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मिल्खा सिंह से मिले गुरुमंत्र ने दिया आत्मविश्वास:देवेंद्र झझारिया

नयी दिल्ली : मिल्खा सिंह को अपना आदर्श मानने वाले विश्व रिकार्डधारी पैरालम्पिक एथलीट देवेंद्र झझारिया ने कहा है कि उनसे मिले गुरुमंत्र ने उन्हें चैम्पियन की तरह प्रदर्शन करने का आत्मविश्वास दिया. झझारिया ने छठी आईपीएल एथलेटिक्स विश्व चैम्पियनशिप की भालाफेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर कल इतिहास रच दिया. एथेंस ओलंपिक (2004) में […]

नयी दिल्ली : मिल्खा सिंह को अपना आदर्श मानने वाले विश्व रिकार्डधारी पैरालम्पिक एथलीट देवेंद्र झझारिया ने कहा है कि उनसे मिले गुरुमंत्र ने उन्हें चैम्पियन की तरह प्रदर्शन करने का आत्मविश्वास दिया. झझारिया ने छठी आईपीएल एथलेटिक्स विश्व चैम्पियनशिप की भालाफेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर कल इतिहास रच दिया. एथेंस ओलंपिक (2004) में पीला तमगा जीतकर विश्व रिकार्ड बनाने वाले राजस्थान के इस खिलाड़ी ने एफ 46 वर्ग में 57.04 मीटर की दूरी तय की. झझारिया ने फ्रांस के लियोन से भाषा को फोन पर दिये इंटरव्यू में कहा ,‘‘ मैं मैदान पर उतरा तो मेरे जेहन में सिर्फ चैम्पियनशिप का 55 . 50 मीटर का रिकार्ड तोड़ने का ख्याल था जो एक चीनी खिलाड़ी के नाम थे. मैं पहले पांच थ्रो में सबसे आगे था लेकिन यह रिकार्ड नहीं टूटा था फिर भी मुझे यकीन था कि आखिरी थ्रो पर रिकार्ड तोडूंगा और वही हुआ.’’

विश्व रिकार्ड , पैरालम्पिक रिकार्ड और विश्व चैम्पियनशिप रिकार्ड के साथ विश्व रैंकिंग में नंबर एक पर काबिज राजस्थान के चुरु जिले के जयपुरिया खालसा गांव के इस खिलाड़ी के आदर्श फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह है जिनकी एक सलाह हमेशा उनके जेहन में रहती है. उन्होंने कहा ,‘‘ मिल्खा सिंह मेरे आदर्श हैं और जब मुझे अर्जुन पुरस्कार मिला था, तब उन्होंने कहा था कि खेल के अंदर इतने घुस जाओ कि बाहरी दुनिया को मत देखो. खिलाड़ी वही सफल होता है जिसे सिर्फ मैदान दिखता है. मैं हर प्रतिस्पर्धा से पहले इस गुरुमंत्र को ध्यान में रखता हूं.’’ रेलवे के इस 32 वर्षीय कर्मचारी ने कहा कि उन्होंने चैम्पियनशिप किसी तरह के दबाव से बचने के लिये एकांत में अभ्यास को तवज्जो दी.

झझारिया ने कहा ,‘‘ मैं उद्घाटन समारोह के बाद स्टेडियम में गया ही नहीं.स्टेडियम के बाहर का इलाका काफी हरा भरा है और मैने वहीं एकांत में अभ्यास किया और सीधे टूर्नामेंट के समय मैदान के भीतर गया.’’कुछ समय कोचिंग के बाद फिर खेलों में वापसी करके पहला टूर्नामेंट जीतने वाले इस खिलाड़ी ने कहा कि पिछले साल लंदन परालम्पिक में एन गिरीशा के रजत पदक के बाद उनके स्वर्ण से भारत का अंतरराष्ट्रीय पैरालम्पिक में दर्जा बढा है. उन्होंने कहा ,‘‘ अंतरराष्ट्रीय पैरालम्पिक समिति के अधिकारियों ने भी कहा कि भारत इन खेलों में तेजी से उभर रहा है और उम्मीद है कि आने वाले समय में हम बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगे.’’

उन्होंने पैरालम्पिक पदक विजेताओं को भारतीय खेल प्राधिकरण में नौकरियां दिये जाने की मांग करते हुए कहा कि इससे भावी खिलाड़ियों को बेहतर तैयार कर सकेंगे. झझारिया ने कहा ,‘‘ मेरे पास रेलवे की नौकरी है लेकिन मैं चाहता हूं कि गिरीशा और मेरे जैसे पैरालम्पिक पदक विजेताओं को साइ में नौकरी मिले ताकि हम आने वाली पीढी के खिलाड़ियों को बेहतर तैयार कर सकें.’’ झझारिया ने प्रदर्शन में सुधार के लिये विदेश में अधिक से अधिक टूर्नामेंटों में एक्सपोजर को अहम बताया. उन्होंने कहा ,‘‘ ओलंपिक और विश्व चैम्पियनशिप में अधिक प्रतिनिधित्व के लिये जरुरी है कि हम अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेलें. बड़े टूर्नामेंटों से पहले अभ्यास के लिये भी विदेश भेजा जाये तो प्रदर्शन और बेहतर होगा.’’आठ साल की उम्र में अपना एक हाथ गंवा बैठे झझारिया ने खुद को कमजोर न कहलाने की जिद में पैरालम्पिक खेलों को अपनाया और वह चाहते हैं कि भारतीय इन खेलों के प्रति अपना नजरिया बदलें.

उन्होंने कहा ,‘‘मैने इसलिये इन खेलों को अपनाया ताकि कोई मुझे कमजोर न कहे. मैने अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय स्पर्धा में सामान्य श्रेणी में पदक जीता. उम्मीद है कि हमारे प्रदर्शन के बाद भारतीय पैरालम्पिक खेलों के प्रति नजरिया बदलेंगे और इनमें भागीदारी के लिये प्रेरित होंगे.’’भारतीय पैरालम्पिक समिति ने झझारिया के लिये पांच लाख रुपये नकद पुरस्कार का ऐलान किया है. उन्होंने कहा ,‘‘ निश्चित तौर पर पुरस्कारों से हौसलाअफजाई होती है और बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है.’’

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