जिसे ‘टीम ऑफ नो ब्रेन’ कहा, वही बना चैंपियन
-अनुज कुमार सिन्हा- वेस्टइंडीज टीम के वर्ल्ड चैंपियन बनने की घटना काेई सामान्य घटना नहीं है. यह वही टीम है, जिसके खिलाड़ियाें काे वर्ल्ड कप आरंभ हाेने के कुछ दिनाें पहले तक पता नहीं था कि उन्हें मैच खेलने के लिए भारत जाना है या नहीं. यह वही टीम है जिसका मार्क निकाेलस ने ‘ए […]
-अनुज कुमार सिन्हा-
वेस्टइंडीज टीम के वर्ल्ड चैंपियन बनने की घटना काेई सामान्य घटना नहीं है. यह वही टीम है, जिसके खिलाड़ियाें काे वर्ल्ड कप आरंभ हाेने के कुछ दिनाें पहले तक पता नहीं था कि उन्हें मैच खेलने के लिए भारत जाना है या नहीं. यह वही टीम है जिसका मार्क निकाेलस ने ‘ए टीम अॉफ नाे ब्रेन’ कह कर मजाक उड़ाया था (हालांिक सोमवार को उन्होंने माफी मांग ली है). यह वही टीम है, जिसका उसी के क्रिकेट बाेर्ड (डब्ल्यूआइ सीबी) ने लगातार अपमान किया था.
बाेर्ड का व्यवहार कैसा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी (इंडीज की) टीम रविवार काे वर्ल्ड कप फाइनल खेल रही थी लेकिन उसी के देश के क्रिकेट बाेर्ड के किसी अधिकारी ने टेलीफाेन पर एक शुभकामना तक नहीं दी थी. यह वही टीम है, जिसके पास खेलने के कुछ समय पहले तक जर्सी तक की व्यवस्था नहीं थी. हां, इस टीम के खिलाड़ियाें के पास हाैसला था, जज्बा था, लक्ष्य था.
टीम के पास एक ऐसा मैनेजर था ( रॉल लेविस), जिसे यह जिम्मेवारी पहली बार मिली थी. काेई अनुभव नहीं, लेकिन इस मैनेजर ने पहले दुबई में कैंप लगाया आैर फिर काेलकाता जा कर सारी व्यवस्था की. टीम के मनाेबल आैर जीत के जज्बे काे जिंदा रखा. यही कारण है कि यह टीम दुुनिया की मजबूत टीमाें काे हराते हुए चैंपियन बनी है. साधन के अभाव के बीच टीम अगर चैंपियन बनी, ताे इसके पीछे खिलाड़ियाें का जज्बा, समर्पण आैर अपने अपमान (जाे इसे बाहर के किसी ने नहीं दिया था बल्कि अपनाें ने ही दिया था) का बदला लेना था.
साथ ही यह साबित करना था कि खिलाड़ी गलत नहीं हैं. उनके अंदर प्रतिभा है आैर माैका मिलने पर वे किसी काे हरा सकते हैं. एक जीत या एक कप उनके खाेये सम्मान काे लाैटा सकता है. यही उन्हाेंने साबित कर दिया. चैंपियन बनने के बाद कप्तान समी ने अपना दर्द छुपाया भी नहीं. बताया कि किन हालाताें से उनकी टीम काे गुजरना पड़ा है.
इसमें काेई दाे राय नहीं कि किसी समय वेस्टइंडीज काे दुनिया की बेहतरीन टीम (खास कर वनडे में) माना जाता था. समय पलटा. यह जानना हाेगा कि वेस्टइंडीज काेई एक देश नहीं है. सिर्फ क्रिकेट खेलने के लिए कई छाेटे-छाेटे देशाें (टापूओं के) ने एक समूह बना रखा है आैर एक ही नाम से खेलते हैं.
