अब बड़ी टीमों से लोहा लेने में सक्षम है भारतीय हॉकी टीम
रियो डि जिनेरियो : भारतीय हॉकी टीम भले ही ओलंपिक के लिये क्वालीफाई नहीं कर सकी लेकिन इसने साबित कर दिया कि अब वह बड़ी टीमों को चुनौती देने में सक्षम है और अगले चार साल में वाकई में पदक की दावेदार हो सकती है. लंदन ओलंपिक 2012 में आठ बार की स्वर्ण पदक विजेता […]
रियो डि जिनेरियो : भारतीय हॉकी टीम भले ही ओलंपिक के लिये क्वालीफाई नहीं कर सकी लेकिन इसने साबित कर दिया कि अब वह बड़ी टीमों को चुनौती देने में सक्षम है और अगले चार साल में वाकई में पदक की दावेदार हो सकती है. लंदन ओलंपिक 2012 में आठ बार की स्वर्ण पदक विजेता भारतीय टीम 12वें स्थान पर रही थी जबकि उससे चार साल पहले बीजिंग ओलंपिक में क्वालीफाई भी नहीं कर पाई थी.
इस बार रोलेंट ओल्टमेंस के मार्गदर्शन में उतरी भारतीय टीम के प्रदर्शन में सुधार आया है जिससे लगता है कि उसे 2020 तोक्यो ओलंपिक में पदक का दावेदार माना जा सकता है. इस बार भारत का लक्ष्य क्वार्टर फाइनल तक पहुंचना था और ओल्टमेंस ने कहा था कि उसके बाद सब कुछ मैच के दिन के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा.
भारतीय टीम 36 साल बाद नाकआउट चरण में पहुंची. पूल चरण में भारत ने गत चैम्पियन जर्मनी और पूर्व चैम्पियन नीदरलैंड के खिलाफ उम्दा प्रदर्शन से टीम ने उम्मीदें जगाई थी. इसके बाद हालांकि भारत के प्रदर्शन ने साबित कर दिया कि पदक का संजीदा दावेदार बनने के लिये अभी उसे लंबा सफर तय करना है.
आयरलैंड के खिलाफ पहले मैच में भारत ने बमुश्किल 3-2 से जीत दर्ज की. इसके बाद जर्मनी और नीदरलैंड के खिलाफ अच्छा खेल दिखाया लेकिन आखिरी पलों में की गई गलतियां उन पर भारी पड़ी. जर्मनी के खिलाफ भारत ने हूटर से तीन सेकंड़ पहले गोल गंवाया और 1-2 से हारी. वहीं नीदरलैंड के खिलाफ आखिरी 10 मिनट में दो पेनल्टी कार्नर गंवाकर 1-2 से पराजय झेली.
इसके बाद भारत ने अर्जेंटीना को 2-1 से हराया लेकिन आखिरी लीग मैच में कनाडा से 2-2 से ड्रॉ खेला. कनाडा के खिलाफ जीत से न सिर्फ उसका मनोबल बढ़ता बल्कि पूल बी में टीम तीसरे स्थान पर भी रहती जिससे उसे पूल ए की शीर्ष टीम बेल्जियम से क्वार्टर फाइनल नहीं खेलना होता. बेल्जियम ने उसे 3-1 से हराकर टूर्नामेंट से बाहर कर दिया.
भारत के पास रुपिंदर पाल सिंह, वी आर रघुनाथ और हरमनप्रीत सिंह के रुप में तीन बेहतरीन पेनल्टी कार्नर विशेषज्ञ टीम में थे लेकिन इनका प्रदर्शन प्रभावी नहीं रहा. भारत को सबसे ज्यादा निराशा फारवर्ड पंक्ति से मिली जो बेल्जियम के खिलाफ एक भी पेनल्टी कार्नर नहीं बना सके. सरदार सिंह की अगुवाई वाली मिडफील्ड में मनप्रीत सिंह और एस के उथप्पा ने भी अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन डिफेंस ने आसान गोल गंवाये.
युवा सुरेंदर कुमार ने कोथाजीत सिंह के साथ डिफेंस में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन रघुनाथ जैसे सीनियर खिलाडियों ने निराश किया. पी आर श्रीजेश ने अच्छी गोलकीपिंग की लेकिन बाकियों से उन्हें सहयोग नहीं मिला. भारतीयों ने गैर जरुरी गलतियां की जिससे कई कार्ड मिले. भारत को अगर तोक्यो के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करना है तो ओल्टमेंस के इसी कार्यक्रम को अगले चार साल तक बरकरार रखना होगा. यहां के प्रदर्शन से साबित हुआ है कि भारतीय हाकी ने सब कुछ गंवाया नहीं है और अगर हाकी इंडिया कोई कडा फैसला नहीं ले तो पिछले कुछ साल की मेहनत आगे रंग लायेगी.