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खेल जगत की नयी चुनौतियां, नये सपने

हर साल की तरह इस साल भी खेल के मैदान में चुनौतियां भरी हैं, सपने भी हैं और उन्हें हासिल करने का जज्बा भी है. फिर भी, भारतीय खेल जगत के लिए यह साल ज्यादा मायने रखता है. बात चाहे क्रिकेट की हो या फिर ओलिंपिक खेलों की, खिलाड़ी चाहे महेंद्र सिंह धौनी हों या […]

हर साल की तरह इस साल भी खेल के मैदान में चुनौतियां भरी हैं, सपने भी हैं और उन्हें हासिल करने का जज्बा भी है. फिर भी, भारतीय खेल जगत के लिए यह साल ज्यादा मायने रखता है. बात चाहे क्रिकेट की हो या फिर ओलिंपिक खेलों की, खिलाड़ी चाहे महेंद्र सिंह धौनी हों या विराट कोहली या सानिया मिर्जा, हर किसी को इस साल से कई बड़ी उम्मीदें जुड़ी हैं.
अगर टीम के लिहाज से देखें, तो क्रिकेट टीम के लिए टी-20 वर्ल्ड कप में खिताबी जीत, हॉकी टीम के लिए एक मुद्दत के बाद ओलिंपिक खेलों में एक पदक जीतना और रियो आेलिंपिक में भारत के पदकों और रैंकिंग का बेहतर होना सबसे बड़ी उम्मीद है. नये साल 2016 से भारतीय खेल जगत की उम्मीदों पर नजर डाल रहे हैं वरिष्ठ खेल पत्रकार विमल कुमार.
धौनी के लिए अग्नि परीक्षा का साल
वन-डे क्रिकेट
साल के शुरुआत में ही टीम इंडिया को ऑस्ट्रेलिया में पांच वन-डे मैचों की सीरीज खेलनी है. अगर धौनी यह सीरीज 5-0 से जीतने में कामयाब होते हैं, तो उनकी टीम की रैंकिंग नंबर वन पर चल रहे मेजबान की टॉप रैंकिग से सिर्फ एक अंक कम रहेगी. लेकिन, अगर नाकाम हुए तो यह सीरीज भारतीय क्रिकेट के सबसे कामयाब कप्तान की आखिरी सीरीज भी साबित हो सकती है. कप्तान धौनी के लिए यह उनके करियर का सबसे बड़ा इम्तिहान साबित हो सकता है.
कामयाबी के लिहाज से धौनी के लिए साल 2015 बेहद बुरा रहा. ऑस्ट्रेलिया में ट्राइएंग्युलर वन-डे सीरीज और वर्ल्ड कप में हार मिली. इसके बाद पहली बार बांग्लादेश के खिलाफ और पहली बार घर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वन-डे सीरीज में मात मिली. इतना ही नहीं, बल्लेबाज धौनी को भी संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ा. लेकिन, 2016 के पहले चार महीने में धौनी की शानदार बल्लेबाजी, उनकी कप्तानी के लिए संजीवनी बूटी का काम कर सकते हैं.
टी-20 क्रिकेट
धौनी और टीम इंडिया के लिए सबसे ज्यादा चुनौती इसी फॉर्मेट में मिलनेवाली है. ऑस्ट्रेलिया में पहली बार तीन मैचों की टी-20 से वर्ल्ड कप की तैयारियों का अंदाजा लग जायेगा. फिलहाल, क्रिकेट के सबसे छोटे फॉर्मेट में टीम इंडिया आइसीसी की रैंकिंग में सिर्फ न्यूजीलैंड, बांग्लादेश और जिम्बाब्वे जैसे मुल्कों से ही आगे है. जिस देश में हर साल दो महीने तक आइपीएल खेली जाती है, उसके लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में इसी फॉर्मेट में लगातार संघर्ष करना बेहद अजीब लगता है.
ऑस्ट्रेलिया में अगर टीम इंडिया 3-0 से सीरीज जीतती है, तो उनकी रैंकिंग में चमत्कारिक ढंग से उछाल आयेगा और वह श्रीलंका के बाद नंबर तीन पर आ जायेगी. इसके ठीक बाद टीम इंडिया को अपनी ही जमीन पर श्रीलंका के खिलाफ तीन मैचों की टी-20 सीरीज खेलनी है, जहां जीत का मतलब होगा इस फॉर्मेट में नंबर वन की रैंकिंग हासिल करना.