यहां खिलाड़ियाें के पैसे काे लेकर विवाद हुआ. इसी विवाद के कारण वेस्टइंडीज का भारत दाैरा वर्ष 2014 में रद्द हुआ था आैर बीसीसीआइ ने वेस्ट इंडीज क्रिकेट बाेर्ड पर 250 कराेड़ का हर्जाना ठाेंक दिया था. बाेर्ड काे मिलनेवाली राशि में 25 फीसदी खिलाड़ी मांग रहे थे. पहले यह मिलता रहा था. वर्ल्ड कप आरंभ हाेनेवाला था. बाेर्ड के चेयरमैन विक्लिफ दवे कैमेराेन का रुख कड़ा था.
खिलाड़ियाें काे यहां तक कह दिया गया था कि या ताे वे एग्रीमेंट पर 16 फरवरी तक हस्ताक्षर करें या वर्ल्ड कप खेलने के लिए नयी टीम जायेगी. यानी सीधे धमकी थी कि बात माननी हाेगी वरना वर्ल्ड कप नहीं खेलने देंगे. खिलाड़ियाें की आेर से कप्तान समी खुद माेरचा लिये हुए थे. विवाद इतना गहरा था (अभी भी है ही) कि बाेर्ड के एक अधिकारी ने गेल काे संन्यास लेने की बात कही थी. वही गेल, जिसने इस बार इंग्लैंड के खिलाफ सबसे तेज शतक जमा कर जीत हासिल की थी. लेकिन खिलाड़ी कुछ करना चाहते थे. अपमान का घूंट पी कर रह गये. तय कर लिया कि वर्ल्ड कप खेलेंगे आैर जीत कर आयेंगे. यही जवाब हाेगा बाेर्ड काे.
पूरी प्रतियाेगिता में वेस्ट इंडीज के खिलाड़ियाें का मनाेबल बढ़ा दिखा. लगा कि वे हर मैच काे जीतने के लिए जीन-जान लगा दे रहे थे. टीम के सभी 15 खिलाड़ियाें ने (जिन्हें जब माैका मिला) अपनी भूमिका निभायी. लक्ष्य था-हर हाल में जीत हासिल करना. कभी गेल चले ताे कभी चार्ल्स. यह ये नहीं चले ताे सिमंस, ब्रेवाे आैर सैमुअल्स ने कमाल दिखाया. जब ये सब चले गये ताे ब्रेथवेट भी पीछे नहीं रहे. इसी जज्बे ने इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान आैर भारत जैसी टीमाें काे हराया. सेमीफाइनल में गेल के आउट हाेने के बाद भी वेस्टइंडीज के खिलाड़ियाें ने हार नहीं मानी आैर उसी तेवर से खेलते रहे. फाइनल में अंतिम आेवर के पहले तक वेस्ट इंडीज की हार तय मानी जा रही थी.
अंतिम आेवर में जीत के लिए 19 रन. सामने था वह खिलाड़ी ब्रेथवेट, जाे मूलत: गेंदबाज था. इस वर्ल्ड कप के पहले उसने सिर्फ दाे टी-20 मैच खेले थे आैर सिर्फ चार गेंदाें का सामना किया था. फाइनल से पहले उसने टी-20 के सात मैचाें में एक चाैका भी नहीं लगाया था. हां, तीन छक्के पहले मारे थे. ऐसे सामान्य खिलाड़ी से बहुत उम्मीद ताे नहीं थी. सिर्फ हार-जीत का अंतर कम हाे सकता था. लेकिन जब कराे या मराे की बात आती है ताे काेई भी जी-जान लगा देता है.
उसी ब्रेथवेट ने चार गेंदाें पर चार छक्का लगा कर अपनी टीम काे चैंपियन बना दिया. असंभव काे संभव कर दिया क्याेंकि उसके अंदर जीत की भूख थी, सफलता की भूख थी. यही बात अन्य खिलाड़ी स्वीकार कर रहे हैं कि जीत की भूख, कुछ करने की तमन्ना उनमें थी. वेस्टइंडीज की टीम में काेई एक ही खिलाड़ी नहीं था, जिसमें यह जज्बा दिखा. एक-एक रन बचाने के लिए इंडीज की टीम ने अपना सब कुछ दावं पर लगा दिया था आैर यह साबित कर दिया कि अगर काेई टीम ठान ले ताे कुछ भी असंभव नहीं. साधन आड़े नहीं आता.