पटना: पटना मेट्रो परियोजना की अंतिम डीपीआर 31 अक्तूबर तक तैयार कर राइट्स को भेजने का निर्देश दिया गया है. नगर विकास एवं आवास मंत्री सम्राट चौधरी ने शुक्रवार को मेट्रो परियोजना की पूरी समीक्षा की. पहले फेज में 32 किलोमीटर मेट्रो का निर्माण कराया जाना है. इस पर करीब 17 हजार करोड़ रुपये के खर्च होने का अनुमान है.
उन्होंने परियोजना को गति देने के लिए अलग से एक इंजीनियर नीरज सक्सेना को ओएसडी के रूप में तैनात किया है. उन्हें निर्देश दिया गया है कि 15 दिनों के अंदर पूरी योजना के खर्च में कमी लाने की दिशा में रिपोर्ट तैयार करें. किस प्रकार से एलिवेटेड व भूमिगत रेल परियोजनाओं में कमी
लायी जा सकती है. यह रिपोर्ट राइट्स को भेज दी जायेगी.
समीक्षा बैठक के बाद नगर विकास मंत्री सम्राट चौधरी ने बताया कि पहले चरण में इस्ट-वेस्ट कोरिडोर का निर्माण कराया जायेगा. सगुना मोड़ से मीठापुर बस स्टैंड के इस्ट-वेस्ट कोरिडोर की लंबाई 14.5 किलोमीटर होगी.
दूसरा कोरिडोर नॉर्थ-साउथ है, जिसकी लंबाई 16.5 किलोमीटर है. उन्होंने बताया कि इस संभावना की तलाश भी की जा रही है कि जहां पर पूर्व में ओवरब्रिज हैं, उसके ऊपर किस प्रकार से मेट्रो का ट्रैक बनाया जाये. इससे लागत में बहुत कमी आ जायेगी. भूमिगत रेल पर ऊपरी पथ से दोगुना लागत आती है. ऊपरी पथ पर अगर 200 करोड़ खर्च होंगे, तो भूमिगत पर 400 करोड़ से अधिक का खर्च होगा.
क्या है राइट्स
राइट्स रेलवे की इंजीनियरिंग कंपनी है, जो रेलवे के अलावा दूसरे सेक्टर में भी निर्माण कार्य में हिस्सा लेती है. बिहार सरकार ने पटना में मेट्रो के निर्माण के लिए डीपीआर बनाने का राइट्स को ही जिम्मेवारी सौंपी है.
पटना मेट्रो कॉरपोरेशन का होगा गठन
मेट्रो परियोजना को अमली रूप देने लिए पटना मेट्रो कॉरपोरेशन का गठन किया जायेगा. साथ ही एपीवी का भी गठन होगा. इसमें मुख्य सचिव के अलावा ऊर्जा, परिवहन सहित अन्य विभागों के सचिवों को शामिल किया जायेगा. सम्राट चौधरी ने बताया कि पहले चरण में खर्च होनेवाली 17 हजार करोड़ की राशि में से परियोजना खर्च का 15 फीसदी केंद्र सरकार और 15 फीसदी राज्य सरकार से सहयोग मिलेगी. इसके अलावा केंद्र व राज्य सरकार अपने-अपने टैक्स में भी पांच-पांच प्रतिशत की छूट देगी. यही नहीं, पटना नगर निगम और पटना डेवलपमेंट ऑथोरिटी की ओर से तीन से पांच फीसदी तक परियोजना खर्च में आर्थिक सहयोग किया जा सकता है. इस प्रकार कुल खर्च की 40-45 फीसदी राशि सहयोग के रूप में मिलेगी. शेष राशि को सॉफ्ट लोन के रूप में जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जायका) या एडीबी से लेने पर विचार किया जायेगा.
एफआइआरआर के मुद्दे पर संशय
श्री चौधरी ने बताया कि एक मुद्दे को लेकर अभी संशय बनी हुई है, वह है फिनांशियल इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न (एफआइआरआर) का. राइट्स का मानना है कि यह कुल प्रोजेक्ट का आठ फीसदी से रिटर्न होना चाहिए, वहीं इसको लेकर विभाग का मानना है कि यह सोशल सेक्टर का काम है, इसलिए इस पर इतनी राशि की वापसी होना संभव नहीं है. मेट्रो के संचालित होने पर अन्य क्षेत्रों जैसे आसपास के मुहल्लों का विकास, पेट्रोल की कम खपत, पर्यावरण की रक्षा आदि के माध्यम से अधिक रिटर्न होता है, जो उससे कई गुना अधिक है.