Republic Day 2025: ध्यानचंद से सरपंच तक, बीते 75 वर्षों में भारतीय हॉकी ने बड़े उतार-चढ़ाव देखा है. लाला अमरनाथ से लेकर रोहित शर्मा की अगुवाई में भारतीय क्रिकेट ने अपने तेवर और कलेवर को दशक दर दशक बदला. मिल्खा, पीटी उषा से गुजरते हुए नीरज चोपड़ा तक भारतीय एथलेटिक्स में आखिरकार नयी सुबह हुई और कमल के फूल खिले. खेल सिर्फ खेल नहीं होता है, वो बदलते सामाजिक और आर्थिक हालात का आईना होता है. जब भारत अपना 76वां गणतंत्र बनाने की ओर अग्रसर है, तो हर विधा की तरह खेल के मैदान की भी एक अपनी कहानी है.
आजादी के बाद भारत के पास केवल हॉकी की विरासत थी
भारत ने जब 26 जनवरी, 1950 में अपना संविधान लागू किया, तो ये एक ऐतिहासिक दिन था. दुनिया के सबसे प्राचीन देशों में से एक, जो एक वक्त लोकतंत्र की जननी थी, उस देश ने एक सिरे से सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार को मानते हुए प्रजातंत्र को अपनाने का फैसला किया. यहां तक पहुंचने में विकशित देशों को कई दशक लग गये थे. इसकी अपनी चुनौतियां भी थीं. क्या भारत एक देश बना रहेगा और क्या विकास संभव होगा ? ये दो बड़े सवाल थे. ये सच है कि रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी जैसी मूलभूत चुनौतियों के बीच, खेल कमोबेश अखबार का आखिरी पन्ना ही बन सकता था. 26 जनवरी, 1950 में जब भारत ने अपना पहला गणतंत्र दिवस मनाया, खेल के नाम पर लिखने के लिए सिर्फ हॉकी जगत में बादशाहत थी और विश्व क्रिकेट में भारत की बाल आहट थी. तब से अबतक काफी कुछ बदला है, लेकिन संभावना और प्रदर्शन के बीच एक गहरी खाई बरकरार है.
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1951 में भारत ने पहली बार एशियाई खेलों की मेजबानी की
ये कहानी की शुरुआत साल 1951 में दिल्ली में पहले एशियाई खेलों से होती है. भारत पहली बार विश्व स्तर के किसी बहु खेल प्रतियोगिता की मेजबानी कर रहा था. जापान के सर्वाधिक 24 गोल्ड समेत 60 कुल मेडल के बाद भारत 15 गोल्ड और 51 कुल मेडल के साथ दूसरे नंबर पर रहा. भारत एशियाई खेलों में इसके बाद फिर कभी दूसरे नंबर पर नहीं आ सका है.
1952 में भारत ने हॉकी में जीता ओलंपिक गोल्ड
इसके बाद साल 1952 में भारत ने हेल्सिंकी ओलिंपिक्स खेलों में हिस्सा लिया. हॉकी में भारत ने जहां गोल्ड मेडल जीता, वहीं खाशाबा जाधव ने कुश्ती में कांस्य पदक जीता. अहम ये है कि आजाद भारत का ये ओलिंपिक्स स्तर पर पहला व्यक्तिगत मेडल था. यहां से जहां चीन, जापान और कोरिया जैसे देश मेडल के मामले में सरपट आगे भागते चले गये, वहीं भारतीय एथलीट एक-एक मेडल को तरस गये. मिल्खा और पीटी उषा, रोम ओलिंपिक्स और लॉस एंजेलेस ओलिंपिक्स में मेडल के करीब पहुंचकर भी मेडल से कोसों दूर रह गयीं. भारत 1975 में वर्ल्ड कप हॉकी का चैंपियन बना. भारत ने फाइनल में पाकिस्तान को मात दी, लेकिन इसके बाद वो दौर आया, जब भारतीय हॉकी शिखर से सिफर तक चली गयी.
1983 में क्रिकेट वर्ल्ड कप जीत रचा इतिहास
भारतीय खेल प्रेमियों के लिए रहत की खबर ये थी कि जब हॉकी ने साथ छोड़ा, तो क्रिकेट में भारतीय टीम ने शिखर की ओर कदम रखा. इस दिशा में कपिल देव की कप्तानी में 1983 में वर्ल्ड कप चैंपियन बनना एक अहम मोड़ था. कपिल बेहद ही साधारण परिवार से आये थे. उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी, लेकिन उन्होंने इंग्लैंड के लॉर्ड्स में फाइनल मैच को वेस्ट इंडीज के खिलाफ जीतकर टीम इंडिया को विश्वविजेता बनाया. इसके बाद जगमोहन डालमिया और आइएएस बिंद्रा जैसे दूरदर्शी खेल प्रशंसकों की बदौलत भारत ने 1987 में पाकिस्तान के साथ मिलकर वर्ल्ड कप की मेजबानी की. ये पहला मौका था, जब विश्व क्रिकेट की मेजबानी इंग्लैंड के बाहर हो रहा था.
