।। विजय बहादुर ।।
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#IndvsPak : आज रहेगी भारतीय तेज गेंदबाजों पर निगाह
।। विजय बहादुर ।। चैम्पियंस ट्रॉफी में भारत और पाकिस्तान के बीच बहुचर्चित मुकाबला आज होने जा रहा है. इससे पहले जितने भी मुकाबले हुए उसे भारत के बैट्समैन और पाकिस्तान के बॉलर्स के बीच माना जाता था. पहली बार भारतीय पेस बैटरी उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह, भुवनेश्वर कुमार और मोहम्मद शमी की चर्चा हो […]
चैम्पियंस ट्रॉफी में भारत और पाकिस्तान के बीच बहुचर्चित मुकाबला आज होने जा रहा है. इससे पहले जितने भी मुकाबले हुए उसे भारत के बैट्समैन और पाकिस्तान के बॉलर्स के बीच माना जाता था. पहली बार भारतीय पेस बैटरी उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह, भुवनेश्वर कुमार और मोहम्मद शमी की चर्चा हो रही है. ये माना जा रहा है की भारतीय पेस अटैक अगर दूसरे देश से बेहतर नहीं तो किसी भी तरीके से कमजोर भी नहीं है. पेस लीजेंड ग्लेन मैग्रा, शाहिद अफरीदी जैसे बड़े खेलाड़ी भी भारतीय पेस अटैक की प्रशंसा कर रहे हैं.
1932 में भारत ने टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया. उसके बाद से ही भारत की बैटिंग लाइन अप और स्पिन बोलिंग को मजबूत माना जाता रहा है वहीं अगर पाकिस्तान को देखें तो उनके पास हमेशा से दुनिया के सबसे बेहतरीन गेंदबाज रहे. पीढ़ी दर पीढ़ी भारत में सुनील गावस्कर ,गुंडप्पा विश्वनाथ, दिलीप वेंगसरकर, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, सौरभ गांगुली, वीरेंद्र सहवाग जैसे बेहतरीन बल्लेबाज हुए और पाकिस्तान में इमरान खान, सरफराज नवाज, वसीम अकरम, वकार यूनुस, शोएब अख्तर जैसे बेहतरीन गेंदबाज हुए.
भारत में हर पीढ़ी में बल्लेबाज और पाकिस्तान में गेंदबाज नयी पीढ़ी के लिए रॉल मॉडल बने. इसी वजह से भारत ने दुनिया को बेहतरीन बल्लेबाज और पाकिस्तान ने बेहतरीन गेंदबाज दिए. अभी भी भारतीय टीम में विराट कोहली, रोहित शर्मा, शिखर धवन, युवराज सिंह जैसे बेहतरीन बल्लेबाज और पाकिस्तानी टीम में मोहम्मद आमिर, वहाब रियाज़, जुनैद खान जैसे तेज गेंदबाज हैं.
1932 में मोहम्मद निसार और अमर सिंह के रूप में पेस अटैक था. उसके बाद से 1979 तक कपिल देव के आने तक कभी भी तेज गेंदबाजी भारत के एजेंडा में नहीं रहा. सपाट पिच होने के कारण युवा पीढ़ी कभी भी तेज गेंदबाजी के लिए प्रेरित नहीं हुई. जबकि स्पिन भारत का हमेशा मजबूत पक्ष रहा. सुभाष गुप्ते से लेकर बिशन सिंह बेदी, चंद्रशेखर, इरापल्ली प्रसन्ना, बेंकटराघवन जैसे बेहतरीन स्पिन गेंदबाज इस देश में हुए. स्पिन के प्रभाव का ये आलम था की 1970 के दौर में एक साथ टीम में 4 स्पिन गेंदबाज तक खेलते थे.
तेज गेंदबाजी आक्रमण का काम गेंद की चमक ख़त्म करना था ताकि गेंद स्पिन गेंदबाजों को मदद करे. तेज गेंदबाजी की दुर्दशा का ये आलम था की सुनील गावस्कर जैसे विशुद्ध बल्लेबाज ने भी भारत के लिए गेंदबाजी की शुरुआत की. बीच में कुछ समय तक करसन घावरी ने भारत के लिए मध्यम तेज गेंदबाजी की.
कपिल देव के आने के बाद ही भारत में तेज गेंदबाजी की चर्चा शुरू हुई. कपिल देव भी विशुद्ध तेज गेंदबाज से ज्यादा तेज मध्यम गेंदबाज और बेहतरीन स्विंग बोलिंग के लिए जाने जाते थे. कपिलदेव के दौर में भी दूसरे छोर में कोई विशुद्ध तेज गेंदबाज नहीं रहा. बीच-बीच में रोजर बिन्नी, मदन लाल, चेतन शर्मा, मनोज प्रभाकर, राजू कुलकर्णी, सलिल अंकोला, कुरुविला जैसे गेंदबाज कपिलदेव का साथ देते रहे. लेकिन वे मध्यम तेज और स्विंग गेंदबाज थे.
भारत में फ़ास्ट बोलर्स की कमी को देखते हुए वर्ष 1987 में चेन्नई में एमआरएफ पेस फाउंडेशन की स्थापना की गयी ताकि देश भर के कम उम्र के बच्चों की तेज गेंदबाजी की प्रतिभा को पहचान कर ट्रेनिंग दी जा सके ताकि देश को तेज गेंदबाज मिले. मशहूर ऑस्ट्रेलियन तेज गेंदबाज डेनिस लिल्ली को इस पेस फाउंडेशन की जिम्मेवारी दी गयी.
इसी फाउंडेशन से भारत को पहला तेज गेंदबाज 1992 में जवागल श्रीनाथ के रूप में मिला. भारत के वो पहले गेंदबाज थे जो लगातार 135 से 145 किलोमीटर की गेंदबाजी करते थें. इसके अतिरिक्त विवेक राजदान, मुनाफ पटेल, इरफ़ान पठान, वेंकटेश प्रसाद, श्रीसंत और जहीर खान जैसे तेज गेंदबाज इसी एमआरएफ पेस फाउंडेशन से ही निकले. इसमें जहीर खान ने सबसे ज्यादा अपना प्रभाव छोड़ा.
आशीष नेहरा और इशांत शर्मा जैसे तेज गेंदबाज भी आये जो अच्छी गति से गेंदबाजी करने की क्षमता रखते हैं. लेकिन इस समय देश में एक साथ उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह, भुवनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी और बैंच स्ट्रेंथ में वरुण एरॉन, मोहित शर्मा जैसे गेंदबाज दर्जनों गेंदबाज मौजूद हैं. इसमें उमेश यादव, मोहम्मद शमी, वरुण एरॉन लगातार 140 से 150 किलोमीटर तक की गेंदबाजी करने की क्षमता रखते हैं.
भुवनेश्वर कुमार और जसप्रीत बुमराह अपनी सटीक और बेहतरीन यॉर्कर के लिए मशहूर हो गए हैं. आज के मैच में भारतीय तेज गेंदबाजी के साथ स्पिन अटैक आर आश्विन और रविंद्र जडेजा पर सबकी निगाह रहेगी.
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