#Jharkhand / मजदूरी कर रही हैं झारखंड की महिला क्रिकेटर
सरकार भले ही खिलाड़ियों को हर सुविधा देने की बात कहती है, पर वास्तविक स्थिति बहुत ही भयावह है. झारखंड में खेल व खिलाड़ियों की स्थिति बदहाल है. झारखंड महिला क्रिकेट टीम की कप्तान सहित कई सदस्य आज भी मजदूरी, दूसरों के घरों में काम और जंगल से लकड़ी लाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर […]
सरकार भले ही खिलाड़ियों को हर सुविधा देने की बात कहती है, पर वास्तविक स्थिति बहुत ही भयावह है. झारखंड में खेल व खिलाड़ियों की स्थिति बदहाल है. झारखंड महिला क्रिकेट टीम की कप्तान सहित कई सदस्य आज भी मजदूरी, दूसरों के घरों में काम और जंगल से लकड़ी लाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं. बदहाल आर्थिक स्थिति इनके सपनों में बाधक बन रही हैं. झारखंड की महिला क्रिकेटरों की दशा पर किरीबुरू से शैलेश सिंह की विशेष रिपोर्ट.
रश्मि गुड़िया, कप्तान
पिता के साथ जंगल से लकड़ी लाकर बेचती है
झारखंड महिला क्रिकेट टीम (अंडर 19 व 23) की कप्तान रश्मि गुड़िया (18) का सपना भारतीय महिला टीम का प्रतिनिधित्व करने का है. पर बदहाल आर्थिक स्थिति कभी-कभार उसके सपने आंखों से ओझल कर देती है. हालांकि रश्मि ने अब तक हार नहीं मानी है. प सिंहभूम के आनंदपुर की रश्मि का परिवार ओड़िशा के बोलानी स्थित गुरुद्वारा हाटिंग में रहता है. रश्मि के पिता निरल गुड़िया घर चलाने के लिए सारंडा जंगल से लकड़ियां काट बाजार में बेचते हैं. वहीं मां प्यारी गुड़िया घर में हड़िया बेचती है. सातवीं तक पढ़ी रश्मि अपने पिता की मदद करती थी. वह 2012 (मई) में सेल के बोलानी खदान प्रबंधन ने सीएसआर के तहत संचालित लेडीज क्रिकेट कोचिंग सेंटर से जुड़ी. वेलफेयर कमेटी के महासचिव संजय बनर्जी ने रश्मि को सेंटर में पहुंचाया. कटक में आयोजित कैंप में रश्मि का चयन ओड़िशा टीम में नहीं हुआ, तो वह काफी निराश हुई. उसने झारखंड में ट्रायल दिया. यहां उसका चयन हुआ. रश्मि झारखंड टीम की कप्तान के साथ इस्ट जोन (झारखंड, बंगाल, ओड़िशा, त्रिपुरा, असम) टीम की सदस्य है. रश्मि ने अंडर-19 में इंटर जोनल प्रतियोगिता में नॉर्थ जोन के खिलाफ गुंटुर (आंध्र प्रदेश) में 116 रन बनाये. वहीं इंटर स्टेट में झारखंड की तरफ से ओड़िशा के खिलाफ 104 रन की पारी खेली. रश्मि को नेशनल क्रिकेट अकादमी ने प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया. वर्ष 2014-15 व 2015-16 में रश्मि को पश्चिम सिंहभूम का बेस्ट ओमेन क्रिकेटर पुरस्कार मिला.
