रविशंकर उपाध्याय @ पटना:सावन का पावन महीना 17 जुलाई से शुरू हो गया है और इसके साथ ही केसरिया कपड़े पहने शिवभक्तों के जत्थे गंगा से पवित्र जल कांवर से लेकर शिवलिंग पर चढ़ा रहे हैं. ये जत्थे जिन्हें हम कावरियां कहते हैं, वे पूरी श्रद्धा से शिव मंदिरों में पहुंच कर जलार्पण करते हैं. परंपराओं और आस्था के इस मेले का बिहार से पुराना संबंध है.
पौराणिक आख्यानों में यह कहा गया है कि भगवान राम पहली बार सुल्तानगंज से गंगा जल कांवर पर लेकर 108 किमी की यात्रा करते हुए देवघर गये थे और वहां भगवान शिव का जलाभिषेक किया था. दैवज्ञ आचार्य श्रीपति त्रिपाठी कहते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भगवान शिव को कांवरिया बनकर जल चढ़ाया था.
यह इतिहास की पहली ऐसी घटना थी जब कांवर लेकर किसी ने लंबी यात्रा करते हुए देवघर में बाबा वैद्यनाथ को जलार्पण किया था. इसके बाद से ही कांवर यात्रा के परंपरा की शुरुआत हुई. रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, लिंग थाप कर विधिवत पूजा, शिव समान मोही और न दूजा. अर्थात भगवान राम का कहना है कि भगवान शिव के समान मुझे कोई दूसरा प्रिय नहीं हैं, शिव मेरे आराध्य हैं.
वहीं कुछ विद्वानों की मानें तो सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने कांवर यात्रा की थी. उनके अंधे माता-पिता ने उनसे हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा जतायी थी. माता-पिता की इच्छा की पूर्ति हेतु श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवर में बैठा कर हरिद्वार ले गये और उन्हें गंगा स्नान कराया. वापस लौटते हुए वह गंगाजल को भी साथ ले गये. हालांकि इसे कांवर से यात्रा कहा जा सकता है लेकिन शिवजी को जलार्पण करने के लिए जो यात्रा होती है उससे यह अलग है.
एक और कथा है कि भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव के नियमित पूजन के लिए पुरा महादेव में मंदिर की स्थापना कर कांवर में गंगाजल से पूजन कर कांवर परंपरा की शुरुआत की. शिवजी को श्रावण का सोमवार विशेष रूप से प्रिय है. श्रावण में भगवान आशुतोष का गंगाजल व पंचामृत से अभिषेक करने से शीतलता मिलती है.