दरवाजे से नहीं बनती बात खिड़की से घुसते हैं यात्री

पटना : जनसाधारण एक्सप्रेस रविवार को दो घंटे 10 मिनट लेट थी. ट्रेन पकड़ने के लिए यात्री तेजी से राजेंद्रनगर टर्मिनल की तरफ बढ़ रहे थे. आधे घंटे में प्लेटफॉर्म नंबर दो यात्रियों से खचाखच भर गया. शाम छह बजे ट्रेन प्लेटफॉर्म पर दाखिल हुई. ट्रेन की रफ्तार जरूर कम थी, लेकिन अभी पूरी तरह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 5, 2014 5:37 AM

पटना : जनसाधारण एक्सप्रेस रविवार को दो घंटे 10 मिनट लेट थी. ट्रेन पकड़ने के लिए यात्री तेजी से राजेंद्रनगर टर्मिनल की तरफ बढ़ रहे थे. आधे घंटे में प्लेटफॉर्म नंबर दो यात्रियों से खचाखच भर गया. शाम छह बजे ट्रेन प्लेटफॉर्म पर दाखिल हुई. ट्रेन की रफ्तार जरूर कम थी, लेकिन अभी पूरी तरह से रुकी नहीं थी. कुछ लोग अपने लगेज को कंधे पर लटका कर ट्रेन के साथ दौड़ने लगे.

कुछ पायदान पर चढ़ कर दरवाजे पर काबिज हो गये. अब पायदान से ही दरवाजे को खोलने का प्रयास करने लगे. दरवाजा अंदर से लॉक था. कोशिश बेकार गयी. अब ट्रेन रुक चुकी थी, किंतु दरवाजा नहीं खुला. सबसे पहले बर्थ हासिल करने के मंसूबे पर पानी फिर गया. गुस्सा आया, तो पहले जोर से दरवाजा हिलाया, नहीं खुला, तो दो बार लात मार कर आगे बढ़ गये. आगे का दरवाजा भी बंद था. इस बीच यात्री की नजर इमरजेंसी विंडो की तरफ पड़ी. वह विंडो की तरफ दौड़ा और झट से अपना लगेज को बर्थ पर डाल दिया. लगेज सीट पर पहुंचा, तो हौसला बढ़ गया. यात्री ने थोड़ी जंप लगायी और शरीर को धनुष की तरह मोड़ कर विंडो के रास्ते अंदर घुसने लगा.

थोड़ी-सी मुश्किल हुई, लेकिन सफलता आखिरकार मिल ही गयी. सीधे बर्थ पर पहुंचा, तो चेहरे पर विजयी मुस्कान देखने लायक थी. ट्रेन छूटने तक बर्थ के लिए खतरनाक प्रयास जारी था. 6.10 बज गये थे. अब दरवाजा खुल गया था. लेकिन भीड़ छंटने का नाम ही नहीं ले रही थी. 6.30 बज गये थे. ट्रेन छूटने से पहले हॉर्न दे रही थी. कोच के प्रत्येक दरवाजे पर यात्री ट्रेन में चढ़ने के प्रयास में अभी भी जुटे रहे. ट्रेन खुली, तो भीड़ अंदर तक सिमटती गयी.

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