सुमित कुमार, पटना. लोकसभा चुनाव 2024 में बड़े-बड़े सूरमा चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी में जुटे हैं. मगर यह जानकर आश्चर्य होगा कि पिछले दो लोकसभा चुनाव के दौरान मैदान में उतरने वाले 15 फीसदी उम्मीदवार भी अपनी जमानत बचाने में सफल नहीं हो सके. 2014 में बिहार के सभी 40 लोकसभा क्षेत्रों में अंतिम रूप से लड़ने वाले 607 उम्मीदवारों में 512 यानि लगभग 85 फीसदी जबकि 2019 में उतरे कुल 626 में से 570 यानि 87 फीसदी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी. चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक अगर चुनाव में किसी उम्मीदवार को कुल पड़े वोटों का 1/6 फीसदी हासिल नहीं होता है तो उस उम्मीदवार की जमानत जब्त हो जाती है.
10 फीसदी से भी कम रही महिलाओं की भागीदारी
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दोनों लोकसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम रही है. 2014 लोकसभा चुनाव में उतरे कुल 607 उम्मीदवारों में 560 यानि लगभग 92 फीसदी पुरुष जबकि आठ फीसदी महिलाएं थीं. इसी तरह, 2019 लोकसभा चुनाव में उतरे कुल 626 उम्मीदवारों में 91 फीसदी यानि 570 पुरुष और मात्र नौ फीसदी यानि कुल 56 महिलाएं थीं. इस चुनाव में तीन महिलाओं वीणा देवी, कविता सिंह और रमा देवी चुन कर आयी थीं. बिहार में थर्ड जेंडर से एक नामांकन तक नहीं हुआ. दोनों लोकसभा चुनाव में देश भर से मात्र छह-छह थर्ड जेंडर के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे.
हर सीट पर औसतन 13 उम्मीदवार की रही मौजूदगी
आंकड़ों के हिसाब से देखें तो दोनों चुनाव में हर सीट पर औसतन 13 उम्मीदवार की मौजूदगी रही. 2014 में हर सीट पर औसतन 12.5 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे. वहीं, 2019 में यह आंकड़ा बढ़ कर 13.7 हो गया. 2014 में कुल 709 नामांकन हुए. इनमें 79 नामांकन रद्द कर दिये गये जबकि 23 ने नामांकन वापस ले लिया. 2019 में नामांकन करने वाले उम्मीदवारों की संख्या बढ़ कर 902 पहुंच गयी. लेकिन, इस चुनाव में 255 आवेदन रद्द किये जाने और 21 नामांकन वापस लिये जाने से अंतिम रूप से चुनाव मैदान में खड़े उम्मीदवारों की संख्या 626 रह गयी.
लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव की भी बिछ रही बिसात
लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज गयी है. बिहार में टिकटों के बंटवारे का सिलसिला जारी है. वोट को साधने में राजनीति दल जुट गये हैं. पाला बदलने का खेल भी बदस्तूर जारी है. जदयू ने अपने कोटे की सभी 16 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है. राजद ने भी कई सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिये हैं. एनडीए के सहयोगी के तौर पर रालोमो और हम ने भी उम्मीदवार मैदान में उतार दिये हैं. राजनीतिक दलों की घोषित उम्मीदवारों की सूची में कुशवाहा वोट को साधने का गणित लगाते देखा जा रहा है.
जानकार बताते हैं कि इस लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा चुनाव की भी बिसात बिछायी जा रही है. राजनीतिक दल उम्मीदवारी में विधानसभा का समीकरण भी साध रहे हैं. इसमें कुशवाहा को फिलहाल केंद्र बिंदु बनाया गया है. जातीय गणना की रिपोर्ट के अनुसार, यादव के बाद कुशवाहा आबादी में दूसरे स्थान पर हैं. कुशवाहा की आबादी 4.21 प्रतिशत है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोट देने का पैटर्न बदल जाता है.
विधानसभा चुनाव में इसे साधने की कवायद हो रही है. कुशवाहा जाति का किसी भी दल की तरफ एकतरफा रूख चुनाव परिणाम को प्रभावित करेगा. यही कारण है कि नवादा और औरंगाबाद जैसी लोकसभा सीट पर राजद ने कुशवाहा उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया है.
तीन जातियों को मिलाकर बना था त्रिवेणी संघ
वर्ष 1934 में कोइरी, कुर्मी और यादव जाति को मिलाकर त्रिवेणी संघ बना था. बिहार के संदर्भ में त्रिवेणी संघ में शामिल यादव और कुर्मी को राज्य की गद्दी मिल गयी. अभी कुशवाहा को बिहार की सत्ता चलाने का अवसर नहीं मिला है. तब से अब तक कुशवाहा समाज में राजनीतिक भागीदारी की कवायद चल रही है.
नवादा व औरंगाबाद जैसी सीट पर राजद ने उतारा कुशवाहा उम्मीदवार
नवादा और औरंगाबाद जैसी सीट पर राजद ने कुशवाहा उम्मीदवार उतार दिये हैं. 16 सीटों में तीन सीटें जदयू ने कुशवाहा जाति के उम्मीदवार को दे दी है. जदयू ने बाल्मिकिनगर से सुनील कुमार, पूर्णिया से संतोष कुमार तथा रालोमो छोड़कर आये रमेश सिंह कुशवाहा की पत्नी विजयलक्ष्मी को सीवान से उम्मीदवार बना दिया है. जदयू ने अपने कोटे से लगभग 19 फीसदी टिकट कुशवाहा समाज को थमाया है.
उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोमो को एनडीए के सहयोगी दल के तौर पर एक सीट मिली है. वे खुद काराकाट से उम्मीवार हैं. अभी भाजपा की लिस्ट नहीं आयी है. राजद, कांग्रेस, लोजपा और वामपंथी दलों ने सभी सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवार घोषित होने के बाद कुशवाहा उम्मीदवारों में अभी और इजाफा की संभावना है.
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