बंगाल की बेटी स्वपना ने रचा इतिहास, हेप्टाथलन में जीता गोल्ड, जानिए स्वपना की संघर्ष की कहानी
जकार्ता/जलपाईगुड़ी : पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी की स्वपना बर्मन ने दांत दर्द के बावजूद बुधवार को यहां एशियाई खेलों की हेप्टाथलन में स्वर्ण पदक जीतकर नया इतिहास रचा. वह इन खेलों में सोने का तमगा जीतनेवालीं पहली भारतीय हैं. 21 वर्षीय बर्मन ने दो दिन तक चली सात स्पर्द्धाओं में 6026 अंक बनाये. इधर, स्वपना […]
जकार्ता/जलपाईगुड़ी : पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी की स्वपना बर्मन ने दांत दर्द के बावजूद बुधवार को यहां एशियाई खेलों की हेप्टाथलन में स्वर्ण पदक जीतकर नया इतिहास रचा. वह इन खेलों में सोने का तमगा जीतनेवालीं पहली भारतीय हैं. 21 वर्षीय बर्मन ने दो दिन तक चली सात स्पर्द्धाओं में 6026 अंक बनाये. इधर, स्वपना के गोल्ड जीतने पर जलपाईगुड़ी में जश्न का माहौल है. स्वपना की उपलब्धियों से पूरा परिवार खुश है.
इस दौरान स्वपना ने ऊंची कूद (1003 अंक) और भाला फेंक (872 अंक) में पहला तथा गोला फेंक (707 अंक) और लंबी कूद (865 अंक) में दूसरा स्थान हासिल किया था. उनका खराब प्रदर्शन 100 मीटर (981 अंक, पांचवां स्थान) और 200 मीटर (790 अंक, सातवां स्थान) में रहा. सात स्पर्द्धाओं में से आखिरी स्पर्द्धा 800 मीटर में उतरने से पहले बर्मन चीन की क्विंगलिंग वांग पर 64 अंक की बढ़त बना रखी थी. उन्हें इस आखिरी स्पर्द्धा में अच्छा प्रदर्शन करने की जरूरत थी और वह इसमें चौथे स्थान पर रहीं. इसी स्पर्द्धा के दौरान वह पिछले साल भुवनेश्वर में एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप के दौरान गिर गयी थी,
लेकिन बुधवार को इसमें चौथे स्थान पर रहने के बावजूद वह चैंपियन बनीं. हेप्टाथलन में भाग ले रही एक अन्य भारतीय पूर्णिमा हेम्ब्रम 800 मीटर में उतरने से पहले जापान की युकी यामासाकी से 18 अंक पीछे थी, लेकिन उन्होंने बर्मन से थोड़ा पहले दौड़ पूरी की और ओवरआल 5837 अंक लेकर चौथे स्थान पर रही.
बर्मन से पहले बंगाल की सोमा विश्वास तथा कर्नाटक की जेजे शोभा और प्रमिला अयप्पा ही एशियाई खेलों में इस स्पर्द्धा में पदक जीत पायी थीं. सोमा और शोभा बुसान एशियाई खेल (2002) और दोहा एशियाई खेल (2006) में क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थीं, जबकि प्रमिला ने ग्वांग्झू (2010) में कांस्य पदक जीता था.
सोना जीतने के बाद स्वपना बर्मन ने कहा कि उनका सपना पूरा हो गया. प्रतियोगिता के पहले वह चोटिल थी. एक वक्त ऐसा आ गया था, जब लगा था कि प्रतियोगिता से हटना पड़ेगा. फिर स्वपना ने सोचा कि चार साल का अभ्यास यूं ही कैसे जाया हो सकता है? इतने लोगों की आशा का क्या होगा? इसके बाद उनके कोच ने कई डॉक्टर को दिखाया.
मुंबई में उन्होंने कई डॉक्टर को दिखाया. धीरे-धीरे उनकी चोट ठीक होती गयी. उनका प्रदर्शन सुधरता गया. स्वपना कहती हैं कि उनकी प्रैक्टिस ही केवल नहीं बल्कि लोगों का आशीर्वाद भी उनके साथ था, तभी उन्हें स्वर्ण पदक मिल सका. यह जीत उनकी वापसी कही जा सकती है. यह अबतक की उनकी सबसे बड़ी सफलता और सबसे बड़ी खुशी है.
स्वपना की जीत से गौरवान्वित हुआ बंगाल
जलपाईगुड़ी : जलपाईगुड़ी जिले के एक गरीब परिवार की बेटी स्वपना बर्मन ने एशियन गेम्स में हेप्टाथलन प्रतियोगिता में सोना जीतकर देश का नाम रोशन किया है.
