नगर निगम ने डुबाया पटना

राजधानी में जलजमाव के पीछे मेयर व नगर आयुक्त की लड़ाईं सीएम का आदेश बेअसर : 24 घंटे में नहीं निकला पानी पटना: मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बुधवार को कहा कि जल निकासी में पटना नगर निगम फेल हो गया है. बाढ़ग्रस्त जिलों के डीएम से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बाद संवाददाताओं से बातचीत में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 21, 2014 6:56 AM

राजधानी में जलजमाव के पीछे मेयर व नगर आयुक्त की लड़ाईं

सीएम का आदेश बेअसर : 24 घंटे में नहीं निकला पानी

पटना: मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बुधवार को कहा कि जल निकासी में पटना नगर निगम फेल हो गया है. बाढ़ग्रस्त जिलों के डीएम से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि हमने नगर निगम को 27 करोड़ रुपये नगर की सफाई और मशीन खरीदने के लिए दिये.

यह रकम नगर निगम खर्च नहीं कर पाया. नगर आयुक्त और महापौर की आपसी लड़ाई में नगर निगम में कोई काम नहीं हो रहा है. इससे हमें परेशानी हो रही है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि नगर निगम इतना लापरवाह है कि बीच सड़क पर मैनहॉल को बंद नहीं कर पाया. इससे कई बच्चों की मौत हो चुकी है. पूर्व सचिव डॉ एस सिद्घार्थ ने नगर निगम के लिए कई योजनाएं बनायी थीं, जिनकी स्वीकृति भी मिल चुकी है, लेकिन क्रियान्वयन नहीं हो पाया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि मुख्य सचिव को निर्देश दिया गया है कि वह वैकल्पिक रास्ता निकाल कर कार्य कराएं, ताकि शहर के लोगों को परेशानी नहीं हो और पटना में जलजमाव से मुक्त रहे.

मुख्यमंत्री ने कहा कि पटना में जलजमाव का कारण कंकड़बाग का एक नाला है. उस नाले का पुल धंस गया है. पुल के धंस जाने से पानी का ड्रेन आउट नहीं हो पाता है. एक-दो घंटे मशीनें चलती हैं. फिर बंद हो जाती हैं. धंसे हुए पुल को चालू रहते मरम्मत का मैकेनिज्म हमारे पास उपलब्ध नहीं है. इसे बनाने के लिए सेना को बुलाया गया है. सेना वैकल्पिक पुल बनायेगी. नवंबर-दिसंबर में उस पुल को तोड़ कर नया पुल बनाया जायेगा.

मैंने ही पूर्व नगर सचिव से योजनाओं की राशि को लेकर आग्रह किया था और मेरी अनुशंसा पर 25 करोड़ स्वीकृत किये गये थे. उस समय नगर विकास मंत्री के प्रभार में तत्कालीन मुख्यमंत्री थे. राशि निगम में आ भी गयी है. क्रियान्वयन की जिम्मेवारी नगर आयुक्त की होती है. आयुक्त ने आज तक एक योजना पूरा नहीं किया.

अफजल इमाम, मेयर

हमें इस पर कुछ नहीं कहना है.

