विश्वकप 2023 की शुरुआत होने में मात्र दो दिन शेष हैं, ऐसे में क्रिकेट जगत के दिग्गज जहां इस बार भारत की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं, वहीं वे विश्वकप से जुड़ी यादों को भी ताजा कर रहे हैं, इसी क्रम में भारतीय स्पिनर रविचंद्रन अश्विन और कमेंटेटर हर्षा भोगले ने ‘कुट्टी स्टोरिज विद ऐश’ शो में भारतीय टीम के दि राइज एंड फाॅल पर चर्चा की. कुट्टी स्टोरिज विद ऐश के चौथे एपिसोड में अश्विन और भोगले ने चर्चा की कि किस प्रकार 2003 और 2007 में टीम में बदलाव हुए और टीम में युवाओं ने अपनी पैठ बनाई.
कुट्टी स्टोरिज विद ऐश में हर्षा भोगले बताते हैं कि किस प्रकार 2003 की टीम में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी मौजूद थे. मसलन सचिन तेंदुलकर अपने करियर के चरम पर थे. राहुल द्रविड़ शीर्ष पर थे और कई युवा भी टीम में जगह बना चुके थे, जैसे कि वीरेंद्र सहवाग, हरभजन सिंह, जहीर खान और युवराज सिंह. युवाओं की टीम ने भारतीय टीम को नयी ऊंचाई दी.
रविचंद्रन अश्विन ने नैरोबी में खेले गए चैंपियंस ट्राॅफी की चर्चा करते हुए बताया कि प्रकार युवराज सिंह ने ब्रेट ली और ग्लेन मैकग्रा की धुनाई की थी. उन्हें इस बात का कोई डर नहीं था कि सामने कौन सा गेंदबाज है. उन्होंने कहा कि यह भारतीय क्रिकेट का अनोखा दौर था जब बैट्समैन आत्मविश्वास से भरे थे और बेहतरीन खेल का प्रदर्शन कर रहे थे. निश्चित तौर पर वह सौरव गांगुली की टीम थी, जिसने भारतीय क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत की जो आत्मविश्वास से भरी थी.
हर्षा भोगले ने गेंदबाज जहीर खान को याद करते हुए कहा कि भारतीय टीम ने कपिल देव को देखा था, वेंकेटश प्रसाद को देखा था, अजीत अगरकर को देखा था, नेहरा को देखा था, लेकिन फिर आए जहीर खान. जहीर खान बाएं हाथ के गेंदबाज थे. आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच के बाद वसीम अकरम ने हर्षा से कहा था -कल जिस लड़के ने बाॅलिंग की थी, उसे मेरे पास भेजना, कुछ बात है लड़के में. उसके बाद मैंने ये बात टीम मैनेजमेंट को बताई. अश्विन ने कहा कि हमने कपिल देव का युग देखा, वेंकटेश का युग देखा, सचिन का युग देखा, नि: संदेह जहीर गांगुली के मैन थे. यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि सौरव गांगुली ने भारतीय क्रिकेट जगत का वह दौर दिया, जिसने भारतीय क्रिकेट को बदल कर रख दिया.
सौरव गांगुली की टीम ने जूझना, लड़ना और जीतना सिखाया. जबकि सौरव गांगुली मात्र एक ही विश्वकप में टीम इंडिया के कैप्टन रहे. सौरव की कप्तानी को याद करते हुए हर्षा भोगले ने कहा कि सचिन को जब टीम इंडिया की कप्तानी मिली तो किसी ने यह नहीं सोचा था कि वे इतनी जल्दी कप्तानी छोड़ देंगे, लेकिन सचिन ने कप्तानी छोड़ दी उनके बाद सौरव गांगुली को यह जिम्मेदारी मिली. सौरव गांगुली ऐसे व्यक्ति थे तो संभवत: कप्तानी के लिए ही बने थे. उनके साथ एक और बहुत बड़ी बात थी और वह था जगमोहन डालमिया का सपोर्ट. जब आपको एक बड़ी जिम्मेदारी मिले और आपका बाॅस आपके सपोर्ट में हो तो काम आसान हो जाता है और आत्मविश्वास बना रहता है.
सौरव में यह आत्मविश्वास दिखता था और यही वजह थी कि उन्होंने आसानी से निर्णय लिए. वीरेंद्र सहवाग से ओपनिंग कराना है, युवराज को किस आॅर्डर पर उतारना है. यह वह दौर था जब युवा क्रिकेटर्स ने नया इतिहास लिखा. टीम इंडिया का वह इतिहास जो बहुत खूबसूरत था, जिसमें संभावनाएं थीं, आत्मविश्वास था और जज्बा था. 2003 विश्वकप की टीम उत्साह से लबरेज थी और कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी. सौरव गांगुली की यह टीम युवाओं की टीम थी और उन्हें अपने कैप्टन का पूरा सपोर्ट था. सौरव गांगुली युवाओं के माइंडसेट को समझते थे और उन्हें पूरा मौका देते थे. हर्षा भोगले ने बताया कि नेहरा ने उनसे कहा था अगर सौरव आप पर विश्वास करते थे तो वो आपको टीम से जाने नहीं देते थे, अगर आप चोटिल हैं तब भी वे कहते थे, नहीं आप टीम में रहिए, कोई दिक्कत नहीं है.
2003 के विश्वकप में भारत की टीम फाइनल तक गई, भले ही टीम विनर नहीं बनीं, लेकिन इन एरा ने भारतीय क्रिकेट को बदला. 2003 के विश्वकप में आॅस्ट्रेलिया की सुपर स्टार से भरी पड़ी थी, उन्होंने फाइनल में बेहतर खेल दिखाया और वे जीते. रिंकी पोंटिंग ने 140 रन की नाबाद पारी खेली थी, जबकि मार्टिन 88 रन पर नाबाद रहे थे. सचिन इस मैच में मात्र चार रन ही बना पाए थे, जबकि सहवाग ने 82 रन बनाए थे.
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