बुधवार को टीवी पर यह खबर देखते ही उसका परिवार और गांव खुशी से झूम उठा. पूरे इलाके में मिठाई खिलाने और अबीर-गुलाल खेलने का दौर शुरू हो गया. इस खबर से पूरा देश आह्लादित है, पर जलपाईगुड़ी समेत पूरे पश्चिम बंगाल के लिए यह अपनी बेटी पर गर्व का विषय है. स्वपना ने इससे पहले साल 2017 में भुवनेश्वर में आयोजित एशियन एथलेटिक्स गेम्स में हेप्टाथलन में सोना जीता था. तभी से स्वपना को लेकर सभी की उम्मीदें परवान पर थीं. कहा जाता है कि प्रतिभा को कोई बाधा रोक नहीं सकती. इसे पूरी तरह चरितार्थ करती है स्वपना.
जलपाईगुड़ी सदर ब्लॉक की पातकाटा ग्राम पंचायत के कालियागंज के घोषपाड़ा निवासी स्वपना बर्मन के पिता पंचानन बर्मन पेशे से रिक्शा-वैन चालक थे और उसकी मां बासना बर्मन चाय बागान श्रमिक. आठ साल पहले पंचानन को ब्रेन स्ट्रोक हुआ और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया. पति की देखभाल के लिए बासना बर्मन को अपनी चाय बागान की नौकरी छोड़नी पड़ी. स्वप्ना का एक बड़ा भाई है असित बर्मन, जो राजमिस्त्री का काम करता है. मां बासना बर्मन ने बताया कि अपने पड़ोसी विभूति सेन और अशोक सेन की जमीन पर बंटाई पर काम करके उन्होंने स्वप्ना को बड़ा किया है.
उसके परिवार के पास न तो अपनी जमीन थी और न ही मकान. बासना बर्मन ने बताया कि खेल में स्वप्ना की सफलताओं से खुश होकर पड़ोसी सेन परिवार ने पांच साल पहले साढ़े तीन कट्ठा जमीन स्वप्ना के नाम कर दी. इसी जमीन के एक हिस्से में पंचायत समिति ने चार साल पहले टिन का एक छोटा-सा घर बनवा दिया, तो परिवार केसिर पर अपनी छत हो गयी.
बेटी को अब नौकरी की जरूरत : मां
स्वपना के संघर्ष और सफलता की कहानी राज्य सरकार की ओर से कन्याश्री विभाग में आठवीं कक्षा की स्वास्थ्य एवं शरीर शिक्षा की पाठ्य पुस्तक में शामिल की जा चुकी है. बीमारी से बिस्तर पर पड़े पिता अपनी बेटी की सफलता से भावुक हो उठे. मां भी अपने आंसू नहीं रोक पायी.
मां ने बताया कि इलाके के विभिन्न संगठन व समाजसेवियों की मदद से स्वप्ना आज इस मुकाम पर पहुंची है. वह सभी की बहुत-बहुत आभारी हैं. मां बासना बर्मन ने कहा कि बेटी विश्व चैम्पियन बने, यही उनकी ख्वाहिश है. लेकिन अभी उसे नौकरी की काफी जरूरत है. आर्थिक सुरक्षा मिलने से वह और अच्छा खेल पायेगी. हमारा आधापेट खाकर रहना आज सफल हो गया.
2008 में जेनरल डिब्बे में गये थे कोलकाता : कोच
कालियागंज उत्तमेश्वर उच्च विद्यालय में स्वप्ना के गेम्स शिक्षक रहे विश्वजीत मजूमदार ने बताया कि स्वपना बर्मन इस स्कूल में 2006 में भर्ती हुई थी. वह रोज शाम को तीन से लेकर पांच बजे तक उसे प्रशिक्षण देते थे. 2008 में ट्रेन के जनरल डिब्बे में उसे कोलकाता में साई के कैम्प में चयन के लिए ले गया. लेकिन उस साल उसका चयन नहीं हो पाया.
स्वपना के लिए सफलता का दरवाजा अगले साल खुल गया और उसे साई के कैम्प के लिए चुन लिया गया. 2012 में जूनियर नेशनल गेम्स में हाइ जंप में उसने सोना जीता. इसके अगले साल उसने एथलेटिक स्कूल ट्रैक एंड फील्ड में हाइ जंप, भाला फेंक, हैमर थ्रो में सोना हासिल किया. 2014 में दक्षिण कोरिया में आयोजित एशियन खेलों में भी स्वपना ने हिस्सा लिया था, लेकिन उस साल किस्मत ने उतना साथ नहीं दिया और वह चौथे स्थान पर रह गयी.
जूते को लेकर हुई समस्या
2012-13 में स्वपना के खेल करियर ने उड़ान भरना शुरू किया. इस दौरान एक बड़ी समस्या आयी बेटी के पैर के हिसाब से जूते मिलने की, क्योंकि स्वप्ना के पैरों में पांच की जगह छह-छह उंगलियां हैं. इसके लिए विशेष ऑर्डर पर जूते बनवाने की जरूरत थी, पर इसके लिए पैसे नहीं थे. लेकिन कोच और बहुत से सहृदय लोग मदद के लिए आगे आये और उसके लिए जूतों की व्यवस्था हुई. आज बेटी के लिए जूते अमेरिका से आते हैं. यह बताते बासना बर्मन फूट-फूट कर रो पड़ीं.