बिहार के होनहार वैज्ञानिक, इनसानी फितरत वाला रोबोट बना रहे अमित

पटना: बिहार के अमित पांडेय को जितना लोग यूरोप में जानते हैं, उतना भारत में नहीं. यूरोप में आज यह नाम इनसानी रोबोट की कल्पना को आधार दृष्टि देनेवाला चेहरा बन गया है. अपनी दक्षता और प्रतिभा के बल पर अमित आज यूरोपियन यूनियन रोबोटिक्स और यूरोपियन कमीशन नाम की संस्थाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 22, 2014 2:10 AM

पटना: बिहार के अमित पांडेय को जितना लोग यूरोप में जानते हैं, उतना भारत में नहीं. यूरोप में आज यह नाम इनसानी रोबोट की कल्पना को आधार दृष्टि देनेवाला चेहरा बन गया है. अपनी दक्षता और प्रतिभा के बल पर अमित आज यूरोपियन यूनियन रोबोटिक्स और यूरोपियन कमीशन नाम की संस्थाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

यही नहीं, उनके पीएचडी थिसिस को पिछले साल जॉर्ज गिराल्ट अवार्ड मिल चुका है. रोबोट को लेकर यूरोप में किसी भारतीय के पीएचडी पेपर को सम्मान मिलना पहला उदाहरण है. यूरोपियन यूनियन के होरिजन-2020 रोडमैप में उनके सामाजिक रोबोट संबंधी पेपर को हिस्सा बनाया गया है. इनसानी फितरतवाले रोबोट को आकार देने का काम तेजी से चल रहा है. अमित फिलहाल पेरिस में अल्डेबरान नाम की कंपनी में रिसर्च साइंटिस्ट के तौर पर काम कर रहे हैं. अमित से यह संवाद इंटरनेट के जरिये हुआ.

कंप्यूटर की तरह हर घर में होगा रोबोट
एक इनसान की हर जरूरत को पूरा करनेवाले रोबोट को बनाने की तैयारी की जा रही है. एक ऐसा रोबोट, जो सामाजिक और स्मार्ट होगा. मोबाइल फोन के स्मार्ट फोन में तब्दील होने से जिस प्रकार अनंत अप्लिकेशंस के दरवाजे खुल गये, ठीक उसी तरह एक रोबोट, जो घर में बच्चों की देखभाल करेगा और सीनियर सिटीजन के स्वास्थ्य को मॉनीटर कर सकेगा. अमित कहते हैं : हम ऐसे रोबोट को साकार करने में लगे हैं, जो इनसानी माहौल में रह सके. वह न केवल परिस्थितियों को भांप सकेगा, बल्कि समय रहते हमें आगाह भी करेगा. इनसान और समाज के लिए फायदेमंद साबित होनेवाला ऐसा रोबोट घर के अलावा ऑफिस, मॉल्स, एयरपोर्ट और अस्पताल जैसे सार्वजनिक जगहों पर दिखेगा.

सामाजिक और बुद्धिमान रोबोट
यूरोप और पूरी दुनिया में सामाजिक बुद्धिमान रोबोट्स पर बहुत सारे रिसर्च हो रहे हैं. अमित ने बताया : बहुत सारे यूरोपियन यूनियन के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा हूं. उनमें से एक है रोमियो-2. इसका उद्देश्य मनुष्य जैसा एक रोबोट बनाना है, जो रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन कर हमारी जरूरतों को पूरा कर सके. एक दूसरा यूरोपियन यूनियन प्रोजेक्ट है रोबो हाउ. इसका उद्देश्य मनुष्य के साथ रहते हुए रोजमर्रा के काम करना. मसलन, केक बनान, फ्रीज खोलना, ग्लास में पानी डालना वगैरह. एक तीसरा प्रोजेक्ट जो बहुत सफल रहा, वह था ऐसा रोबोट जो किसी आदमी के काम को देख कर उसे करने या सिखने की क्षमता का विकास करना. अमित का मानना है कि वह दिन दूर नहीं जब रोबोट्स हमारे आसपास होंगे. ठीक उसी तरह जैसे आज कंप्यूटर है. आमतौर पर रोबोट की छवि डरावनी होती है. खासकर हॉलीवुड की फिल्मों में जो रोबोट दिखाया जाता है, लेकिन अमित का रोबोट उससे बिल्कुल जुदा होगा.

