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प्रतियोगिता से दूर रहना सुशील को पड़ा महंगा : बिंद्रा

नयी दिल्ली : ओलंपिक चैम्पियन अभिनव बिंद्रा का मानना है कि प्रतिस्पर्धी टूर्नामेंटों से दूर रहना स्टार पहलवान सुशील कुमार के खिलाफ गया जिनकी रियो ओलंपिक में जगह बनाने की उम्मीद आज टूट गई जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने चयन ट्रायल की मांग करने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि इससे […]

नयी दिल्ली : ओलंपिक चैम्पियन अभिनव बिंद्रा का मानना है कि प्रतिस्पर्धी टूर्नामेंटों से दूर रहना स्टार पहलवान सुशील कुमार के खिलाफ गया जिनकी रियो ओलंपिक में जगह बनाने की उम्मीद आज टूट गई जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने चयन ट्रायल की मांग करने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी.

अदालत ने कहा कि इससे चयनित खिलाड़ी नरिंसह पंचम यादव के मौकों को झटका लगेगा और देश को ‘नुकसान’ पहुंचेगा. न्यायमूर्ति मनमोहन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुशील की उपलब्धियों को स्वीकार किया और उन्हें 66 किग्रा वर्ग में महान पहलवान करार दिया लेकिन उन्हें 74 किग्रा वर्ग में ओलंपिक के लिए चुनौती पेश करने का मौका नहीं दिया.

दो बार के ओलंपिक पदक विजेता के बारे में पूछे जाने पर बिंद्रा ने कहा, ‘‘उसके साथ स्थिति काफी जटिल थी. असल में सभी महासंघों को अपनी नीतियों को लेकर स्पष्ट होना चाहिए और उन्हें खेलों के लिए खिलाडियों की क्वालीफिकेशन प्रक्रिया शुरु होने से पहले इसे सार्वजनिक कर देना चाहिए.” बिंद्रा ने कहा, ‘‘सुशील महान खिलाड़ी है और उसने जो हासिल किया उससे इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन हमने पिछले दो वर्षों से उसे प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हुए नहीं देखा और यह शायद उसकी चोट के कारण था लेकिन यह उसके खिलाफ गया.”

बीजिंग ओलंपिक 2008 में 10 मीटर एयर राइफल में स्वर्ण पदक जीतने वाले दिग्गज निशानेबाज बिंद्रा ने कहा, ‘‘अगर आप उसके लिए ट्रायल कराते हो तो उन्हें अन्य के लिए भी ट्रायल कराने होंगे. भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ की चयन नीति है और इस नीति पर बहस हो सकती है लेकिन आपको इसके लिए उन्हें श्रेय देना होगा.”

बिंद्रा ने इससे पहले ट्वीट किया, ‘‘सुशील कुमार महान खिलाड़ी है. उसके बाहर से नरसिंह का समर्थन करने के लिए रियो जाना चाहिए. इससे उसका दर्जा बढेगा.” अदालत ने कहा कि रियो ओलंपिक में पुरुषों के 74 किलो वर्ग में भारत के प्रतिनिधित्व के लिये चयन ट्रायल का निर्देश भारतीय कुश्ती महासंघ को देने की मांग करती सुशील की याचिका कानून की नजर में असमर्थनीय है और तथ्यों के विपरीत भी है.

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