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एशियाई खेलों में 69 पदकों के साथ भारत ने तोड़ा 8 साल पुराना रिकॉर्ड, ऐसा रहा गोल्‍डन सफर

जकार्ता : पिछले दो हफ्ते में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बहु स्पर्धाओं वाले टूर्नामेंट में हासिल की गयी उपलब्धियों को देखते हुए भारत को उज्जवल भविष्य की उम्मीद दिखती है. भारत ने राष्ट्रमंडल खेलों के बाद 2018 एशियाई खेलों में पदकों की संख्या में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके एक कदम आगे बढ़ाया है. ओलंपिक खेलों […]

जकार्ता : पिछले दो हफ्ते में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बहु स्पर्धाओं वाले टूर्नामेंट में हासिल की गयी उपलब्धियों को देखते हुए भारत को उज्जवल भविष्य की उम्मीद दिखती है.

भारत ने राष्ट्रमंडल खेलों के बाद 2018 एशियाई खेलों में पदकों की संख्या में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके एक कदम आगे बढ़ाया है. ओलंपिक खेलों के बाद दूसरे नंबर पर आंके जाने वाले इन महाद्वीपीय खेलों में भारत ने कभी भी इतना शानदार प्रदर्शन नहीं किया था. जकार्ता और पालेमबांग से लौट रहे पदकधारियों के लिये यह उपलब्धि शानदार है और पोडियम स्थान के बढ़ने से क्रिकेट के प्रति जुनूनी देश में ओलंपिक खेलों के लिये उत्साह बढ़ सकता है.

खिलाड़ियों ने देश के लिये सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया जिसमें युवा सौरभ चौधरी से लेकर 60 साल के प्रणब बर्धन तक शामिल रहे. हालांकि भारत को कबड्डी और हॉकी में उलटफेर का सामना करना पड़ा. भारत ने कुल 69 पदक अपनी झोली में डाले जिसमें 15 स्वर्ण, 24 रजत और 30 कांस्य पदक शामिल रहे. वहीं 8 साल पहले चीन में देश ने 65 पदक जीते थे.

भारत ने 1951 में शुरुआती खेलों में हासिल किये गये 15 स्वर्ण पदकों की बराबरी की लेकिन देश ने इससे पहले कभी भी 24 रजत पदक नहीं जीते थे. कुल मिलाकर भारत ने शीर्ष 10 में अपना स्थान कायम रखते हुए फिर से आठवां स्थान हासिल किया.

हर बहु स्पर्धा वाले टूर्नामेंट में विवाद होते हैं और इस बार भी कुछ अलग नहीं रहा. हालांकि जब एक बार खेल शुरू हो जाता है तो एथलीट और उनका प्रदर्शन ही सुर्खियों में रहता है. ट्रैक एवं फील्ड स्पर्धा भारत के लिये सबसे ज्यादा पदक जुटाने वाला खेल रहा जिसमें देश ने गेलोरा बंग कर्णो स्टेडियम में 15 में से सात स्वर्ण पदक जुटाये.

तेजिंदर पाल सिंह तूर ने जहां 20.75 मीटर के रिकार्ड से एथलेटिक्स में पहला पदक दिलाया तो वहीं पैरों में 12 अंगुलियों वाली स्वप्ना बर्मन ने इतिहास के पन्नों में अपना नाम लिखवा लिया, वह खेलों में पीला तमगा जीतने वाली देश की पहली हेप्टाथलीट बन गयीं.

दुती चंद ने भी ट्रैक पर धमाकेदार वापसी की और ट्रैक पर दो रजत पदक जीतने में सफल रहीं, जिसमें से 100 मीटर में भारत ने 20 साल में पहला पदक हासिल किया. अगर अफ्रीका में जन्में मजबूत एथलीट कतर और बहरीन जैसे देशों का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे होते तो भारत के स्वर्ण पदकों की संख्या और ज्यादा बड़ी हो सकती थी.

इसी कारण हिमा दास को 200 मीटर में रजत पदक से संतोष करना पड़ा क्योंकि वह नाईजीरिया में जन्मीं सलवा ईद नासर से पिछड़ गयीं. नीरज चोपड़ा ने उम्मीदों के अनुरूप शानदार उपलब्धि हासिल की और वह भाला फेंक में स्वर्ण जीतने वाले पहले भारतीय बन गये.

