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आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज 1983 में दो माह मधुबन में रुके, जानें कहां किया चातुर्मास

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने 17 फरवरी की देर रात 2:35 बजे डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र में महासमाधि में प्रवेश किया. महासमाधि में लीन होने की सूचना मिलते ही जैन समाज में शोक की लहर दौड़ गयी.

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने 17 फरवरी की देर रात 2:35 बजे डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र में महासमाधि में प्रवेश किया. महासमाधि में लीन होने की सूचना मिलते ही जैन समाज में शोक की लहर दौड़ गयी.

आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने 1968 में ली दिगंबरी दीक्षा

महान तीर्थंकरों की श्रेष्ठतम परंपराओं को अपने जीवन में आत्मसात करनेवाले जैन धर्म के महान आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने 1968 में दिगंबरी दीक्षा ली थी. तब से आज तक वह निरंतर सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य की साधना करते हुए इन पंच महाव्रतों के देशव्यापी प्रचार में समर्पित हो गये.

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सैकड़ों मुनियों और आर्यिकाओं को दी दीक्षा

लोक-कल्याण की भावना से अनुप्राणित होकर पूज्य आचार्य महाराज ने अपने जीवन में सैकड़ों मुनियों एवं आर्यिकाओं को दीक्षा प्रदान की और लोकोपकारी कार्यों के लिए सदैव अपनी प्रेरणा और आशीर्वाद प्रदान किया. विद्यासागर जी महाराज सन 1983 में सम्मेद शिखर आये थे. लगभग दो माह तक मधुबन में रुकने के बाद इसरी के लिए विहार कर गये थे.

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से जुड़ी खास बातें

  • महान तीर्थंकरों की श्रेष्ठतम परंपराओं को अपने जीवन में किया आत्मसात
  • जीवन में कभी कोई रस का सेवन नहीं किया
  • नहीं ली कभी कोई दवाई
  • लकड़ी के पाटे पर सोते थे
  • कभी कोई ओढ़ना इस्तेमाल नहीं किया

इसरी में किया था एक चातुर्मास

इसरी में आचार्य श्री ने एक चातुर्मास किया था. विद्यासागर जी महाराज को जब मन करता, वे दूसरे स्थान के लिए विहार कर जाते थे. जैन समाज के लोग बताते हैं कि आचार्यश्री ने कभी कोई रस का सेवन नहीं किया. कभी कोई दवाइयां नहीं लीं. लकड़ी के पाटे पर सोते थे. कभी कोई ओढ़ना नहीं लिया.

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जैन समाज के लोग बोले : साक्षात चलते-फिरते भगवान थे आचार्य विद्यासागर जी महाराज

हमने हमेशा मूर्तियों के दर्शन कर भगवान को देखा था. लेकिन आचार्यश्री विद्यासागर जी के रूप में हमने साक्षात चलते-फिरते भगवान को देखा.

शैलेश जैन

सन 1983 में आचार्यश्री का मधुबन में प्रवेश हुआ था. पूरे इलाके में उत्साह, उमंग व उल्लास देखने को मिल रहा था. दर्शन से जीवन धन्य हो गया था.

सत्येंद्र जैन, अध्यक्ष, मधुबन जैन समाज

महाराज श्री दो माह तक मधुबन की तेरहपंथी कोठी में रुके थे. शिखरजी में प्रवास के दौरान मधुबन क्षेत्र के एक-एक घर में आहार हुआ था.

विनोद जैन



आचार्यश्री के रूप में मैंने साक्षात भगवान को देखा है. उनके आगमन से पूरा मधुबन व आसपास का इलाका धन्य हो गया था.

मनोज जैन

गिरिडीह जिले के पीरटांड़ (मधुबन) से भोला पाठक की रिपोर्ट

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