नयी दिल्ली : दिग्गज सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने आज स्वीकार किया कि वह ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2013 की टेस्ट श्रृंखला के बीच में ‘टीम प्रबंधन या चयनकर्ताओं की तरफ से बिना किसी जानकारी’ के बाहर किये जाने से आहत थे.
सहवाग को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हैदराबाद में खेले गये दूसरे टेस्ट मैच के बाद बाहर कर दिया गया था लेकिन नजफगढ़ के नवाब ने कहा कि चयनकर्ताओं को उन्हें दो टेस्ट और खेलने का मौका देकर भारतीय पोशाक में संन्यास लेने का मौका देना चाहिए था.
सहवाग ने ईएसपीएन क्रिकइन्फो से कहा, ‘‘मैंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दो टेस्ट मैचों में रन नहीं बनाये थे इसलिए मैं सोच रहा था कि मुझे आखिरी दो टेस्ट मैचों में अच्छा प्रदर्शन करने के लिये अभी मौके मिलेंगे और यदि मैं अच्छा प्रदर्शन नहीं करता हूं तो मुझे बाहर कर दिया जाएगा. यदि चयनकर्ताओं ने मुझे दो टेस्ट मैच खेलने का यह मौका दिया होता और कहते कि आप इन दो टेस्ट मैच में खेलो और फिर संन्यास ले लो तो मैं इस पर जरुर विचार करता.
‘ सहवाग से पूछा गया कि क्या बीसीसीआई और टीम प्रबंधन की तरफ से संवादहीनता रही, तो उन्होंने इस पर सहमति जतायी. उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित तौर पर. टीम प्रबंधन, चयनकर्ता या बीसीसीआई में से किसी ने भी मुझे नहीं बताया. मुझे समाचार पत्रों से इस बारे में जानकारी मिली. इससे मैं आहत हुआ लेकिन अब मुझे कोई परेशानी नहीं है. ‘
सहवाग ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपने आखिरी तीन सत्रों में मध्यक्रम में बल्लेबाजी की. वह भारतीय टीम में भी ऐसा चाहते थे लेकिन उनकी नहीं सुनी गयी. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने टीम प्रबंधन से इस बारे में (मध्यक्रम में खेलने) में बात की लेकिन उनका मानना था कि मैं अब भी सलामी बल्लेबाज के रुप में अच्छा प्रदर्शन कर सकता हूं और वे सलामी जोड़ी के साथ कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे. मैंने अपनी तरफ से काफी प्रयास किये लेकिन मुझे मध्यक्रम में मौका नहीं मिल सका. ‘
सहवाग ने कहा, ‘‘जब मैंने अपनी आखिरी श्रृंखला खेली तब तेंदुलकर टीम में थे. कोहली और धौनी टीम में थे. पुजारा तीसरे नंबर पर खेल रहे थे. तेंदुलकर चौथे और कोहली पांचवें नंबर पर खेल रहे थे. इसका मतलब था कि मुझे छठे नंबर पर तेंदुलकर के बाद खेलना होता क्योंकि आप तेंदुलकर को तीसरे या पांचवें नंबर पर खेलने के लिये नहीं कह सकते थे. इसलिए मेरे पास मध्यक्रम में खेलने का कोई मौका नहीं था. ‘
सहवाग ने हालांकि स्वीकार किया कि इसके बाद उन्होंने दिल्ली की तरफ से घरेलू सत्र में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया जिससे उनकी वापसी की संभावना खत्म हो गयी. उन्होंने कहा, ‘‘जब मुझे बाहर किया गया तो मुझे लग रहा था कि मैं अच्छा खिलाड़ी हूं और भारतीय टीम में वापसी कर सकता हूं लेकिन मैं तब भी इस मानसिकता में जी रहा था कि मैं एक आक्रामक सलामी बल्लेबाज हूं जो रन बना सकता है लेकिन मैं यह नहीं समझ पाया कि घरेलू क्रिकेट अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से पूरी तरह भिन्न है और मैं तब भी उसी तरह से खेल रहा था. ‘
सहवाग ने कहा, ‘‘मैंने उस सत्र (2013-14) में रन नहीं बनाये और मेरा उच्चतम स्कोर 56 रन था. मैं दिल्ली की परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के लिये जूझ रहा था. अगले साल मैंने अपनी सोच और बल्लेबाजी शैली बदली और खुद को कुछ समय दिया और 500 के करीब रन बनाये लेकिन मुझे पिछले सत्र में बड़े स्कोर की जरुरत थी और हो सकता था कि मैं टीम में वापसी कर जाता.’