धावक मंजीत सिंह और जिनसन जानसन ने भी अपने शानदार प्रदर्शन से कुछ आंकड़ों में बदलाव किया. भारत की बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल और पी वी सिंधू ने शानदार खेल दिखाते हुए देश का व्यक्तिगत पदक जीतने का 36 साल के इंतजार को खत्म किया.

सिंधू का रजत और साइना का कांस्य पदक तथा टेबल टेनिस खिलाड़ियों के टीम स्पर्धा में दो ऐतिहासिक कांस्य पदक भारतीय अभियान के लिये अहम रहे. गोल्ड कोस्ट में भारत के राष्ट्रमंडल खेलों में प्रदर्शन के बाद मनिका बत्रा निश्चित रूप से टेबल टेनिस में बड़ी स्टार थीं लेकिन जकार्ता में टीम स्पर्धाओं में चीन और जापान जैसे दिग्गज देशों के साथ दो कांस्य पदक जीतना किसी उपलब्धि से कम नहीं.

इस प्रयास के लिये मनिका, अचंत शरत कमल, जी साथियान और हरमीत देसाई तारीफ के हकदार हैं. पालेमबांग में 16 साल के सौरभ और 15 साल के शार्दुल विहान ने दिखा दिया कि भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है, हालांकि अन्य युवा मनु भाकर और अनीष भानवाला पदक नहीं जीतने के लिये निराश होंगे.

राही सरनोबत के साथ सौरभ दो स्वर्ण पदकधारियों में से एक रहे जबकि शार्दुल ने रजत पदक जीता. बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट ने मैट पर दबदबा बनाते हुए स्वर्ण पदक हासिल किये. लेकिन अनुभवी सुशील कुमार और साक्षी मलिक ने निराश किया.

जहां खुशियां मनाने के कई क्षण आये, वहीं कबड्डी और हॉकी में खिलाड़ियों ने भारत के प्रशसंकों को निराश किया. ब्रिज में बर्धन और शिबनाथ डे सरकार ने पुरुष पेयर्स में स्वर्ण पदक हासिल किया तथा अपने प्रशसकों को बताने का प्रयास किया कि यह खेल जुआ नहीं है बल्कि दिमाग का खेल है.

मुक्केबाजी में हरियाणा के अमित पांघल ने स्वर्ण पदक हासिल कर भारत के सोने के तमगों में इजाफा किया. सेना के इस मुक्केबाज ने मौजूदा ओलंपिक चैम्पियन को शिकस्त देकर शानदार जीत दर्ज की. वहीं रिकर्व तीरंदाजों ने अपने लचर प्रदर्शन से सभी को निराश किया लेकिन उनके कम्पाउंड साथियों ने सुनिश्चित किया कि तीरंदाजी दल खाली हाथ नहीं लौटे.

कबड्डी में भारत को पुरुष और महिला वर्ग में निराशा हाथ लगी और उनके हाथ से शीर्ष स्थान निकल गया. टीम इस टूर्नामेंट में पावरहाउस के तौर पर गयी थी, बीते समय के सभी स्वर्ण पदक भारत ने ही जीते थे. पुरुष और महिला हॉकी टीमें भी एशिया में शीर्ष रैंकिंग पर काबिज थीं और दोनों से पोडियम में शीर्ष पर रहने की उम्मीद थी. लेकिन महिलाओं को रजत और पुरुष को कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा.

पूल मैचों में 70 से ज्यादा गोल करने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम के शानदार अभियान को रोकना असंभव दिख रहा था लेकिन मलेशिया ने उन्हें पराजित किया. अंतिम दो मिनट में टीम का डिफेंस कमजोर पड़ा और उन्हें सडन डेथ में हार का मुंह देखना पड़ा.

टीम ने पाकिस्तान को हराकर कांस्य पदक जीता. महिला टीम फाइनल में जापान से हार गयी. जापान ने दोनों पुरुष और महिला वर्ग के स्वर्ण पदक हासिल किये. कुछ स्पर्धाओं में निराशा को पीछे छोड़ते हुए और कई पहले पदक तथा कई राष्ट्रीय रिकार्ड बनने से भारत के उज्जवल भविष्य की उम्मीद दिखती है.

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