नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज कहा कि राष्ट्रीय खेल संहिता और केंद्र के अनुसार भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के लिये रियो ओलंपिक 2016 में पहलवानों के चयन के लिये ट्रायल कराना अनिवार्य नहीं है.
न्यायमूर्ति मनमोहन ने दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार के वकील से कहा, ‘‘समस्या यह है कि खेल संहिता में कहीं भी नहीं लिखा गया है कि ट्रायल अनिवार्य हैं. इस पर (चयन) फैसला करने के लिये संगठन को स्वायत्ता दी गयी है. मुझे ऐसा कोई सांविधिक आदेश नहीं मिला जिसे आप इसमें पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. ”
सुशील ने रियो ओलंपिक में 74 किग्रा भार वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व करने का फैसला करने के लिये चयन ट्रायल कराने का डब्ल्यूएफआई को निर्देश देने को लेकर यह याचिका दायर की है. केंद्र से जब चयन प्रक्रिया में उसकी भूमिका के बारे में पूछा गया तो उसने अदालत को बताया कि इसमें उसकी कोई भूमिका नहीं होती है और डब्ल्यूएफआई एक स्वायत्त संस्था है.”
इस बीच डब्ल्यूएफआई ने अदालत को बताया कि उसने तीन मई को ही नरसिंह पंचम यादव का नाम यूनाईटेड वर्ल्ड रेसलिंग को भेज दिया है जो ओलंपिक में इस खेल की व्यवस्था देखेगा. सुशील के वकील सीनियर एडवोकेट अमित सिब्बल ने इस पर सवाल उठाया.
उन्होंने कहा, ‘‘नाम भेजने में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखायी गयी जबकि अंतिम समयसीमा 18 जुलाई है?” उन्होंने कहा कि इससे सुशील की याचिका बेमानी हो गयी है. अदालत ने हालांकि कहा कि उसने इस मामले में लंबी बहस सुनी है और वह फैसला देगी और उसने खिलाड़ी की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा. अदालत ने इसके साथ ही कहा कि पहलवानों का समुदाय छोटा है जो चयन को लेकर पूर्व में और निरंतर अपनायी जा रही व्यवस्था से अच्छी तरह से अवगत हैं.