धोनी ने क्रिकेट में और ज्यादा नाम कमाया
आलोचक चाहे जो कहें, भारतीय क्रिकेट बदलते भारत की कामयाबी और संभावनाओं का सबसे सुनहरा पन्ना रहा है. क्रिकेट ने दिखाया है कि हम बदलते वक्त के साथ सीखकर खुद को बदलना भी जानते हैं. 2007 में भारत महेंद्र सिंह धौनी की कप्तानी में पहला टी-20 वर्ल्ड चैंपियन बना. इस बढ़त को आगे बढ़ाते हुए बीसीसीआइ ने इंडियन प्रीमियर लीग की नींव रखी. आज आइपीएल की गिनती फुटबॉल में इंग्लिश प्रीमियर लीग और बास्केटबॉल में एनबीए जैसे शानदार खेल टूर्नामेंट से होती है. भारत ने साल 2011 में धौनी की कप्तानी में अपना दूसरा 50 ओवर वर्ल्ड कप जीता और साल 2024 में रोहित शर्मा की लीडरशिप में टी-20 वर्ल्ड कप विजेता बना. इस बीच टीम इंडिया ने लगातार दो बार वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल मैच भी खेला. 2015 और 2019 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम सेमीफाइनल तक पहुंची, जबकि 2023 वर्ल्ड कप में खिताब से बस एक कदम दूर रह गयी. ऐसे में साफ है कि दूसरे खेल संगठनों को भी बीसीसीआइ और भारतीय क्रिकेट की कामयाबी से सीख लेने की जरूरत है.
2008 में अभिनव बिंद्रा ने जीता ओलंपिक गोल्ड
क्रिकेट को छोड़ बाकी खेलों की बात करें, तो कामयाबियां व्यक्तिगत प्रतिभा व मेहनत की वजह से अधिक संथागत समर्थन की वजह से काम आती थीं. साल 2004 एथेंस ओलिंपिक्स में कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर ने शूटिंग में सिल्वर मेडल जीता. 2008 में बीजिंग ओलिंपिक्स में अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड जीता. ये किसी भी भारतीय का पहला ओलिंपिक्स व्यक्तिगत गोल्ड मेडल था. इसे जहां हम अभिनव की अद्भुत कामयाबी के तौर पर देख सकते हैं, वहीं इस बात का मलाल भी रहता है कि भारत को व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीतने में इतने दशक लग गये.
2010 में भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी की
साल 2010 में भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी की. इसके बाद 2012 लंदन ओलिंपिक्स में भारत ने कुश्ती में सुशील कुमार, शूटिंग में विजय कुमार और गगन नारंग, बैडमिंटन में साइना नेहवाल और बॉक्सिंग में मैरी कॉम के सहारे ओलिंपिक्स खेलों में नयी संभावनाएं दिखायी. जाहिर तौर पर, खेल के हुक्मरानों को ये समझ में आ चुका था कि ओलिंपिक्स में कामयाबी के लिए क्या जरूरी है? लेकिन, जहां भारत ने 1991 में ही लाइसेंस-कोटा-परमिट राज को खत्म करके नयी अर्थव्यवस्था को जन्म देने का मन बना लिया था, वहीं खेल को समाजवाद के ढांचे से बाहर करने में दशकों लग गये.
पीएम मोदी करते हैं खिलाड़ियों से बात
साल 2014 के बाद कई सांकेतिक और कई ठोस कदम उठाये गये हैं. भारत के प्रधानमंत्री लगातार जीत और हार से बेपरवाह खिलाड़ियों से सीधे संपर्क में रहते हैं. वह निरंतर उनकी हौसला अफजाई करते हैं. दूसरी ओर उनकी सरकार ने पैरा खेलों को ओलिंपिक्स खेलों के बराबर का दर्जा दिया है. तीसरा, खेलो इंडिया हर बरस अब वास्तविकता बन चुकी है, जिसमें नयी प्रतिभाओं को मौका मिलता है. चौथा, टारगेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम में खिलाड़ियों को ओलिंपिक्स की तैयारी के लिए हर तरह का समर्थन मिल रहा है. इसी तरह ओडिशा सरकार ने खेलों को आगे बढ़ाने का एक नायाब मॉडल पेश किया है. अगर भारत हॉकी में लगातार दो ओलिंपिक्स में मेडल जीतने में कामयाब रहा, तो इसमें ओडिशा के तत्कालीन नवीन पटनायक सरकार का अहम योगदान रहा है. अब बाकी की राज्य सरकारें खेल और खिलाड़ी को बढ़ावा देने में जुटी है. भारत को अगर अगले 25 वर्ष में अपने 100वें गणतंत्र दिवस तक खेल की महाशक्ति बनना है, तो अभी लंबा फैसला तय करने की जरूरत है. इसके लिए अबतक की कामयाबियों से आगे बढ़कर देखने की जरूरत है. खेल संगठनों को पेशेवर बनने और खेल मूलभूत ढांचे में ग्रामीण स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सुधार की जरूरत है. ये मुश्किल तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं.