेलों के इस पोस्टर ब्वाय ने सिंगापुर के पीटर गिलक्रिस्ट को हराकर विश्व बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप अपने नाम की। इसके बाद नवंबर में मिस्र में 15वां विश्व खिताब अपने नाम किया जब फाइनल में चीन के झुआ शिनतोंग को मात दी.
बैडमिंटन में साइना के अलावा पुरुष वर्ग में के श्रीकांत ने भी जानदार प्रदर्शन किया और दो खिताब जीते. पी वी सिंधू, पारुपल्ली कश्यप और अजय जयराम चोटों से जूझते रहे. साइना ने सैयद मोदी ग्रां प्री गोल्ड जीता और उसके बाद पहली बार इंडियन ओपन सुपर सीरिज खिताब अपने नाम किया जिससे वह विश्व रैंकिंग में नंबर एक तक पहुंची.
श्रीकांत ने चाइना ओपन में दो बार के ओलंपिक चैम्पियन लिन डैन को हराने के बाद खिताब अपने नाम किया. उन्होंने सत्र के पहले हाफ में स्विस ओपन और इंडिया ओपन जीते और जून में विश्व रैंकिंग में तीसरे स्थान तक पहुंचे. स्क्वाश में जोशना चिनप्पा वर्ष 2015 में दीपिका पल्लिकल को पीछे छोड़कर भारत की सर्वाधिक रैंकिंग की खिलाडी बनी जबकि कोर्ट से इतर एन रामचंद्रन को विश्व स्क्वाश महासंघ (डब्ल्यूएसएफ) के प्रमुख की अपनी भूमिका के लिये कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पडा. कोर्ट पर जोशना भारत के तीन प्रमुख खिलाडियों में सबसे अधिक सफल रही. उनके अलावा दीपिका और सौरव घोषाल भारतीय स्क्वाश के दो नामी चेहरे हैं.
जोशना के लिये वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण क्षण कतर क्लासिक में विश्व की नंबर एक खिलाड़ी रानीम एल वेलिली को हराना रहा. मेलबर्न और मुंबई में 15 हजार डालर इनामी दो खिताब और न्यूयार्क में कारोल वेमुलर ओपन के सेमीफाइनल में पहुंचने से वह अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ 13वीं रैंकिंग पर पहुंचने में सफल रही. भारोत्तोलन में हालांकि भारत का नाम फिर से बदनाम हुआ. भारत के सबसे ज्यादा भारोत्तोलक 2015 में प्रतिबंधित दवाओं के सेवन के दोषी पाये गए जिससे अच्छा प्रदर्शन हाशिये पर चला गया.
आलम यह है कि अब भारतीय भारोत्तोलकों को अगले साल ओलंपिक से बाहर रहना पड़ सकता है क्योंकि भारतीय भारोत्तोलन महासंघ पर निलंबन की गाज गिरने का खतरा है. वर्ष 2014 में भारतीय भारोत्तोलन बेदाग रहा था लेकिन इस साल फिर डोपिंग का साया खेल पर पड़ा और सबसे ज्यादा दोषी भारत में पाये गए. वर्ष की शुरुआत में 26 भारोत्तोलकों को विभिन्न घरेलू टूर्नामेंटों में प्रतिबंधित दवाओं के सेवन के कारण आईडब्ल्यूएफ का अस्थायी प्रतिबंध झेलना पड़ा जबकि साल के आखिर में दो महिला भारोत्तोलक एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में डोप टेस्ट में नाकाम रही.
नियमों के अनुसार एक कैलेंडर वर्ष में अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में तीन पाजिटिव टेस्ट से राष्ट्रीय महासंघ पर एक साल का प्रतिबंध लग सकता है यानी एक और पाजीटिव मामला आने पर भारत अगले साल रियो ओलंपिक में नहीं खेल पाएगा. एथलेटिक्स में चक्का फेंक के स्टार एथलीट विकास गौडा सहित कुल 15 एथलीटों का रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करना और युवा धाविका दुती चंद का वैश्विक संस्था आईएएएफ के खिलाफ एतिहासिक मामला जीतना आकर्षण रहा.
भारत का 2022 में ओलंपिक मेजबानी की दावेदारी पर भी विराम लग गया है. आईओसी अध्यक्ष थामस बाक ने भारत के अपने दौरे के दौरान ऐसी किसी संभावना से इन्कार किया. कुल मिलाकर भारतीय खेलों में ऐसा बहुत खास नहीं हुआ जिसका जश्न मनाया जाए लेकिन यह वर्ष पूरी तरह से निराशाजनक भी नहीं रहा. अब अगला साल ओलंपिक वर्ष है और निश्चित तौर पर भारतीय खिलाडियों के पास उपलब्धियां हासिल करने का यह बेहतरीन मौका होगा.

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