अनुज सिन्हा- साराेदिंदू नाथ बनर्जी भारतीय क्रिकेट का एक ऐसा नाम है, जिसने भले ही सिर्फ एक टेस्ट मैच खेला हाे, लेकिन इंग्लैंड की धरती पर मई, 1946 में जाे हिम्मत भरी पारी खेली थी, उसे आज भी याद किया जाता है. उन्हें सूते बनर्जी के नाम से लाेग जानते हैं. नंबर 11 पर बल्लेबाजी करते हुए सूते बनर्जी ने न सिर्फ शतक बनाया था, बल्कि नंबर 10 के खिलाड़ी चंदू सरवटे के साथ मिल कर अंतिम विकेट के लिए 249 रन की साझेदारी की थी. आज भी प्रथम श्रेणी के मैच की यह दूसरी सबसे बड़ी साझेदारी है. सूते ने रणजी में बिहार (तब झारखंड-बिहार की एक ही टीम हाेती थी) टीम की रणजी ट्रॉफी में अगुआई भी की थी.
भारतीय टीम 1936 में भी इंग्लैंड गयी थी, जिसमें सूते भी थे. आेवल टेस्ट में खेलना तय था, लेकिन टीम में गुटबाजी की वजह से उन्हें अंतिम समय में शामिल नहीं किया गया. दाैरे के बीच में ही लाला अमरनाथ काे भारत लाैटना पड़ा था. टीम दाे गुटाें में बंट गयी थी. 10 साल बाद फिर सूते ने इंग्लैंड का दाैरा किया. 11 से 14 मई, 1946 (ठीक 75 साल पहले) काे तीसरा प्रैक्टिस मैच सर्रे के खिलाफ खेला गया था. भारतीय टीम जब बल्लेबाजी करने उतरी, ताे 205 के स्काेर पर नाै विकेट गिर गये. विकेट पर थे चंदू सरवटे, जाे 10 नंबर पर खेलने आये थे.
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उनका साथ देने आये सूते बनर्जी. लाेग यही मान रहे थे कि दाे-चार आेवर में पारी खत्म हाे जायेगी, लेकिन सूते बनर्जी आैर चंदू सरवटे ने बहादुरी से सर्रे के गेंदबाजाें का सामना करते हुए अंतिम विकेट के लिए 249 रन जाेड़ दिये. दाेनाें ने शतक बनाया. सूते 121 रन बना कर आउट हुए, जबकि चंदू 121 बना कर नाबाद रहे. तब तक भारत 454 रन बना कर मजबूत स्थिति में पहुंच चुका था. ऐसा पहली बार हुआ था, जब नंबर 10 आैर नंबर 11 के खिलाड़ियाें ने एक ही मैच में शतक बनाया हाे. 75 साल बीत जाने के बावजूद अंतिम विकेट के लिए दूसरी सबसे बड़ी साझेदारी अभी भी है. सबसे अच्छी 307 रन की साझेदारी 1928 में न्यू साउथ वेल्स ने विक्टाेरिया के खिलाफ खेलते हुए की थी. तब एलेन किपैक्स ने 260 (नाबाद) आैर हाल हूकर ने 62 रन की पारी खेली थी.
सूते आैर चंदू सरवटे की उसी पारी की बदाैलत भारत ने वह मैच नाै विकेट से जीता था. बिहार रणजी के लिए खेलने वाले इस बहादुर खिलाड़ी काे बहुत माैका टेस्ट में नहीं मिला. सूते सिर्फ एक ही टेस्ट खेल पाये, लेकिन उस मैच में उन्हाेंने पांच विकेट लिये. सही मायने में वे ऑलराउंडर थे, जिन्हाेंने प्रथम श्रेणी में 138 मैचाें में पांच शतक भी बनाये आैर 381 विकेट लिये. बाद में उन्हाेंने अंपायरिंग भी की थी. इस महान खिलाड़ी का 1980 में निधन हाे गया था, लेकिन उनकी यादगार पारी काे आज भी याद किया जाता है.