नयी दिल्ली : स्टार शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद ने बताया कि अनातोली कारपोव ने एक बार उन पर तंज कसते हुए कहा था कि इस भारतीय खिलाड़ी में बड़े मैच जीतने का जज्बा नहीं है जिसका उन पर गहरा असर पड़ा था और इसके बाद वह शतरंज की दुनिया में रूस के खिलाड़ी जितना ही बड़ा नाम बने.
विश्व चैंपियनशिप 1998 के फाइनल में आनंद को हराने के बाद कारपोव ने कहा था, विशी (विश्वनाथन आनंद) अच्छा व्यक्ति है, लेकिन उसमें बड़े मैच जीतने का जज्बा नहीं है. आनंद ने हाल में जारी अपनी आत्मकथा ‘माइंड मास्टर- विनिंग लैसन फ्राम ए चैंपियन्स लाइफ’ में इस टिप्पणी का जिक्र किया है.
कारपोव ने एक पत्रकार को यह टिप्पणी की थी जबकि आनंद और उनकी पत्नी फाइनल के साथ उनके साथ वाली टेबल पर बैठे थे. आनंद ने किताब में लिखा, उनके शब्दों ने मुझे झकझोर दिया. यह अप्रिय अहसास था कि मुझे ऐसे खिलाड़ी के रूप में देखा जा रहा है जो अच्छा है लेकिन जिसमें बड़े मैच जीतने के लिए दृढ़ विश्वास की कमी है.
उन्होंने कहा, मैं अपनी क्षमता दिखाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा था और इस तंज ने मेरे अंदर मौजूद उस दृढ़ विश्वास को और मजबूत कर दिया, अब कोई चीज मायने नहीं रखती थी, मुझे अब खिताब जीतना था. इस घटना के बाद भारतीय ग्रैंडमास्टर ने अपने करियर को लेकर आत्ममंथन किया.
आनंद ने लिखा, यह संभवत: सही था कि मेरे अंदर जज्बे की कमी थी और विश्व चैंपियनशिप खिताब जीतने के लिए मानसिक रूप से मजबूत नहीं था. अपने करियर में लंबे समय तक विश्व चैंपियन बनने की महत्वाकांक्षा को लेकर मेरे अंदर जुनून नहीं था.
वर्ष 2000 में फिडे विश्व चैंपियनशिप का पहला चरण नयी दिल्ली में खेला गया और आनंद ने घरेलू हालात का पूरा फायदा उठाते हुए फाइनल में जगह बनाई जो तेहरान में खेला जाना था. फाइनल में भी आनंद की राह आसान रही. पहली बाजी ड्रॉ खेलने के बाद आनंद ने अगली तीन बाजियां जीतकर खिताब अपने नाम किया. आनंद ने कहा, अंत में मैं विश्व चैंपियन बन गया था.