अंजलि, लेग स्पिनर
मां व बहन ने घरों में काम कर बनाया क्रिकेटर
झारखंड महिला क्रिकेट टीम (अंडर 19 व 23) की खिलाड़ी अंजलि दास (15) के पिता राजू दास और मां सुखो दास मूलरूप से चाईबासा के मोचीसाई निवासी हैं. ये गरीबी व बेरोजगारी के कारण बोलानी आ गये. बोलानी के अतरी हाटिंग में रहते हैं. अंजलि ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा कि उसकी छह बहन और एक भाई है. घर में कमानेवाला कोई नहीं है. पिताजी मधुमेह के मरीज हैं. मां और बहन सुमन दास दूसरों के घरों में काम करती हैं. इसके बाद हमारा पेट भरता है. हमारे लिए पर्व, त्योहार एक सपना है. घरवालों के सपोर्ट से अंजलि क्रिकेटर बनी. अंजलि ने बताया कि इस बार उसने मैट्रिक की परीक्षा दी है. झारखंड टीम में लेग स्पिनर के रूप में है. उसे सरकार व सेल प्रबंधन से मदद की आस है. वह वर्ष 2013 से सेल की ओर से संचालित एलसीसी सेंटर बोलानी में प्रशिक्षण ले रही हैं.
इसरानी, फास्ट बॉलर
सपने को धुंधला कर रही गरीबी
झारखंड महिला क्रिकेट अंडर-19 टीम की फास्ट बॉलर इसरानी सोरेन (19) झारखंड टीम से तीन वर्षों से खेल रही हैं. इसरानी ने बताया कि उसके पिता दयाल सोरेन व मां स्नेहलता सोरेन मूलरूप से झारखंड के मनोहरपुर स्थित साउड़ीउली गांव के रहनेवाले हैं. गरीबी व बेरोजगारी से तंग आकर वे रोजगार की तलाश में वर्षों पहले बोलानी के शांतिनगर में आ गये. तीन भाई और चार बहन हैं. भाई जोसेफ सोरेन मेहनत मजदूरी कर सबका पेट पाल रहा है. इसरानी इस वर्ष इंटर की परीक्षा दे रही है. उसका सपना है कि किसी तरह भारतीय टीम में शामिल हो जाये. गरीबी उसके सपनों को चकनाचूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. इसरानी ने कहा कि बेहतर क्रिकेटर बनने के लिए अच्छा कोच, इंफ्रास्ट्रक्चर, पिच, मैदान, पौष्टिक आहार, जिम, बेहतर माहौल जरूरी है. हमलोगों के पास कुछ नहीं है. सिर्फ मैच के समय हम खेलने जाते हैं. मैच फीस के रूप में मात्र 1500 रुपये मिलते हैं.
पूर्णिमा, क्रिकेटर
मां बीमार, खुद करना पड़ती है मजदूरी
एलसीसी सेंटर बोलानी की महिला क्रिकेटर पूर्णिमा राय (19) ओड़िशा की सीनियर और अंडर-19 टीम में ऑलराउंडर है. उसके परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय है. पूर्णिमा के पिता कमल राय व मां मानी अतरी हाटिंग बोलानी में रहते हैं. पिता प्राइवेट चालक हैं. मां रेलवे साइडिंग में मजदूरी करती है. मां की तबीयत खराब होने पर वह खुद रेलवे साइडिंग में मजदूरी करती है. पूर्णिमा इंटर तक पढ़ी है. उसका प्रेरणास्रोत भारतीय क्रिकेटर झूलन गोस्वामी हैं. वह भारतीय टीम का हिस्सा बनने के लिए प्रयासरत है. पूर्णिमा ने बताया कि हमें आर्थिक मदद व क्रिकेट का बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और माहौल नहीं मिल रहा है.
टीम सदस्य है पिंकी
रेलवे साइडिंग में मजदूरी करती है
झारखंड महिला क्रिकेट टीम (अंडर-19) की खिलाड़ी पिंकी तिर्की (18) दिन में बोलानी रेलवे साइडिंग में मजदूरी करती है. शाम में क्रिकेट का अभ्यास करती है. पिंकी मूल रूप से चाईबासा के कुर्सी गांव की रहनेवाली है. चार बहन व तीन भाइयों में पिंकी सबसे बड़ी है. उसके ऊपर परिवार का बोझ आठ वर्ष की उम्र में आ गया था. उस समय पिंकी तीसरी में पढ़ती थी. पिंकी के पिता दुच्चु तिर्की और मां मौली तिर्की मधुमेह व अन्य बीमारियों से ग्रसित थे. घर में कमानेवाला कोई नहीं था. पिंकी ने परिवार के भरण-पोषण के लिए बोलानी स्थित अतरी हाटिंग में रहनेवाले मामा ड्राइवर उरांव और मामी बालो उरांव के पास आ गयी. आठ वर्ष की उम्र से लोगों के घरों में नौकरानी की काम करने लगी. बड़ी होने पर अपनी मामी के साथ बोलानी रेलवे साइडिंग में मजदूरी करने जाने लगी.