इसके बाद एशिया कप, जो पहली बार टी-20 फॉर्मेट में खेला जायेगा, टीम इंडिया के लिए वर्ल्ड कप से पहले अपनी तैयारियों का आकलन करने का आखिरी मौका होगा. लेकिन, मार्च-अप्रैल के महीने में होनेवाला वर्ल्ड कप धौनी और टीम इंडिया के लिए इस साल का सबसे बेहतरीन मौका होगा. वर्ष 2007 में पहला टी-20 वर्ल्ड कप जीतने के बाद टीम इंडिया आखिरी बार हुए वर्ल्ड कप में फाइनल तक पहुंची थी, लेकिन इस बार ट्रॉफी जीत के बिना कोई भी नतीजा टीम के लिए नाकामी का ही सबूत होगा.
वैसे भी आज तक किसी भी टीम ने मेजबानी करते हुए टी-20 वर्ल्ड कप नहीं जीती है और ऐसे में 2011 वन-डे वर्ल्ड कप की तरह ये टूर्नामेंट भी धौनी के सामने इतिहास रचने का सुनहरा मौका होगा.
विराट के सामने पिछली लकीर को आगे बढ़ाने की चुनौती
टेस्ट क्रिकेट
2015 में नंबर सात की रैंकिंग से अपनी कप्तानी की शुरुआत करनेवाले विराट कोहली साल खत्म होते-होते टीम इंडिया को नंबर दो पर ले आये. इसमें श्रीलंका के खिलाफ 21 साल बाद ऐतिहासिक सीरीज जीत रही, तो दक्षिण अफ्रीका के विदेशी जमीं पर ना हारने के नौ साल के रिकॉर्ड को तोड़ने का कमाल भी शामिल रहा. नये साल में कोहली टीम इंडिया को करीब पांच साल बाद फिर से नंबर वन की रैंकिंग पर ले जा सकते हैं. और पहली चुनौती होगी कैरिबायाई जमीं पर चार मैचों की टेस्ट सीरीज.
कोहली पहली बार उप-महाद्वीप से बाहर कप्तानी के लिए जायेंगे और उन पर दबाव होगा कि वे अजीत वाडेकर, राहुल द्रविड़ और धौनी के बाद चौथे ऐसे कप्तान बने, जिन्होंने वेस्टइंडीज में टेस्ट सीरीज में जीत का स्वाद चखा हो. इसके बाद भारत को न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज खेलनी है, लेकिन असली चुनौती साल के अंत में इंगलैंड के खिलाफ पांच मैचों की टेस्ट सीरीज में होगी. 1987 के बाद यह पहला मौका होगा, जब भारत अपने घर में किसी विरोधी के खिलाफ पांच मैचों की टेस्ट सीरीज में शिरकत करेगा.
अश्विन, कोहली और रहाणे के निजी प्रदर्शन पर भी रहेगी खास नजर
खिलाड़ियों के लिए चुनौती : साल 2015 के खत्म होने से ठीक पहले आर अश्विन टेस्ट क्रिकेट में नंबर वन गेंदबाज बन गये.
1973 के बाद यह पहला मौका रहा, जब किसी भारतीय गेंदबाज ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की. अश्विन को भी कैरिबियाई पिचों पर लोहा मनवाने की जरूरत होगी, तभी वह डेल स्टेन को नंबर वन के ताज से लंबे समय तक दूर रखने के बारे में सोच सकते हैं.
बल्लेबाज कोहली को भी अश्विन की ही तरह अपनी श्रेष्ठता साबित करने की जरूरत है. न्यूजीलैंड के केन विलियमसन और ऑस्ट्रेलिया के स्टीवन स्मिथ ने टेस्ट और वन-डे दोनों फॉर्मेट में कोहली को पछाड़ा है और इस साल कोहली को फिर से अपना पुराना रुतबा हासिल करने की चुनौती होगी.
अंजिक्य रहाणे ने भी खुद को हर फॉर्मेट में साबित किया है, लेकिन अब भी टेस्ट क्रिकेट में वह टॉप 10 बल्लेबाजों में शुमार नहीं हो पाये हैं. यह बिलकुल संभव है कि इस साल के अंत तक रहाणे टेस्ट क्रिकेट में भारत के नंबर वन और दुनिया के टॉप पांच बल्लेबाजों में शुमार हो जायें.
