Arvind Kejriwal: दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अप्रत्याशित हार ने कई राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान कर दिया है. आम आदमी पार्टी (AAP) जिसने एक समय दिल्ली की राजनीति में क्रांतिकारी बदलाव लाया था, अब सत्ता से बाहर हो चुकी है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 27 साल बाद सत्ता में वापसी की ओर कदम बढ़ा दिए हैं. पार्टी ने कई सीटों पर बढ़त बनाते हुए रुझानों में स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है. 2013 में अन्ना हजारे के आंदोलन से राजनीति में कदम रखने वाले अरविंद केजरीवाल को पहली बार चुनावी हार का सामना करना पड़ा है. चुनाव के दौरान ही हार के संकेत मिलने लगे थे, लेकिन केजरीवाल अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता के सहारे इसे जीत में बदलने की कोशिश करते रहे. इस हार के पीछे दवा, दारू, दर (शीशमहल), दीन (मुस्लिम वोट बैंक) और कालिंदी (यमुना नदी) जैसे पाँच प्रमुख कारण माने जा रहे हैं. अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली से खुद अपनी सीट से हार गए हैं. भाजपा के प्रवेश वर्मा ने उन्हें शिकस्त दी है. आइए जानते हैं, AAP की इस हार के 5 प्रमुख वजहें…
1. दवा: मोहल्ला क्लीनिक मॉडल की गिरती साख
केजरीवाल सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी अस्पतालों के मॉडल को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया था. लेकिन चुनाव से पहले आई स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोर स्थिति और मुफ्त दवाओं की अनुपलब्धता ने जनता को निराश किया. दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में बदहाल सुविधाओं और डॉक्टरों की कमी के चलते कई मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ा. इससे आम जनता में AAP सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी, जिसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ा.
2. दारू: शराब नीति पर विवाद और भ्रष्टाचार के आरोप
केजरीवाल सरकार की नई शराब नीति को लेकर विपक्ष ने जोरदार हमला किया. आरोप लगे कि नई नीति के तहत शराब के ठेकों की संख्या बढ़ा दी गई, जिससे दिल्ली में शराब की खपत बढ़ गई और कई इलाकों में कानून-व्यवस्था बिगड़ने लगी. इस मुद्दे ने महिला मतदाताओं को खासा नाराज किया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह नीति सामाजिक बर्बादी को बढ़ावा दे रही है. इसी दौरान शराब नीति में भ्रष्टाचार को लेकर मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी और घोटाले के आरोपों ने AAP की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया. इसके कारण अरविंद कुल 177 दिन जेल में रहे तो सिसोदिया ने 17 महीने जेल बिताए. यह सब उनकी नकारात्मक छवि में जुड़ता गया.
3. दर (शीशमहल): आलीशान बंगले पर विवाद
केजरीवाल, जो खुद को आम आदमी के नेता के तौर पर पेश करते थे, उनके लग्जरी “शीशमहल” बंगले को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हुआ. जब यह सामने आया कि सरकारी फंड से 45 करोड़ रुपये खर्च कर मुख्यमंत्री आवास को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया, तो जनता के बीच “आम आदमी बनाम विशेष आदमी” की बहस छिड़ गई. विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाकर AAP सरकार को घेर लिया और जनता में भी यह धारणा बनी कि केजरीवाल अब साधारण नेता नहीं रहे.
4. दीन: मुस्लिम वोट बैंक में सेंध
AAP को हमेशा से मुस्लिम वोटरों का समर्थन मिलता रहा है, लेकिन इस बार इस वोट बैंक में दरार पड़ गई. हाल के वर्षों में कई मुस्लिम समुदायों ने कांग्रेस और अन्य दलों की ओर रुख कर लिया. दिल्ली दंगों, शाहीन बाग आंदोलन और AAP की केंद्र के प्रति नरम नीति को लेकर मुस्लिम मतदाता असमंजस में रहे. यही वजह रही कि AAP को अपने पारंपरिक वोट बैंक का पूरा समर्थन नहीं मिला और इसका सीधा फायदा विपक्षी दलों को हुआ. केजरीवाल ने 2020 में हुए दिल्ली दंगों में मुस्लिम जनता का उस तरह से साथ नहीं दिया, जितनी उस समाज की अपेक्षा थी. यह भी उनकी हार के प्रमुख कारणों में रहा.
5. कालिंदी (यमुना नदी): जल संकट और प्रदूषण
दिल्ली में यमुना नदी की सफाई को लेकर बड़े-बड़े वादे किए गए थे, लेकिन हालात जस के तस बने रहे. चुनाव से पहले आई झाग से भरी यमुना नदी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जिससे AAP सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठे. जल संकट, बढ़ता प्रदूषण और खराब सीवरेज सिस्टम ने लोगों को नाराज कर दिया, खासकर उन इलाकों में जहां पानी की किल्लत सबसे ज्यादा थी. केजरीवाल ने चुनाव प्रचार के दौरान यहां तक कह गए कि यह चुनाव जिताने वाला मुद्दा नहीं है. इतना ही नहीं बीच चुनाव के दौरान हरियाणा के मुख्यमंंत्री के साथ पानी भरा गिलास भी छाया रहा.
सत्ता से बाहर हुई AAP
दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल की रेवड़ी संस्कृति बनाम भाजपा के बुनियादी विकास मॉडल की टक्कर देखने को मिली. जहां AAP लगातार मुफ्त सुविधाओं की घोषणाएं करती रही, वहीं भाजपा ने सड़कों और पानी की समस्याओं को प्रमुख मुद्दा बनाया. बुराड़ी से संगम विहार और पटपड़गंज से उत्तम नगर तक टूटी सड़कों और अधूरी मरम्मत को लेकर भाजपा ने लगातार हमले किए. आरोप लगे कि जल बोर्ड ने कई जगह सड़कें तोड़ दीं, लेकिन उनकी मरम्मत नहीं हुई, जिससे जनता को परेशानी हुई. खुद केजरीवाल ने भी सड़कों की बदहाली को स्वीकार किया था.
इसके अलावा, पानी की किल्लत और टैंकर माफिया की समस्या ने जनता को झकझोर दिया. गर्मियों में पानी की कमी एक बड़ी चिंता बनी रही, जिससे AAP की मुफ्त योजनाओं पर भी सवाल उठे. भाजपा ने जहां फ्री स्कीम जारी रखने का वादा किया, वहीं सड़कों और पानी की समस्या के समाधान का भरोसा भी दिलाया. माना जा रहा है कि दिल्ली की जनता ने इन्हीं मुद्दों पर भाजपा को मौका देने का फैसला किया.
दिल्ली चुनाव में AAP की हार कोई एक दिन में नहीं हुई, बल्कि इसके पीछे कई कारण हैं. स्वास्थ्य सेवाओं में गिरावट, शराब नीति पर विवाद, मुख्यमंत्री आवास का खर्च, मुस्लिम वोट बैंक की सेंध और जल संकट जैसे मुद्दों ने केजरीवाल सरकार की लोकप्रियता को कम कर दिया. जनता ने बदलाव का फैसला किया, और इसका सीधा असर चुनावी नतीजों में दिखा. वहीं भाजपा इस जीत से पूरी तरह बम-बम है.