Sunil Gavaskar Birthday: बड़ी रोचक है ‘मछुआरे’ से क्रिकेटर बनने की कहानी, जानें…
Sunil Gavaskar Birthday: टीम इंडिया के पूर्व स्टार बल्लेबाज सुनील गावस्कर 75 साल के हो गए हैं. उनकी फिटनेस अब भी युवाओं के लिए प्रेरणा है. लेकिन एक घटना ऐसी घटी कि गावस्कर के चाचा नहीं होते तो वह आज एक क्रिकेटर नहीं, मछुआरे होते. इसी के बारे में आपको जानकारी दे रहे हैं.
विधान चंद्र मिश्र
टेस्ट में 34 शतक. टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में 10,000 का आंकड़ा छूने वाले पहले क्रिकेटर. 1971 से लेकर 1987 तक कई शानदार पारियां खेलीं, जिससे ‘लिटिल मास्टर’ का उपनाम मिला. क्रिकेट की दुनिया में तब पैर रखा था, जब टेस्ट में वेस्टइंडीज की पेस बैटरी की तूती बोलती थी, लेकिन ‘लिटिल मास्टर’ ने अपनी आतिशी बैटिंग से वेस्टइंडीज के गेंदबाजों के छक्के छुड़ा दिये. सचिन तेंदुलकर से लेकर राहुल द्रविड़ सहित दुनिया के दिग्गज क्रिकेटर जिन्हें आदर्श मानते हैं उस महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर के अगर काका नहीं होते, तो वह मछुवारे होते. शायद उनका काम मछली पकड़ना होता. वनडे 1983 विश्व कप विजेता भारतीय टीम के सदस्य रहे गावस्कर बुधवार को 75 वर्ष के हो जायेंगे, लेकिन जन्म के समय एक घटना गावस्कर को आज भी चिंतित कर देती है.
अस्पताल में बदल दिए गए थे गावस्कर
सुनील गावस्कर का जन्म 10 जुलाई,1949 मुंबई के अस्पताल में हुआ. गावस्कर से मिलने के लिए उनके परिवार के कई सदस्य अस्पताल आये थे. उनमें उनके काका भी थे. काका ने गावस्कर के कान पर एक बर्थमार्क देखा था. अगले दिन जब काका अस्पताल आये और उन्होंने जिस बच्चे को गोद में उठाया, उस बच्चे के कान पर वह निशान नहीं मिला. काका ने चिंचित हो कर हंगामा किया. फिर पूरे अस्पताल में बच्चों को चेक किया गया और गावस्कर मछुआरे की पत्नी के पास मिले थे. नर्स ने गलती से वहां सुला दिया था. बच्चों को नहलाते समय वह बदल गये थे. काका ने ध्यान नहीं दिया होता, तो हो सकता था कि वह मछुआरे होते. हालांकि ऐसा नहीं हुआ सुनील गावस्कर क्रिकेट के उस दौर के नायक बने, जब भारतीय क्रिकेट आज की तरह चमक-दमक वाला नहीं था. ना ही यह खेल आज की तरह पसंद किया जाता था. देश में क्रिकेट को नयी लहर देने वाले अगर कोई थे, तो वो सुनील गावस्कर ही हैं.
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स्कूल के समय से ही रहे बेस्ट क्रिकेटर
अपने पढ़ाई के दिनों से ही सनी एक अच्छे क्रिकेटर के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे. 1966 में सुनील को भारत का ‘बेस्ट स्कूल ब्वॉय’ का पुरस्कार मिला था. सेकेंडरी शिक्षा के अंतिम वर्ष में दो लगातार डबल सेंचुरी लगाकर उन्होंने सबका ध्यान आकर्षित किया. 1966 में ही उन्होंने रणजी के मैंचो में अपना डेब्यू किया. रणजी मैच में कर्नाटक के साथ खेलते हुए उन्होंने फिर से दोहरा शतक लगाया और चयनकर्ताओं को प्रभावित किया. 1971 के टूर के लिए उन्हें वेस्टइंडीज दौरे के लिए टीम के लिए चुना गया. डेब्यू के बाद तीसरी ही पारी में शतक जड़ कर गावस्कर ने जता दिया था कि वह लंबे रेस का घोड़ा हैं. बिना हेलमेट के क्वींस पार्क ओवल में अंतिम मैच में उन्होंने वेस्टइंडीज के खतरनाक गेंदबाजों का मुकाबला करते हुए मैच के दोनों पारियों में दो शतक लगाये और टीम को खतरे से बाहर निकाला. डेब्यू सीरीज में वेस्टइंडीज के खिलाफ 774 बनाया था. गावस्कार की खेलने की शैली रक्षात्मक और स्टाइलिश थी. वे कलात्मक तरीके से किसी भी गेंदबाद को परेशान कर देते थे. आलोचकों का कहना है गावस्कर गेंद को काफी नजदीक से खेलते हैं. फ्रंट फुट पर उनकी तरह का खेल बाद के जेनरेशन में सिर्फ सचिन ही खेल पायें.
क्रिकेट की पहली शिक्षा उन्हें परिवार से मिली
गावस्कर के क्रिकेटिंग करियर को आकार देने में उनके पिता मनोहर गावस्कर के साथ ही मां मीनल का अहम योगदान रहा. सुनील गावस्कर बचपन में टेनिस गेंदों से खेलते थे और उनकी मां उन्हें गेंदबाजी किया करती थीं. उसके बाद भारत का यह सितरा ऐसा चमका कि उनकी कोई सानी नहीं रही. गावस्कर ऐसे बल्लेबाज थे, जिन्हें आउट करने के लिए कोई भी गेंदबाज कितना भी जोर लगा ले, लेकिन वह आउट नहीं होते थे. गावस्कर जबतक चाहते वह क्रीज पर जमे रहते थे, भले ही उनके बल्ले से रन न निकले.
विवादों से भी रहा है नाता
सुनील गावास्कर अक्सर अपने निष्पक्ष बयान की वजह से चर्चे में रहते हैं, लेकिन 1981 में मेलर्बोन में अंपायर द्वारा आउट करार दिये जाने पर अपने साथी खिलाड़ी को भी मैदान से खींचकर बाहर कर दिया. हरभजन सिंह के मंकीगेट के बयान पर भी आलोचना का सामना करना पड़ा था. ऐसे कई मामले हैं, जिसकी वजह से गावस्कर विवादों में रहे हैं. विराट कोहली पर भी उनका एक बयान था, जिसका विराट की पत्नी अनुष्का ने भी विरोध किया था. हालांकि बाद में उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके कहने का मतलब वह नहीं था, जो लोग सोंच रहे थे.