अंडर-19 वर्ल्ड कप से जुड़ी हैं खास उम्मीदें
विराट कोहली ही नहीं, बल्कि रोहित शर्मा, शिखर धवन, रविंद्र जडेजा समेत मौजूदा भारतीय टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अंडर-19 क्रिकेट में अपनी प्रतिभा की झलक देते हुए सीनियर टीम तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया.
बांग्लादेश में होनेवाले अंडर-19 वर्ल्ड कप में ईशान किशन की टीम से काफी उम्मीदें हैं. राहुल द्रविड़ पहली बार राष्ट्रीय टीम के कोच के तौर पर इस टूर्नामेंट में शिरकत करेंगे और अरमान जाफर, सरफराज खान समेत इस टीम में कई ऐसे प्रतिभाशाली क्रिकेटर हैं, जो 2008 और 2012 वर्ल्ड कप की जीत के बाद इस फॉर्मेट में टीम इंडिया को एक बार फिर से खिताबी जीत दिला सकते हैं.
बड़ा सवाल, क्या भारतीय क्रिकेट के संचालन में ऐतिहासिक बदलाव होगा?
साल के शुरुआत में ही जस्टिस लोढ़ा समिति ने ऐसी सिफारिशें की है, जिन्हें अगर बीसीसीआइ वाकई में पूरी तरह से अपना लेती है, तो मुमकिन है इस खेल से जुड़े 90 फीसदी विवाद तत्काल खत्म हो जायेंगे.
लेकिन, सबसे अहम सवाल यही है कि क्या देशभर के तमाम दिग्गज नेता और बड़े व्यापारी क्रिकेट के खेल पर अपनी सर्वोच्चता को इतनी आसानी से जाने देंगे. बहरहाल, अगर मौजूदा बोर्ड अध्यक्ष शशांक मनोहर इन सिफारिशोंको अमल करवाने में कामयाब होते हैं, तो निश्चित तौर पर इतिहास उन्हें सबसे बेहतरीन प्रशासक के तौर पर याद करेगा.
ओलिंपिक में कामयाबी पर रहेगी नजर
पिछले सौ साल के इतिहास में ओलिंपिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में सिर्फ सात मैडल जीतनेवाले भारत ने वर्ष 2012 ओलिंपिक में चमत्कारिक छलांग लगाते हुए व्यक्तिगत स्पर्धा में छह मैडल जीते, लेकिन रियो में इस कामयाबी को बेहतर करना बेहद मुश्किल चुनौती होगी.
लंदन में कामयाबी के बाद सरकार ने टॉप यानी ‘टारगेट ओलिंपिक पोडियम’ की नीति के तहत 46 करोड़ रुपये एथलीटों के लिए खर्च करने की अनोखी पहल की, लेकिन दिसंबर 2015 तक इससे सिर्फ छह करोड़ ही खर्च हो पाये और इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की तैयारी कितनी गंभीर है. यह अलग बात है कि रियो में बैडमिंटन, शूटिंग, बॉक्सिंग और कुश्ती से पदक की उम्मीद की जा सकती है. अब तक 63 एथलीट ओलिंपिक के लिए क्वालिफाइ कर चुके हैं और मुमकिन है कि यह संख्या सैकड़े को पार कर जाये.
2000 के सिडनी ओलिंपिक में 71वें पायदान पर रहनेवाले भारत ने 2008 के बीजिंग खेलों में 50वां और 2012 के लंदन खेलों के दौरान 55वां पायदान हासिल किया. यदि भारत इस बार दुनिया के 40 टॉप देशों में शुमार होने में कामयाब रहा, तभी यह माना जा सकता है कि भारतीय खेलों ने वाकई में पिछले एक दशक में जबरदस्त तरक्की की है.
उम्मीदें महिला खिलाड़ियों से
सानिया मिर्जा ने मार्टिना हिंगिस के साथ मिल कर डबल्स मुकाबलों में न सिर्फ नंबर वन की रैंकिंग हासिल कर भारत के लिए 2015 में इतिहास रचा, बल्कि उनकी कामयाबी ने 2016 में और बड़ी उम्मीदें जगाने का काम किया है.