थ्री इडिएट और अमित
पटना के कॉलेज ऑफ कॉमर्स से 1999 में 12वीं के बाद अमित टॉप लेवल की प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल नहीं हो सके थे. उनकी रु चि दूसरी थी, जो उन्हें कहीं दूसरी जगह ले जानेवाली थी. अमित कहते हैं : उस समय मुङो बहुत बुरा लगता था. पर जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में मेरा चयन हो गया. वहां से बीटेक करने के बाद 2005 में उन्होंने गेट किया. उसमें 98.48 फीसदी अंक आये. हैदराबाद से ट्रिपल आइआइटी की. 2008 में फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ टॉल्से से पीएचडी के लिए आवेदन मांगे गये थे. उसमें अमित का चयन हो गया. 2012 में उन्हें पीएचडी की डिग्री मिल गयी. उनकी थिसिस का टाइटल था: टूअर्डस सोशली इंटेलीजेंट रोबोट्स इन ह्यूमन स्टैंडर्ड इन्वायरन्मेंट (इनसानी माहौल में काम करने लायक ऐसे रोबोट का विकास, जिसमें सामाजिक बौद्धिकता हो). अमित ने बताया कि उनके थिसिस को पूरे यूरोप में रोबोटिक्स के टॉप तीन पीएचडी थिसिस में जगह मिली थी. पुरस्कार के तौर पर उनके पीएचडी थिसिस को स्प्रिंगर ट्रैक्ट्स ऑन एडवांस्ड रोबोटिक्स में मोनोग्राफ (बुक) के तौर पर छापा जायेगा. अमित के दोस्त मिथिलेश कहते हैं कि उसे शुरू से ही मशीन बनाने में गहरी रु चि थी. वह उड़नेवाली मशीनें बनाया करते थे.

बिहार में कुछ करने की तमन्ना
अमित कहते हैं कि बिहार में रोबिटिक्स लैब खोलने की संभावना की तलाश की जानी चाहिए. यह तकनीक के विस्तार के लिहाज से और बिहार के लोगों की तकनीक में भागीदारी के ख्याल से भी जरूरी है. अपने देश में रोबोटिक्स साइंस का तेजी से विस्तार हो रहा है. रोबोटिक्स सोसाइटी का बनना, कई इंस्टीट्यूट और यूनिवर्सिटी में रोबोटिक्स डिपार्टमेंट और प्रयोगशालाओं का खुलना, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट के पाठ्यक्र म में इसे शामिल किया जाना बताता है कि रोबोटिक्स साइंस में हमारी भी पहचान बनेगी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी, साउथ कोरिया और चीन रोबोटिक्स की संभावनाओं के मद्देनजर इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं.

चुरामनपुर है गांव
अमित कहते हैं कि मेरे अपने गांव चुरामनपुर की यादें धुंधली नहीं हुई हैं. मेरे पिता सुनील कुमार पांडेय बिहार सरकार में इंजीनियर थे. अब रिटायर हो चुके हैं. सरकारी नौकरी में होने के चलते मेरा भी तबादला होता रहा. 10वीं समस्तीपुर के एसके हाइस्कूल से की, तो 12वीं पटना के कॉलेज ऑफ कॉमर्स से. वह कहते हैं: पटना का नाम सुनते ही लगता है घर आ गया. उस शहर में जाता हूं ,तो रास्ता पूछने की जरूरत नहीं पड़ती. कदम बढ़ाते ही सड़कें और उनसे निकलती गलियों का एक नक्शा-सा बनने लगता है, जो गूगल मैप से भी बेहतर होता है.

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