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Jamshedpur news : आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों ने कार्यशाला में सामाजिक व संवैधानिक अधिकारों पर किया मंथन

Jamshedpur news : यूसिल नरवा पहाड़ कॉलोनी में दिशोम जाहेरगाढ़ कमेटी ने सोमवार को आदिवासी संताल समुदाय की धार्मिक पूजा पद्धति, पारंपरिक सामाजिक रीति-रिवाज, स्वशासन व्यवस्था, जल जंगल जमीन व संविधान में निहित अधिकारों को लेकर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया. कार्यशाला में स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख माझी बाबा व अन्य मौजूद थे.

Jamshedpur news : यूसिल नरवा पहाड़ कॉलोनी में दिशोम जाहेरगाढ़ कमेटी ने सोमवार को आदिवासी संताल समुदाय की धार्मिक पूजा पद्धति, पारंपरिक सामाजिक रीति-रिवाज, स्वशासन व्यवस्था, जल जंगल जमीन व संविधान में निहित अधिकारों को लेकर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया. कार्यशाला में स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख माझी बाबा व अन्य मौजूद थे. वक्ताओं ने कहा कि आदिवासी संताल समाज सृष्टि काल से ही अपने पूर्वजों द्वारा बनाये गये अलिखित संविधान और परंपराओं का पालन करता आ रहा है. समाज ने समय के साथ रीति-रिवाजों में सुधार करते हुए इन्हें वर्तमान के अनुरूप ढाला है. हालांकि आज की युवा पीढ़ी आधुनिकता में फंसकर अपनी परंपराओं और पूजा पद्धतियों से दूर होती जा रही है, जो समाज के लिए चिंता का विषय है. समाज के क्रियाकलापों और रीति-रिवाजों की जानकारी युवाओं को देने की आवश्यकता है. कार्यशाला में परगना आयो पुंता मुर्मू, परगना बाबा हरिपदो मुर्मू, जुगसलाई तोरोप परगना दशमत हांसदा, देश पारानिक दुर्गाचरण मुर्मू, यूसिल जादूगोड़ा के डीजीएम मनोरंजन माहली, पर्सनल मैनेजर दीपेंदु हांसदा, साहित्यकार दुर्गा प्रसाद मुर्मू, माझी बाबा बिरेन टुडू, लेदेम किस्कू, सुशांत हेंब्रम, सागर टुडू, दिलीप मुर्मू, फूदान मार्डी, नायके बाबा सलखू मुर्मू, सुनाराम हांसदा, मुचीराम सोरेन, लक्ष्मी टुडू, सुनीता मुर्मू, सीता मुर्मू, बाहा हांसदा, संजू सोरेन समेत काफी संख्या में समाज के महिला व पुरुष मौजूद थे.

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आदिवासी संताल समाज की धार्मिक परंपराएं और स्वशासन व्यवस्था

संताल समाज की धार्मिक और सामाजिक परंपराएं गहरी ऐतिहासिक जड़ों से जुड़ी हुई हैं. सृष्टि काल से ही यह समाज अपने पूर्वजों द्वारा बनाए गए अलिखित संविधान का पालन करता आ रहा है. इस संविधान में आदिवासी समाज की स्वशासन व्यवस्था, जिसे माझी परगना प्रणाली के नाम से जाना जाता है, विशेष महत्व रखती है. यह एक पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था है, जो समाज की न्याय व्यवस्था, रीति-रिवाज और सामाजिक संगठन को नियंत्रित करती है. समाज के प्रमुख माझी बाबा और अन्य स्वशासी नेता समाज के विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हुए निर्णय लेते हैं. इस प्रकार की व्यवस्था ने संताल समाज को एक स्थायित्व प्रदान किया है, जहां समाज के लोग एक-दूसरे के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से जीवन व्यतीत करते हैं. यह समाज अपने पारंपरिक धार्मिक त्योहारों, पूजा पद्धतियों और सामाजिक आयोजन को न केवल उत्साहपूर्वक मनाता है, बल्कि इन आयोजनों में समाज की सामूहिक एकता का भी परिचय मिलता है. इन धार्मिक अनुष्ठानों और परंपराओं के जरिये संताल समाज अपने देवी-देवताओं का आह्वान करता है और प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है.

