पटना: सूबे के 1600 शिक्षा स्वयं सेवकों को बिहार शिक्षा परियोजना परियोजना परिषद ने हटाने का निर्देश दिया है. ये शिक्षा स्वयं सेवक अपने बच्चों समेत 17600 नि:शक्त बच्चों की देखभाल कर रहे थे.नि:शक्त बच्चों की उम्र 14 साल से ज्यादा होने के बाद उनके माता-पिता को इससे हटाने का निर्देश दिया है. इन शिक्षा स्वयं सेवकों को दिसंबर,2013 में ही पुनर्बहाल किया गया है.
हटाने के आदेश और फिर से बहाली की प्रक्रिया निकालने से कार्यरत शिक्षा स्वयं सेवकों में रोष है. वे सरकार से अपनी सेवा नियमित करने या फिर शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया में सीधी भरती करने की मांग कर रहे हैं. गया के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी अमित कुमार ने पत्र जारी कर कहा है कि दिसंबर में पुनर्बहाली के समय कई शिक्षा स्वयं सेवकों के दस्तावेजों की जांच की गयी थी. पुनर्बहाली के समय उनके बच्चों की उम्र 14 साल से अधिक हो गयी थी.
इसलिए 31 मार्च तक उन्हें अविलंब हटाया जाये. साथ ही उन्हें कोई राशि भी नहीं दी जायेगी. इधर, बीइपी के राज्य परियोजना निदेशक राहुल सिंह ने सभी जिलों के सर्व शिक्षा अभियान के पदाधिकारियों को फिर से बहाल करने का निर्देश दिया है. मैट्रिक और इंटर पास नि:शक्त बच्चों के माता-पिता ही शिक्षा स्वयं सेवक के रूप में चुने जायेंगे. नियुक्ति पत्र निर्गत करने के समय अगर उनका नि:शक्त बच्च 14 साल से अधिक उम्र का होगा,तो उनकी नियुक्ति नहीं होगी.
क्या14 के बाद देखरेख की जरूरत नहीं ?
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद् के निर्णय से क्षुब्ध स्वयं सेवकों का कहना है कि मार्च,2011 में उनकी बहाली हुई थी. इसके बाद दो बार आवासीय प्रशिक्षण भी हुआ. बजट का बहाना बना कर अप्रैल,2013 में उन्हें हटाया गया,लेकिन दबाव के बाद दिसंबर,2013 में फिर से बहाल किया गया. अब बच्चों की उम्र 14 साल से ज्यादा बता कर उन्हें हटाने का आदेश निकाला गया है. शिक्षा स्वयं सेवकों का आरोप है कि नियुक्ति के समय ऐसी कोई बात नहीं थी और न ही कभी बीच में ही इसकी चर्चा थी, लेकिन अचानक कहा गया कि बच्चे की उम्र 14 साल होने पर उन्हें हटा दिया जायेगा. क्या नि:शक्त बच्चों को 14 साल की उम्र के बाद देखरेख की जरूरत नहीं होती है क्या? ऐसा कर सरकार नि:शक्त बच्चों के माता-पिता से उनकी नौकरी छीन रही है.