गांगुली को बचपन में क्रिकेट नहीं बल्कि फुटबॉल से था प्यार, फिर ऐसे बने क्रिकेटर

भारत के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने खुलासा किया है शरुआत में उनका रुझान क्रिकेट की तरफ नहीं बल्कि फुटबॉल के तरफ हुआ करता था.

By Sameer Oraon | June 1, 2020 5:56 PM
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भारत के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने खुलासा किया है शरुआत में उनका रुझान क्रिकेट की तरफ नहीं बल्कि फुटबॉल की तरफ हुआ करता था. वो क्रिकेटर एक संयोग से बने थे. दरअसल मैं फुटबॉल को काफी गंभीरता से लेता था लेकिन मैं घर पर बहुत शरारती था इस वजह से मेरे पिता जी ने मुझसे परेशान होकर एक क्रिकेट अकादमी में डाल दिया.

ये खुलासा गांगुली ने एक एप के लाइव सेशन के दौरान किया. इस पूर्व कप्तान ने कहा कि बात तब की है जब मैं नौवीं क्लास में पढ़ता था. मेरे पिता जी बेहद अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे. लेकिन दूसरी तरफ मैं शरारती था. वो उस समय बंगाल क्रिकेट संघ से भी जुड़े थे. उन्होंने मेरी शरारत को देखते हुए मुझे एक क्रिकेट कोचिंग में दाखिला दिला दिया मैं भी पिता की सख्ती से बचने के लिए उनसे दूर हो गया. मेरा रुझान उस वक्त क्रिकेट नहीं बल्कि फुटबॉल हुआ करता था.

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लेकिन मेरे एक कोच ने मेरे खेल को देखते हुए मुझे उन्होंने क्रिकेट छोड़ने की सालह दी. मुझे नहीं पता कि उन्होंने मुझमें क्या देखा. उसके बाद मैं क्रिकेट की तरफ ध्यान देने लगा. जिसके बाद मैं क्रिकेटर बन गया. बता दें गांगुली ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत बेहद शानदार तरीके से की थी. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टेस्ट मैच से इंग्लैंड की खिलाफ की थी. जहां उन्होंने शतक बनाया था. उन्होंने अपने पहले ही टेस्ट में 131 रनों की पारी खेली थी.

उन्होंने अपने दिलीप ट्रॉफी के डेब्यू मैच में भी शतक जड़ा था, बता दें कि गांगुली को साल 2000 में अज़हरुद्दीन के मैच फिक्सिंग में फंसने के बाद कप्तान बनाया गया था. उससे पहले तेंदुलकर को अज़हर के बाद कप्तानी सौंपी गयी थी. लेकिन तेंदुलकर के कप्तानी छोड़ने के बाद गांगुली को भारत का कप्तान बनाया गया था. गांगुली ने उस मुश्किल दौर से टीम को बाहर निकाला और भारत को विदेशों में लड़ना सीखाया. गांगुली विराट और धौनी के बाद भारत के सबसे सफल कप्तान माने जाते हैं.

गांगुली ने 49 टेस्ट में भारत की कप्तानी की जिसमें 21 में मैचों में जीत मिली है, जबकि वनडे में उन्होंने 146 मैचों में कप्तानी की जिसमें भारत को 75 में जीत और 65 मैचों में हार का सामना करना पड़ा है. उनकी कप्तानी में ही भारत पहली बार 2003 के विश्व कप में फाइनल में पहुंचा था.

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