लाहौर: दशकों पहले साइकिल चला कर दर्जनों चमचमाती ट्राफियां और शोहरत बंटोरनेवाले पूर्व ओलिंपियन मोहम्मद आशिक अब दो जून की रोटी कमाने के लिए लाहौर की तंग गलियों में साइकिल रिक्शा चलाने को मजबूर हैं. 81 वर्ष के इस पूर्व ओलिंपियन की आंखें अपनी मुफलिसी की दास्तां सुनाते हुए भर आयी. उन्होंने कहा, मैंने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों, मुख्य कार्यकारियों से हाथ मिलाया है. वे सब मुझे भूल गये, आखिर क्यो. यकीन ही नहीं होता.
1960 और 1964 के ओलिंपिक खेल चुके आशिक अब लाहौर में रिक्शा चलाते हैं. साइकिलिंग में कैरियर खत्म होने के बाद तकदीर भी आशिक से रूठ गयी. उन्होंने पीआर की नौकरी की, लेकिन 1977 में सेहत दुरुस्त नहीं होने के कारण छोड़नी पड़ी. इसके बाद टैक्सी और वैन चलायी, लेकिन माली हालात इतने बिगड़ गये कि आखिर में लाहौर की तंग गलियों में रिक्शा चला कर बसर करना पड़ रहा है.
अपने परिवार के साथ 45 गज के मकान में रहनेवाले आशिक 400 रुपया प्रतिदिन बमुश्किल कमा पाते हैं. उनकी पत्नी का इंतकाल हो चुका है और चारों बच्चे उनसे अलग रहते हैं. पहले वह अपने पदक रिक्शा पर टांगते थे, लेकिन अब नहीं.
गरीब को खेल में भाग नहीं लेना चाहिए
उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति केल्विन कूलिज का एक मशहूर बयान अपने लफ्जों में लिख रखा है, जिसमें कहा गया है, ‘‘अपने नायकों को भुला देनेवाले मुल्क कभी तरक्की नहीं करते. जब मुसाफिर उनसे इसके बारे में पूछते हैं तो वह अपनी कहानी सुनाते हैं. उनका दर्द अल्फाज में छलक आता है, जब वह कहते हैं कि गरीबों को कभी खेल में भाग नहीं लेना चाहिए. उन्होंने कहा, एक बार मेरी बीबी रोने लगी तो मैंने कारण पूछा. वह मेरी सेहत को लेकर फिक्रमंद थी. उसने कहा कि खुश रहो और जो हमें भूल गये, उन्हें भूल जाओ. मैने कहा ठीक है और वह कुछ देर के लि ए खुश हो गयी. थोड़े समय बाद उसकी मौत हो गयी.” उन्होंने कहा, मैं रोज मौत की दुआ करता हूं ताकि जन्नत में अपनी पत्नी से मिल सकूं. इस तरह के हालात में जीने से तो मौत अच्छी है.