पटना यूनिवर्सिटी का 105वां स्थापना दिवस: कल सुबह 41 छात्र-छात्राओं को मिलेगा गोल्ड मेडल

पटना यूनिवर्सिटी 105वीं स्थापना समारोह एक अक्तूबर को मनाने जा रही है. एक अक्तूबर 1917 को यह यूनिवर्सिटी कायम हुआ था. इस साल और इस महीने 105 साल का हो गया. 105वीं स्थापना समारोह एक अक्तूबर को 10:30 बजे मनाया जायेगा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 30, 2021 8:01 PM
an image

अनुराग प्रधान, पटना. पटना यूनिवर्सिटी 105वीं स्थापना समारोह एक अक्तूबर को मनाने जा रही है. एक अक्तूबर 1917 को यह यूनिवर्सिटी कायम हुआ था. इस साल और इस महीने 105 साल का हो गया. 105वीं स्थापना समारोह एक अक्तूबर को 10:30 बजे मनाया जायेगा. इस अवसर पर स्नातक स्तर के 2020 की परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले 41 छात्र-छात्राओं को गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया जायेगा. जिसमें 32 छात्राएं और 9 छात्र हैं.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर राज्य के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी को मौजूद रहेंगे. कार्यक्रम में अपर मुख्य सचिव शिक्षा विभाग संजय कुमार विशिष्ट अतिथि होंगे. कार्यक्रम पीयू के कुलपति प्रो गिरीश कुमार चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित होगी. सभी पदक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को पीयू के व्हीलर सीनेट हॉल में 10:30 बजे तक अपना स्थान ग्रहण करने को कहा गया है. इस कार्यक्रम में सभी शिक्षकों एवं कर्मचारियों को सम्मिलित होने का आग्रह किया गया है.

असहयोग आंदोलन में पीयू की भूमिका थी अहम: जयश्री मिश्रा

स्थापना के दौरान बिहार के सभी हाइ स्कूल और कॉलेज पीयू के अधीन थे. क्योंकि पीयू ही मैट्रिक की परीक्षा आयोजित कराता था. मगध महिला कॉलेज की पूर्व प्राचार्या व इतिहास विभाग की प्रो जयश्री मिश्रा कहती है कि नये विवि की खोलने की मांग 1912 से ही चल रही थी. इसे धीरे-धीरे पटल पर लाया गया और 1917 में यह स्थापित हुआ. लेकिन धीरे-धीरे अंगरेजों के खिलाफ माहौल बदल रहा था. लोग उग्र हो रहे थे. इस दौरान 1920-22 में कई लोगों ने पढ़ाई छोड़ दी थी.

अंगरेजों के निर्माण किये सरकारी स्कूल और कॉलेज में पढ़ना छोड़ दिया था. स्वतंत्रता आंदोलन और असहयोग आंदोलन में पटना यूनिवर्सिटी की महत्वपूर्ण भूमिका थी. प्रो जयश्री मिश्रा कहती हैं कि असहयोग आंदोलन शुरू होने के बाद गांधी जी के आवाहन किया था कि जीतने भी सरकारी स्कूल है और कॉलेज हैं, जो अंगरेजों ने शुरू किया वहां सभी लोग पढ़ना छोड़ दें. इस दौरान पीयू के कई लोगों ने पढ़ना और पढ़ाना दोनों छोड़ दिया.

गांधी के इस आवाहन के बाद बीएन कॉलेज में पढ़ाने वाले प्रो बद्रीनाथ वर्मा ने पढ़ाना छोड़ दिया. वहीं जय प्रकाश नारायण ने पटना कॉलेज में उस समय पढ़ रहे हैं, उन्होंने गांधी के आवाहन पर पढ़ाई छोड़ दी. उस दौरान कई लोग ने पढ़ाई छोड़ दी थी. गांधी ने कहा था कि राष्ट्रीय विद्यालय खोला जायेगा, सभी को उसी में पढ़ना है. इसके बाग सदाकत आश्रम में राष्ट्रीय विद्यालय चलने लगा और पढ़ाने छोड़ने वाले लोग यहां आकर पढ़ाई करने लगे थे.

स्वतंत्रता आंदोलन में सात छात्र गोली खाने वाल पीयू के थे

असहयोग आंदोलन के बाद 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ. इस दौरान देश के सभी जगहों के नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था. इस दौरान पीयू के सात छात्र ने सचिवालय में झंडा लहरा दिया. जिसके बाद सातों छात्र को गोली मार दी गयी. जिनकी मूर्ति आज भी विधानसभा के पास स्थित है.