राज्य सरकार से नहीं मिलती है सुविधाएं : रश्मि
रश्मि ने बताया कि बोलानी में खेलने के लिए बेहतर पिच, जिम आदि की व्यवस्था नहीं है. गरीबी की वजह से पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है. सेल प्रबंधन ने खेलने का सामान व स्थानीय कोच की व्यवस्था की है. यह नाकाफी है. झारखंड सरकार से भी कोई सुविधा नहीं मिलती है, सिर्फ मैच के दौरान मामूली पैसे दिये जाते हैं. सरकार रांची में क्रिकेट अकादमी खोले जहां जिम, बेहतर कोच, पौष्टिक आहार आदि की तमाम सुविधा मिले.
सेल प्रबंधन व सरकार से नहीं मिल रही सुविधाएं : पिंकी
पिंकी ने बताया : मैं आठ साल की उम्र से लोगों के घरों से लेकर रेलवे साइडिंग में मजदूरी कर रही हूं. घर का काम खत्म कर शाम में क्रिकेट का अभ्यास करती हूं. रेलवे साइडिंग में कार्य से सप्ताह में 400-500 रुपये मिलते हैं. वर्ष-2012 में मामा-मामी के प्रयास से बोलानी के लेडीज क्रिकेट कोचिंग सेंटर से जुड़ी. तीन साल तक ओड़िशा में चयन नहीं हुआ. इसके बाद झारखंड में ट्रायल दिया, जहां चयन अंडर-19 टीम में हुआ. पिंकी का सपना भारतीय टीम से खेलना है. कहती है, हमारा बेहतर प्रशिक्षण, पौष्टिक आहार व बेरोजगारी की समस्या से मुक्ति के लिए सेल प्रबंधन और झारखंड सरकार से बेहतर प्रयास नहीं हो रहा है.
पांचों खिलाड़ियों में भारतीय टीम में शामिल होने की क्षमता है. उन्हें बेहतर कोच, पिच, पौष्टिक आहार, जिम, क्रिकेट का अच्छा माहौल और अकादमी नहीं मिल रहे हैं. इसमें गरीबी बाधक बनी हुई है. इन्हें प्रतिमाह कुछ पैसे व अकादमी का लाभ मिलता, तो ये काफी निखरेंगे. देश व राज्य का नाम रोशन करेंगे.
– अमरेंद्र उर्फ बुना मोहंती, कोच, सेल संचालित एलसीसी सेंटर बोलानी
इन खिलाड़ियों को सालभर क्रिकेट कीट, प्रैक्टिस के बाद हल्का नास्ता, मैच खेलने जाने-आने के लिए किराया और मैच के दौरान हर दिन 100-100 रुपये दिये जाते हैं. अगर सरकार या सेल प्रबंधन इन्हें नौकरी व अकादमी की सुविधा दे, तो बेहतर करेंगे. बोलानी में क्रिकेट अकादमी खोलने के लिए मैंने प्रस्ताव बना कर सेल के कॉरपोरेट ऑफिस दिल्ली के सहायक महाप्रबंधक (स्पोर्ट्स) सुरेंद्र खन्ना को भेजा था, जो स्वीकार नहीं हुआ. बोलांगीर (ओड़िशा) में आइपीएल की तर्ज पर महिला क्रिकेट प्रतियोगिता होगी. इसमें हमारे सेंटर की आठ खिलाड़ियों के नाम रजिस्ट्रेशन के लिए भेजा गया है.
– संजय बनर्जी, वेलफेयर कमेटी के महासचिव, सेल