कुलदीप नारायण, नगर आयुक्त

आयुक्त-मेयर के विवाद में लटकीं योजनाएं
– सफाई उपकरणों की खरीदारी
– डोर टू डोर कचरा कलेक्शन ल्ल 51 चिह्न्ति पार्किग को संचालित करना
– जलापूर्ति योजना
– सीवरेज योजना
– सार्वजनिक स्थानों पर पेयजल की व्यवस्था
– सार्वजनिक स्थानों पर यूरिनल की व्यवस्था
– नक्शा जांच को लेकर कंप्यूटरीकृत व्यवस्था
– पार्षदों की अनुशंसा पर 10 व 15 लाख की योजना को पूरा करना
– वार्डो में लाइटिंग
दोनों पक्षों को फिर नोटिस, 23 को रखेंगे पक्ष
पटना : नगर आयुक्त व मेयर के आपसी विवाद को लेकर दोनों को अपनी-अपनी बात कहने के लिए डीएम ने 23 अगस्त का समय दिया है. उस दिन दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात रखेंगे. नगर आयुक्त कुलदीप नारायण अपनी बात कहेंगे, वहीं नगर निगम की सशक्त स्थायी समिति के सदस्य अपना पक्ष रखेंगे. आपसी विवाद के मामले में सशक्त स्थायी समिति के सदस्य याचिकाकर्ता हैं.
सदस्यों ने आरोप लगाया है कि समिति से पारित योजना पर भी साल भर से काम नहीं कराया जा रहा है. निगम में नगर आयुक्त व मेयर के आपसी विवाद का निबटारा के लिए नगर विकास व आवास विभाग के सचिव ने पटना जिले के डीएम को अधिकृत किया है.
इस संबंध में डीएम मनीष कुमार वर्मा ने बताया कि दोनों पक्ष को अपनी-अपनी बात रखने के लिए नोटिस दिया गया था, लेकिन खुद अस्वस्थ होने के कारण वह सुनवाई नहीं कर सकें. दोनों पक्ष को 23 अगस्त को बुलाया गया है.
इमाम इमानदार न रहें और नारायण डुबाने पर उतारू हों, तो कहां जाएं
पंकज मुकाती
यह देर से आया, पर सौ फीसदी दुरुस्त सच है. इसमें कोई शक नहीं कि पटना के डूबने का जिम्मेदार पटना नगर निगम है. खुद मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इसे स्वीकारा. कहा कि मेयर और आयुक्त की लड़ाई का खामियाजा जनता भुगत रही है. इसे मुख्यमंत्री का साहस कहा जाये या नाकामी. साहस इसलिए कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के मेयर को नाकाबिल बताया है.
उनके ही मातहत काम करनेवाले नगर आयुक्त को गैर जिम्मेदार ठहराया है. जदयू की सरकार के कार्यकाल में ही ‘अनंत ’ सहयोग से मेयर ने ताकत हासिल की है. इतनी साफगोई से राजनीति में बात रखना आज के दौर में साहस ही है. पर, विपक्ष इसे नाकामी बता कर कह सकता है कि मुख्यमंत्री तो सर्वेसर्वा हैं. कार्रवाई का अधिकार रखते हैं, फिर बयान क्यों? उम्मीद है कि सीएम ने जिस संजीदगी से पटना के दर्द को समझा है, वे उचित कार्रवाई भी करेंगे.
मेयर और आयुक्त का विवाद आज का नहीं है, फिर सारे जिम्मेदार पटना के गले तक डूब का तमाशा क्यों देखते रहे?
मेयर अफजल इमाम और नगर आयुक्त कुलदीप नारायण दोनों जिद्दी, अभिमानी और मनमानी के पर्याय बन चुके हैं. दोनों के केबिन के बीच बमुश्किल चार फुट का फासला है, पर न दुआ, न प्रणाम. इनका विवाद निगम की चौखट लांघ कर अदालत तक आ गया. पटना बारिश से तो अभी डूबा, पर निगम के विवाद ने जो गड्ढा खोदा है, उसने शहर को काफी पहले ही डूबो दिया.
राजधानी में सफाई तो सालों से नहीं हुई.
सड़कें अंधेरे में हैं, ट्रैफिक सिगनल का पता नहीं, पार्किग में दुकानें, बगीचों में मकान, घरों में पानी और नलों में सूखा इसकी विशेषता बन चुकी है. आखिर इस शहर की, यहां की 20 लाख आबादी की जिंदगी की जिम्मेदारी कौन लेगा? दिल्ली, मुंबई की घटनाओं पर जुलूस निकालनेवाले विपक्षी नेता, पटना के सांसद, विधायक पटना के मामले में चुप क्यों हैं? क्या वे इस अव्यवस्था की गंदगी को साफ करने सड़क पर उतरेंगे? आवाज बुलंद करेंगे? यह पटना की साख का सवाल है.
इस शहर की बदहाली के जिम्मेदार अकेले मेयर-आयुक्त नहीं हैं. जिम्मेदार जनता भी है, जो अवैध निर्माण करती है, मैदान में मकान बनाती है, टैक्स नहीं चुकाती, कूड़ा सड़क पर फेंकती है. जनता को भी जागरूक होना होगा. राजनीति और निजी स्वार्थो की श्रृंखला के कारण ही मेयर कुरसी पर जमे हुए हैं.
क्यों सरकार ने इस मामले में अब तक पहल नहीं की? वे 71 पार्षद भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने मेयर को बने रहने दिया. किसी को उनके काम पर विश्वास नहीं. 50 से ज्यादा पार्षदों ने उन पर अविश्वास जताया, पर जब वोट की बारी आयी, तो सबने मिल कर उन्हें जिता दिया. कुछ ने वोट दिया, तो कुछ ने गायब रह कर समर्थन दिया. आखिर उस विश्वास को जीतने से क्या फायदा, जिसमें शहर हार जाये.
इन 71 पार्षदों और विधायकों के पास अब भी वक्त है, जनता के बीच अपनी साख बचाने का, वरना अगली बार जब वोट मांगने जायेंगे, तब जनता उन्हें चुल्लू भर पानी की तरफ इशारा कर देगी. जब इमाम खुद ईमानदार न रहें, नारायण डुबाने पर उतारू हों, तो पटना कैसे बचेगा?

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