मैं भाग्यशाली था कि पढ़ाई में अच्छा नहीं था : गोपीचंद
नयी दिल्ली : साइना नेहवाल और पीवी सिंधु के लगातार ओलंपिक खेलों में पदक के दौरान इन दोनों खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करने वाले मुख्य बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद ने कहा कि वह भाग्यशाली थे कि पढ़ाई में अच्छे नहीं थे और आईआईटी परीक्षा पास नहीं कर पाने से उनके सफल खिलाड़ी बनने का रास्ता खुला. […]
नयी दिल्ली : साइना नेहवाल और पीवी सिंधु के लगातार ओलंपिक खेलों में पदक के दौरान इन दोनों खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करने वाले मुख्य बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद ने कहा कि वह भाग्यशाली थे कि पढ़ाई में अच्छे नहीं थे और आईआईटी परीक्षा पास नहीं कर पाने से उनके सफल खिलाड़ी बनने का रास्ता खुला.
खेलों के विषय पर चर्चा करते हुए गोपीचंद ने कहा, ‘‘मैं और मेरा भाई दोनों खेलों में हिस्सा लेते थे. वह खेलों में शानदार था और अब मुझे लगता है कि मैं भाग्यशाली था कि मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं था.” उन्होंने कल यहां सम्मान समारोह के दौरान कहा, ‘‘वह राज्य चैंपियन था. उसने आईआईटी परीक्षा दी और पास हो गया. वह आईआईटी गया और खेलना छोड़ दिया.
मैंने इंजीनियरिंग की परीक्षा दी और फेल हो गया और मैंने खेलना जारी रखा और देखिये अब मैं कहां खड़ा हूं. मुझे लगता है कि आपको एकाग्र और कभी कभी भाग्यशाली होना चाहिए.” गोपीचंद 2001 में आल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीतने वाले सिर्फ दूसरे भारतीय बने और इसके बाद उन्होंने संन्यास लेकर अपनी अकादमी खोलने का फैसला किया.
अकादमी खोलने की उनकी राह आसान नहीं रही. गोपीचंद ने बताया, ‘‘मुझे याद है कि कुछ साल पहले मैं सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी के पास गया. मुझे सुबह नौ बजे से शाम साढ़े पांच बजे तक लगातार तीन दिन बैठाया गया और तीन दिन बाद शाम को एक बड़े पदाधिकारी ने मेरे पास आकर कहा कि बैडमिंटन में वैश्विक खेल बनने की क्षमता नहीं है.” गोपीचंद ने कहा, ‘‘यह अंतिम दिन था जब मैं प्रायोजन के लिए किसी के पास गया. उसी रात मैं वापस चला गया और मेरे माता पिता और पत्नी का आभार, हमने हमारा घर गिरवी रख दिया और इस तरह अकादमी बनी.” हैदराबाद में अकादमी स्थापित करने के 12 साल में गोपीचंद ने दो ओलंपिक पदक विजेता दिये.
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने 25 युवा बच्चों के साथ 2004 में अकादमी शुरू की. सिंधु आठ साल के साथ सबसे कम उम्र के बच्चों में थी और 15 साल का पी कश्यप सबसे अधिक उम्र का था. जब मैंने कोचिंग शुरु की थी तो मेरा सपना था कि भारत एक दिन ओलंपिक पदक जीते. मुझे नहीं पता था कि इतनी जल्दी 2012 में हम अपना पहला पदक जीत जायेंगे.” गोपीचंद ने माजकिया लहजे में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि शायद अब मुझे संन्यास ले लेना चाहिए क्योंकि मेरे सभी लक्ष्य पूरे हो गए हैं.”
गोपीचंद ने कहा कि कुछ लोगों ने उनके साथ काफी बुरा बर्ताव किया जबकि वह उन लोगों के आभारी हैं जो उनका समर्थन करने के लिए खड़े थे.इस बीच सिंधु के पिता पीवी रमन्ना ने कहा कि वह लोग जो बेटी को खेल में करियर बनाने की स्वीकृति देने के लिए पहले उनकी आलोचना करते थे वह अब उसकी उपलब्धि और उनके बलिदान की सराहना कर रहे हैं.
रमन्ना ने कहा, ‘‘सिंधु जब ट्रेनिंग के लिए कभी- कभी सुबह चार बजे और कभी कभी सुबह पांच बजे जाती थी और फिर हम जब पैदल घूमने निकलते थे तो काफी लोग कहते थे कि आप इतनी मुश्किल क्यों उठा रहे हो लेकिन अब वही लोग कहते हैं कि हमें आपकी बेटी पर गर्व है.”