गुरुवार (24 मार्च, 2022) को अचानक महेंद्र सिंह धोनी ने चेन्नई सुपर किंग की कप्तानी छोड़ दी और जिम्मेवारी रवींद्र जडेजा को सौंप दी. ये अचानक से उठाया गया कदम लगता है, लेकिन धोनी के पूरे करियर का आकलन करने पर ये कदम बिल्कुल भी चौंकाता नहीं है. धोनी के द्वारा वर्ष 2015 में टेस्ट टीम की कप्तानी छोड़ने के साथ संन्यास की घोषणा भी अचानक ही की गयी थी.
इसके बाद इसी तरीके से वर्ष 2017 में वन डे और टी-20 क्रिकेट टीम की कप्तानी छोड़ी और वर्ष 2020 में क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट से संन्यास ले लिया. महेंद्र सिंह धोनी ना सिर्फ बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं, बल्कि कप्तान के रूप में उन्होंने जिस तरीके से टीम को लीड किया, उसे भारतीय क्रिकेट के सबसे बेहतरीन वर्षों के रूप में जाना जाता है.
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अगर आप धोनी के लीडर के रूप में काम करने के तरीके का आकलन करेंगे, तो एक चीज लीडर के रूप में उन्हें और भी प्रभावशाली बनाती है और वह है कि उन्होंने ना सिर्फ अपनी कप्तानी में बेहतरीन प्रदर्शन किया, बल्कि समय रहते अपनी निगरानी और मार्गदर्शन में अपने बाद की टीम के लिए विराट कोहली और रवींद्र जडेजा को तैयार किया. धोनी ने अपने बाद आनेवाली संभावित लीडरशिप की शून्यता का समय रहते निष्पादन कर दिया.
महेंद्र सिंह धोनी हो या कोई दूसरा, उसके लीडरशिप की कसौटी यही है कि उसने अपने कालखंड में किस तरीके से परफॉर्म किया. उनके बाद संस्थान/टीम बेहतर तरीके से आगे बढ़ता रहे, उसके लिए किस तरीके से अपने बीच से लीडरशिप को आगे सिखाया/बढ़ाया. अमूमन जिन संस्थानों/टीम में अंदर से लीडरशिप को आगे बढ़ाया जाता है, वह बेहतर तरीके से संक्रमण काल से निपट पाता है क्योंकि वह बाहर से लाये गए किसी भी व्यक्ति की अपेक्षा संस्थान के काम करने की कार्यप्रणाली को बेहतर तरीके से समझता है.
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संस्थानों में शीर्ष पर जो हैं, उन्हें पता होता है की उनके प्रोफेशनल जीवन का नियत कालखंड है और ये एक रिले दौड़ की तरह है. इसमें आज जो लीड कर रहे हैं उन्हें बागडोर किसी ने थमाई थी और संस्थान आगे भी बेहतर करता रहे इसके लिए जरूरी है कि समय रहते जिम्मेवारी नये लीडर को सौपने का मार्ग सुगम करें. लब्बोलुआब ये है कि किसी भी लीडर को सफल तभी माना जा सकता है कि जब उसने अपने लीडरशिप में टीम का किस तरीके से नेतृत्व किया, बल्कि अपने बाद संस्थान/टीम को कैसे आगे बढ़ाया. साथ ही उसके लिए समय रहते अपने बीच से ही लीडरशिप कैसे तैयार किया.