मुंबई : मुक्केबाज विकास कृष्ण ने आज कहा कि वह रियो ओलंपिक में अपेक्षाओं का बोझ नहीं झेल पाये जहां उन्हें 75 किग्रा भार वर्ग के क्वार्टर फाइनल में हार का सामना करना पड़ा था. हरियाणा के 24 वर्षीय मुक्केबाज ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हम (मुक्केबाजों) पर हमेशा दबाव रहता है. मुझ पर काफी दबाव था और दबाव के कारण मैं रियो ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया. ‘
इस संवाददाता सम्मेलन में विकास के अलावा कांस्य पदक विजेता महिला पहलवान साक्षी मलिक और भाला फेंक के युवा एथलीट नीरज चोपडा भी उपस्थित थे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने वाले विकास ने पहले दो मुकाबलों में जीत दर्ज की लेकिन क्वार्टर फाइनल में बेख्तामीर मेलिकुजीव से 0-3 से हार गये. मेलिकुजीव ने बाद में रजत पदक जीता. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे बहुत दुख है कि मैं पदक नहीं जीत पाया.
मेरा लक्ष्य ओलंपिक खेलों में पदक जीतना है. मैं ओलंपिक पदक जीतने या फिर अपने भार वर्ग में बाहर होने की स्थिति में ही पेशेवर बनूंगा.’ विकास ने कहा कि देश में मान्यता प्राप्त मुक्केबाजी महासंघ नहीं होने से भी खिलाडियों को नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘अभी मुक्केबाजी महासंघ नहीं है. जेएसडब्ल्यू स्पोर्ट्स ने मेरा सहयोग किया. मैं 75 किग्रा में खेलना जारी रखूंगा. 69 किग्रा तक आपका ध्यान तेजी पर रहता है लेकिन 75 किग्रा से उपर यह शक्ति का खेल बन जाता है. ‘
रियो खेलों में पदक जीतने वाली भारत की दो पदक विजेताओं में से एक साक्षी को पूरा विश्वास है कि वह महिला कुश्ती का चेहरा बनने के बावजूद भविष्य में उससे पडने वाले दबाव से उबरने में सफल रहेगी. साक्षी ने 58 किग्रा में कांस्य पदक जीता था. रोहतक की इस 24 वर्षीय पहलवान ने कहा, ‘‘दबाव अब बढ़ रहा है. यह दुगुना और यहां तक कि तिगुना हो सकता है. लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मैं इससे उबरने में सफल रहूंगी और तोक्यो में 2020 ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन करुंगी. ‘
साक्षी उन खिलाडियों में शामिल थी जिन्हें खेलों से पहले पदक का दावेदार नहीं माना जा रहा था क्योंकि सभी की निगाहें फोगाट बहनों बबिता कुमारी और विनेश पर टिकी थी. साक्षी ने हालांकि कहा कि वह पदक जीतने के प्रति आश्वस्त थी.
रेपचेज के जरिये कांस्य पदक जीतने वाली इस पहलवान ने कहा, ‘‘हां सभी निगाहें उन पर टिकी थी लेकिन मैं अच्छा प्रदर्शन करने के प्रति आश्वस्त थी. ‘ साक्षी ने भारत की तरफ से दो ओलंपिक पदक जीतने वाले सुशील कुमार को अपना आदर्श बताया. उन्होंने कहा कि खेलों से पहले बुल्गारिया और स्पेन में जिन दो अभ्यास शिविरों में हिस्सा लिया वहां जापानी लड़कियों का अभ्यास देखकर उनकी आंखें खुली. उन्होंने कहा, ‘‘वे दोनों जापानी पहलवान अपने भोजन को लेकर बेहद अनुशासित थी. उन्होंने मुझे दिखाया कि कब खाना है और क्या खाना है. ‘