आधुनिकता के प्रभाव और युवा पीढ़ी की दिशा

कार्यशाला में वक्ताओं ने चिंता व्यक्त की कि आधुनिकता और वैश्वीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण आज की युवा पीढ़ी अपनी पारंपरिक धार्मिक और सामाजिक परंपराओं से विमुख हो रही है. यह चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि संताल समाज की पहचान उसकी प्राचीन परंपराओं, पूजा पद्धतियों और सांस्कृतिक धरोहर से ही है. युवाओं का पश्चिमी संस्कृति और अन्य समाजों की ओर आकर्षण बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण वे अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं. यह समाज के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न करता है. वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि समाज के रीति-रिवाजों और धार्मिक परंपराओं के प्रति जागरूकता फैलाना आवश्यक है, ताकि युवा पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समझ सके और उसे आगे बढ़ा सके. अगर युवा अपनी परंपराओं से दूर होते गये, तो समाज की पहचान धूमिल हो सकती है. इसलिए यह जरूरी है कि युवा अपनी पारंपरिक धरोहर को न केवल पहचानें, बल्कि उसे गर्व के साथ अपनाएं और प्रचारित करें.

शिक्षा और करियर विकास के लिए समाज के प्रयास

संताल समाज के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा को एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना गया है. माझी परगना महल ने समाज के बच्चों और युवाओं के लिए 22 कोचिंग सेंटरों की स्थापना की है, जहां उन्हें मुफ्त शिक्षा और करियर काउंसलिंग प्रदान की जाती है. इन सेंटरों का उद्देश्य समाज के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए तैयार करना और उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है. शिक्षा के माध्यम से समाज के युवा अपने अधिकारों, कर्तव्यों और सामाजिक जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. करियर काउंसलिंग के माध्यम से उन्हें उनके भविष्य के लक्ष्यों के प्रति मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है, ताकि वे अपने करियर में सफलता प्राप्त कर सकें. इसके साथ ही, स्वरोजगार और तकनीकी कृषि के क्षेत्र में भी युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे वे अपने गांवों में ही रोजगार के साधन विकसित कर सकें और समाज की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बना सकें.

संताली भाषा और संस्कृति का संरक्षण और विकास

संताल समाज की विशिष्ट पहचान उसकी भाषा और संस्कृति से भी जुड़ीहै.संताली भाषा, जो ओलचिकी लिपि में लिखी जाती है, समाज के सांस्कृतिक धरोहर का प्रमुख अंग है. कार्यशाला में इस बात पर जोर दिया गया कि संताली भाषा का प्रचार-प्रसार और संरक्षण अत्यंत आवश्यक है. इसके लिए समाज के हर गांव में संताली भाषा के पठन-पाठन का आयोजन किया जा रहा है, ताकि नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा से जुड़ी रह सके. भाषा किसी भी समाज की आत्मा होती है, और संताली भाषा के संरक्षण से समाज की सांस्कृतिक विरासत को भी सहेजा जा सकेगा. इसके लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं, जिसमें भाषा के महत्व को रेखांकित किया जा रहा है. साथ ही, पारंपरिक रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक आयोजनों में संताली भाषा का प्रयोग कर उसे और अधिक सशक्त किया जा रहा है.

जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा की दिशा में सामूहिक प्रयास

जल, जंगल और जमीन किसी भी आदिवासी समाज की आत्मा होते हैं.संताल समाज का अस्तित्व भी इन्हीं पर आधारित है. वक्ताओं ने इस बात पर विशेष रूप से प्रकाश डाला कि जंगल और आदिवासी एक-दूसरे के पूरक हैं. आदिवासी समाज ने सदियों से जंगलों की देखभाल की है और उन्हें संरक्षित किया है. आज के समय में जब जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियां सामने हैं, तब जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा न केवल आदिवासी समाज का, बल्कि हर व्यक्ति का कर्तव्य बन जाता है. जंगलों का संरक्षण और पुनरुद्धार करके ही हम पर्यावरण संतुलन को बनाये रख सकते हैं.संताल समाज के लोग इस दिशा में सदियों से योगदान देते आए हैं, और अब यह जिम्मेदारी हर नागरिक की होनी चाहिए कि वह प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के प्रति सजग रहे. समाज के सर्वांगीण विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी को निस्वार्थ भाव से योगदान देने का संकल्प लिया गया, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और समृद्ध पर्यावरण की नींव रखी जा सके.

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