दुर्जय पासवान
गुमला आदिवासी बहुल जिला है. नक्सलवाद से जूझ रहा है. गरीबी, बेरोजगारी और पिछड़ापन इसकी पहचान बन गई है. यहां तक कि हर साल युवाओं की एक लंबी फौज रोजगार के लिए दूसरे राज्य पलायन करती है. इसके इतर, गुमला जिला नित्य खेल में आगे बढ़ रहा है. इसका मुख्य कारण खेल के प्रति समर्पण है. फुटबॉल हो या एथलेटिक्स, गुमला की आदिवासी लड़कियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान छोड़ी है. अब क्रिकेट खेल में भी गुमला का नाम होने वाला है. गुमला जिले के रायडीह प्रखंड स्थित सिलम पंचायत के पांदनटोली गांव के रॉबिन मिंज क्रिकेट में उभरता सितारा हैं. आइपीएल 2024 के लिए मिनी नीलामी में गुजरात टाइटंस ने रॉबिन मिंज को 3.60 करोड़ रुपये में अपनी टीम में शामिल किया है. रॉबिन मिंज विकेटकीपर बल्लेबाज हैं. दिल्ली कैपिटल और मुंबई इंडियंस से रॉबिन ने ट्रेनिंग की है.
रॉबिन को बचपन से क्रिकेट का है शौक
रॉबिन मिंज बचपन से महेंद्र सिंह धोनी के बहुत बड़े फैन हैं. वह उनके जैसा ही क्रिकेट खेलना चाहते हैं. रॉबिन मिंज का पैतृक गांव रायडीह प्रखंड के सिलम पंचायत स्थित पांदनटोली गांव है. इसी गांव में रॉबिन का बचपन गुजरा है. हालांकि, अब पूरा परिवार रांची के नामकुम में शिफ्ट हो गया है. परंतु, अक्सर वह गुमला आते रहते हैं. गुमला आने के बाद वह अपने पैतृक गांव जाते हैं. इसके अलावा गुमला शहर के बागबाना में वह अपने बड़े पिता के घर में भी रहते हैं. अभी पांदनटोली गांव में रॉबिन के चचेरे भाई, बहन व भाभी रहती हैं. रॉबिन की दो बहनें करिश्मा मिंज व रोसिता मिंज है. वे रांची में रहती है. रॉबिन के चचेरे भाई प्रकाश मिंज ने रॉबिन मिंज के बारे में बताते हुए कहा कि रॉबिन का जन्म पांदनटोली गांव में हुआ है. उसके पिता का नाम फ्रांसिस जेवियर मिंज और माता का नाम एलिस तिर्की है. रॉबिन के पिता फौज मे थे. इस कारण वे जन्म के बाद रांची नामकुम में रहने लगे. रॉबिन जब पांच साल का था. तभी से ही उसे क्रिकेट में रुचि थी. पांच साल की उम्र में वह जलावन की लकड़ी के बैट से क्रिकेट खेलता था.
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पिता ने किया पूरा समर्थन
रॉबिन का क्रिकेट के प्रति समर्पण देखकर उनके पिता ने उसे रांची के नामकुम में प्रशिक्षण दिलाने का फैसला किया. रॉबिन मिंज की शिक्षा नामकुम में कक्षा एक तक हुई. फिर कक्षा दो से छह तक मजरेलो कॉन्वेंट स्कूल नामकुम में पढ़ाई चली. मैट्रिक डीएवी नागेश्वर से किया. वहीं रॉबिन मिंज का क्रिकेट कोचिंग की शुरुआत नामकुम बाजार मैदान से हुई. क्रिकेट के लिए जेवियर स्कूल में कोचिंग की. उसके बाद सोनेट कोचिंग ज्वाइन किया. रॉबिन की इस सफलता पर पूरा परिवार गर्व कर रहा है. भाभी जेमा मरियम मिंज, पूनम मिंज, आलोक मिंज, ज्योति मिंज ने कहा कि ईश्वर से प्रार्थना है कि रॉबिन का चयन इंडिया टीम में हो. क्योंकि वह टी-20 में बेहतर करेगा. एक अच्छा विकेटकीपर होने के साथ-साथ वह बेहतरीन बल्लेबाजी भी करता है.
प्रशासन से उम्मीद, गांव का होगा विकास
रॉबिन के परिवार के लोगों ने कहा है कि रॉबिन का चयन तो आईपीएल में हो गया. लेकिन, हमारे घर में टीवी नहीं है. आईपीएल मैच कैसे देखेंगे. बता दें कि रॉबिन मिंज जिस पांदनटोली गांव का है. वह गांव आज भी सरकारी योजनाओं से वंचित है. हालांकि, आज से आठ साल पहले तक पांदनटोली गांव में पीएलएफआइ व माओवादियों का आना जाना लगा रहता था. लेकिन, बदलते समय के साथ नक्सलियों का आना जाना बंद हो गया. फिर भी गांव का विकास ठप है. कभी भी प्रशासन ने इस गांव के विकास पर ध्यान नहीं दिया. आज भी जरूरत की चीजें जैसे पानी, शौचालय, रोजगार जैसी समस्या से यह गांव जूझ रहा है. अब गांव के लोगों को प्रशासन से उम्मीद है कि गांव का बदलाव होगा.
रॉबिन मिंज के खेल का सफर
बचपन में गांव में जलावन की लकड़ी से मैच खेलता था. उसके बाद वह रांची चला गया. नामकुम ग्राउंड में मैच खेलना शुरू किया. सौरभ विश्वकर्मा ने बताया कि नामकुम ग्राउंड में अभ्यास करते हुए रॉबिन गुमला जिला क्रिकेट टीम से मैच खेलना शुरू किया. वह गुमला में आकर लगातार अभ्यास करता था. इंग्लैंड में आयोजित ट्रायल में जाने से पहले जून माह में रॉबिन गुमला आया था. वह गुमला में कई दिनों तक अभ्यास किया. इसके अलावा स्थानीय टीमों के साथ कई मैचों में भाग लिया. हालांकि, वह अपनी मंजिल पाने के लिए नामकुम ग्राउंड में लगातार पसीना बहाता रहा. अभी भी वह रांची में हर दिन सुबह शाम अभ्यास कर रहा है.