इसमें बीएन कॉलेज के एक छात्र जगपति कुमार, मिलर हाइ स्कूल के देवी पद चौधरी, पटना हाइ स्कूल के राजेंद्र सिंह, राम मनोहर राय सेमिनरी स्कूल के उमाकांत प्रसाद सिन्हा और रामानंद सिंह, पुनपुन हाइ स्कूल के राम गोविंद सिंह शामिल थे. यह सभी पीयू के छात्र ही थे. क्योंकि उस दौरान बिहार के सभी सरकारी हाइ स्कूल और कॉलेज पीयू के अधीन थे.

1942 के आंदोलन को जेपी ने ही तेज किया

सभी नेताओं को जेल में बंद होने के बाद 1942 का आंदोलन नवंबर में कमजोर होने लगा, लेकिन जब जय प्रकाश ने अपने छह साथियों के साथ जेल से भागा तो आंदोलन में तेजी आयी. वह जेल से भाग कर नेपाल के तराई में चले गये और गुप्त तरीकों से आंदोलन को हवा दी. जिसमें उन्होंने पीयू के साथियों का भरपूर सहयोग मिला.

जेपी को पटना यूनिवर्सिटी के साथियों से हमेशा ही सहयोग मिला था. पटना यूनिवर्सिटी कई मायनों में खास था. यहां से अनेल लोग पढ़ कर निकले और कई बड़े-बड़े पोस्ट पर काबिज हैं. प्रो रणधीर प्रसाद सिंह कहते हैं कि पटना यूनिवर्सिटी का इतिहास गौरवशाली रहा है.

राज्य की कई बड़ी हस्तियां इस कॉलेज में शिक्षा प्राप्त कर चुकी हैं. विगत कुछ समय में इसकी स्थिति में कुछ गिरावट हुई है. शिक्षकों काफी अभाव है. लेकिन हमें फिर से उसी गौरवशाली अतीत को वापस लाना है.

यूनिवर्सिटी का इतिहास काफी स्वर्णिम था, जिसे वापस लाने का सभी लोग प्रयास कर रहे हैं. अभी भी बिहार का सबसे खास यूनिवर्सिटी यही है, लेकिन इसको और बेहतर करना होगा. पुरानी गौरव को वापस लाना होगा. इतिहास को बनाये रखने के लिए सभी को पहल करना चाहिए.

वर्ष 1952 में पीयू का एक अलग स्वरूप उभर कर आया सामने

वर्ष 1952 में पीयू का एक अलग स्वरूप उभर कर सामने आया. पटना शहर के पुराने 10 कालेजों और पोस्ट – ग्रेजुएट (स्नातकोत्तर) विभागों को एक साथ एक परिसर में लाया गया. अंग्रजों के शासनकाल में बनी शानदार इमारतों वाला यह शैक्षणिक कैंपस गंगा नदी के तट पर स्थित है.

पटना सायंस कॉलेज, पटना कॉलेज, बीएन कॉलेज, लॉ कॉलेज, वाणिज्य महाविद्यालय, मगध महिला कॉलेज, ट्रेनिंग कॉलेज, कला एवं शिल्प महाविद्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज, पटना मेडिकल कॉलेज, पटना वीमेंस कॉलेज और आर्ट्स के साथ साइंस के विभिन्न विषयों के स्नतकोत्तर विभागों वाले ‘दरभंगा हाउस’ सभी पटना यूनिवर्सिटी के अधीन थे. इसके बाद समय के अनुसार पटना मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज पीयू ने वापस ले लिया गया.

कई हस्तियों ने बढ़ाया मान

इतिहास की शिक्षिका प्रो जयश्री मिश्रा कहती हैं कि यहां प्राचीन इतिहास और संस्कृति विभाग के प्रख्यात शिक्षक प्रो अल्तेकर, जानेमाने इतिहासकार प्रो रामशरण शर्मा, प्रो सय्यद हसन अस्करी, प्रो केके दत्त, राजनीति शास्त्र के विद्वान प्रो मेनन, प्रो फिलिप्स और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बाथेजा जैसे शिक्षक पीयू की गरिमा में चार चांद लगाते थे. यहां कई विद्वान हमेशा आकर स्टूडेंट्स को ज्ञान बांटते थे.

वर्ष 1931 में यहां ‘इंडियन साइंस कांग्रेस’ का आयोजन हुआ था, जो सायंस कॉलेज में आयोजित हुआ था. इसमें नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक सीवी रमण समेत कई बड़े-बड़े वैज्ञानिक शामिल हुए थे. सीवी रमण तो यहां बराबर व्याख्यान देने भी आया करते थे. पंडित राहुल सांकृत्यायन और सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे विद्वानों को भी यहां उस समय व्याख्यान देने के लिए बुलाया जाता था.

Posted by Ashish Jha

Exit mobile version