महाराष्ट्र की ललिता बाबर ने वर्ष 2015 में वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए क्वालिफाइ करनेवाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनीं और उनसे भी रियो ओलिंपिक में चमत्कारिक मैडल की उम्मीद की जा सकती है. वर्ष 2012 में झारखंड की तीरंदाज दीपिका कुमारी जब लंदन ओलिंपिक खेलों में शिरकत करने के लिए पहुंची, तो वह दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी थी. लेकिन ओलिंपिक का दबाव ऐसा बना कि दीपिका को पहले राउंड में ही बाहर होना पड़ा. दीपिका के पास रियो में मौका पूराने सपने को फिर से सच करने का होगा.
जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप
साल के आखिर में दिसंबर एक से 11 तक भारत जूनियर वर्ल्ड कप हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन करेगा. पिछली बार घरेलू जमीं पर आयोजन से टीम से काफी उम्मीदें बंधी थीं, जो पूरी तरह से नाकाम हो गयी. हाल ही में जूनियर एशिया कप जीतने वाली टीम से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह 2013 की नाकामी को भुलाते हुए इतिहास रचने का माद्दा रखते हैं.
विश्वनाथन आनंद बनायेंगे रिकॉर्ड
भारत के महानतम शतरंज खिलाड़ी या संभवतया सबसे महानतम खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद के लिए भी साल 2016 ऐतिहासिक साबित हो सकता है. अनातोली कार्पोव और गैरी कास्परोव के वर्ल्ड रिकॉर्ड छह टाइटिल जीत से आनंद सिर्फ एक कदम पीछे हैं.
पिछले दो बार से वर्ल्ड शतरंज चैंपियनशिप में मात खाने वाले आनंद के पास इस साल सितंबर महीने में फिर से यह मौका होगा कि वह युवा सनसनी कार्ल्सन को पछाड़ें, लेकिन उससे पहले आनंद को मार्च महीने में ही सबसे पहले अपने पुराने फॉर्म को तलाशने की जरूरत होगी, जो उनके लिए आसान नहीं होगा.
खेलों की लीग की चुनौती
साल के शुरुआत में ही प्रीमियर बैडमिंटन लीग का आयोजन हो रहा है. देखनेवाली बात यह होगी कि क्या बैडमिंटन संघ पहली बार हुए इंडियन बैडमिंटन लीग की कामयाबी को दोहरा पाता है या नहीं. इसके अलावा हॉकी इंडिया लीग का आयोजन भी भारत में दूसरे खेलों की लीग के लिए प्रेरणा साबित हो सकता है.
प्रो कबड्डी लीग की अद्भुत कामयाबी ने इस टूर्नामेंट को साल में दो बार आयोजित करने का हौसला दिया है और जनवरी में शुरू होनेवाली इस लीग से पुरानी कामयाबी की उम्मीद निश्चित तौर पर की जा सकती है. लेकिन, इन सभी लीगों को अकेले अपने दम पर पटखनी देनेवाली इंडियन प्रीमियर लीग यानी आइपीएल के लिए भी यह साल बड़ी चुनौती का रहेगा. इस साल धौनी पहली बार चेन्नई सुपर किंग्स का दामन छोड़ कर नयी फ्रैंचाइजी पुणे के लिए खेलेंगे, जबकि राजकोट में उनके दो साथी रविंद्र जडेजा और सुरेश रैना एक और नयी फ्रैंचाइजी की किस्मत संवारने में जुटेंगे.
महारथियों की विदाई का साल
महेंद्र सिंह धौनी, सुशील कुमार, लिएंडर पेस, सरदार सिंह और मैरी कॉम समेत कई ऐसे महान खिलाड़ी इस साल खेल के मैदान से विदाई लेते हुए भी नजर आ सकते हैं. अगर वाकई में इन सारे खिलाड़ियों ने 2016 में रिटायरमेंट की घोषणा की, तो भारतीय खेल इतिहास का सबसे भावुक साल भी साबित हो सकता है.
हालांकि कई दिग्गज खिलाड़ियों की विदाई से भारतीय खेल का आंगन सूना तो होगा, लेकिन इस बात की उम्मीद भी होगी कि कोई नयी प्रतिभा ऐसी आयेगी, जो आगामी दशक तक भारतीय खेल का परचम पूरी दुनिया में लहराये. कौन जानता है कि अगर झारखंड का सबसे महानतम सपूत धौनी खेल को अलविदा कहते हैं, तो हो सकता है कि उसी राज्य का एक और विकेटकीपर-बल्लेबाज कप्तान आनेवाले वक्त में अपने आदर्श के नक्शे कदम पर चलते हुई कामयाबी की नयी मिसाल पेश करे.

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