एशियाई खेलों में दिख रहा है भारत-पाक के खिलाड़ियों का आपसी सौहार्द

पालेमबांग : भारत-पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक कटुता को देखते हुए शांति भले ही एक सपना लगती हो लेकिन बड़े खेल आयोजनों में दोनों देशों के खिलाड़ी एक दूसरे से खुलकर मिलते जुलते हैं, यहां तक कि एक दूसरे की जमकर हौसला अफजाई भी करते हैं और यहां चल रहे एशियाई खेलों में भी ऐसा ही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 25, 2018 1:14 PM

पालेमबांग : भारत-पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक कटुता को देखते हुए शांति भले ही एक सपना लगती हो लेकिन बड़े खेल आयोजनों में दोनों देशों के खिलाड़ी एक दूसरे से खुलकर मिलते जुलते हैं, यहां तक कि एक दूसरे की जमकर हौसला अफजाई भी करते हैं और यहां चल रहे एशियाई खेलों में भी ऐसा ही दिख रहा है.

रोहन बोपन्ना और दिविज शरन जब जकाबरिंग टेनिस सेंटर में पुरूष युगल का सेमीफाइनल खेल रहे थे पाकिस्तान की टेनिस टीम उनका समर्थन कर रही थी. शीर्ष वरीय भारतीय जोड़ी ने बाद में शुक्रवार को स्वर्ण पदक जीता. पाकिस्तान के खिलाड़ी बोपन्ना के साथ तस्वीर खिंचाने के लिए कतार में खड़े थे. बोपन्ना 2010 में अपने पाकिस्तानी जोड़ीदार ऐसाम-उल-हक के साथ ग्रैंड स्लैम के फाइनल में पहुंचे थे. बोपन्ना-कुरैशी को ‘पीस एक्सप्रेस’ नाम से बुलाया जाता था क्योंकि दोनों खिलाड़ी दोनों देशों के बीच शांति की जरूरत पर हमेशा जोर देते थे.

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2000 से 2010 के बीच कई आईटीएफ फ्यूचर्स टूर्नामेंट जीतने वाले पाकिस्तान के टेनिस खिलाड़़ी अकील खान ने कहा, ‘‘मैंने भारत में अपना कुछ सर्वश्रेष्ठ टेनिस खेला है, वहां खासकर दिल्ली में कई अच्छे दोस्त बनाए। मैं उनसे हमेशा संपर्क में रहता हूं. मैं जब भी दिल्ली में खेला, मुझे वह अपना दूसरा घर लगा.” इसी तरह निशानेबाजी रेंज में भी दोनों देशों के खिलाड़ियों के बीच सौहार्द्र दिखा. रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले पिस्टल निशानेबाज गुलाम मुस्तफा बशीर ने कहा कि भारतीय खिलाड़ियों के साथ उनकी दोस्ती होना स्वाभाविक है.

उन्होंने कहा, ‘‘भारतीयों के साथ हमारी तुरंत ही बनने लगती है. हम एक ही भाषा बोलते हैं इसलिए भाषा की कोई समस्या नहीं होती जो कि दूसरे देशों के खिलाड़ियों के साथ होता है. हमारा एक दूसरे के साथ हमेशा दोस्ताना रूख होता है.” वह भारत के पिस्टल कोच जसपाल राणा के साथ अकसर अपने खेल पर चर्चा करते हैं. राणा एशियाई खेलों में चार बार स्वर्ण पदक जीत चुके हैं.

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राणा ने कहा, ‘‘पाकिस्तान के ज्यादातर निशानेबाज रक्षा बलों से आते हैं। हमारे बीच अच्छी बनने लगती है लेकिन एक दूरी बनाए रखना जरूरी होता है. इसके अलावा कोई और दिक्कत नहीं है। मुझे याद है कि एक बार मैं कराची गया था वहां सबने हमारे साथ काफी अच्छा व्यवहार किया.”

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