Loading election data...

कुसहा त्रासदी के 15 साल: आज भी हरे हैं जख्म, अधुरा ही रह गया सुंदर कोसी का सपना

कुसहा त्रासदी के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार के द्वारा उस दौरान बड़ी-बड़ी घोषणा भी की गयी थी, लेकिन आलम यह है कि अधिकारियों द्वारा जिले से लेकर प्रखंड स्तर तक कुसहा त्रासदी से जुड़ी सभी फाइलों को बंद कर दिया गया.

By Ashish Jha | August 17, 2023 5:49 PM

पतरघट(सहरसा).18 अगस्त, 2008 की वह काली रात कुसहा त्रासदी के 15 वर्ष गुजर जाने के बाद भी आज तक उस प्रलयंकारी बाढ़ के जख्म भरे नहीं हैं. ध्वस्त हो चुकी कोसी की संरचनाओं को संवारकर सुंदर कोसी बनाये जाने का अब क्या होगा, यह अहम सवाल आज भी जिंदा है. कुसहा त्रासदी के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार के द्वारा उस दौरान बड़ी-बड़ी घोषणा भी की गयी थी, लेकिन आलम यह है कि अधिकारियों द्वारा जिले से लेकर प्रखंड स्तर तक कुसहा त्रासदी से जुड़ी सभी फाइलों को बंद कर दिया गया.

किसी को कोई देखने सुनने वाला नहीं था

वर्ष 2008 के 18 अगस्त को नेपाल के कुसहा के समीप कोसी बांध टूटने के पांच दिन बाद 22 अगस्त की काली रात को बाढ़ की पानी ने भयंकर तबाही मचाते हुए इस इलाके में प्रवेश किया था. 23 अगस्त की सुबह से लोग अपने-अपने घरों को छोड़ जान-माल की हिफाजत के लिए सुरक्षित जगह के लिए निकल पड़े थे. उस समय कौन अपनों से बिछड़ा कौन कहां छूटा, किसी को होश नहीं रहा, जो निकल गये, वह भी अपनों के गम में परेशान थे, जो रह गये, वह पानी से घिरकर जिंदगी के जद्दोजहद से जूझ रहे थे. चारों तरफ सड़क संपर्क भंग हो चुका था. सरकारी स्तर से कहीं-कहीं नावों की मुक्कमल व्यवस्था की गयी थी, लेकिन वह भी कम पड़ चुका था. बेघर लोग भूख प्यास से परेशान थे. किसी को कोई देखने सुनने वाला नहीं था.

Also Read: कोसी का जलस्तर बढ़ते ही जायजा लेने सुपौल पहुंचे संजय झा, अधिकारियों और इंजीनियरों को दिए ये निर्देश

थोड़ी राहत अवश्य मिली थी

स्कूलों, ऊंचे-ऊंचे सार्वजनिक जगहों पर सरकारी तथा स्वयंसेवी संस्थाओं के द्वारा शिविर के माध्यम से बेघर लोगों को भोजन की व्यवस्था शुरू की गयी. राष्ट्रीय आपदा घोषित होने के बाद निजी संगठनों तथा संस्थाओं के द्वारा बाढ़ प्रभावित इलाकों में जाकर लोगों को खाने पीने से लेकर कपड़ा, दूध सहित अन्य राहत सामग्री मुहैया कराया गया. जिससे थोड़ी राहत अवश्य मिली. इसके बाद सरकारी स्तर से क्षेत्र के लगभग 27 हजार परिवारों को अनाज व राशि आपदा प्रबंधन राहत कोष से मुहैया कराया गया.

कुछ पंचायतों तक सिमट कर रह गयी पुनर्वास योजना

बाढ़ से प्रभावित लोगों को बिहार कोसी बाढ़ सम उत्थान परियोजना के तहत दिये जानेवाले कोसी पुनर्वास व पुनर्निर्माण योजना का लाभ कुछ पंचायतों तक ही सिमटकर रह गया. 11 पंचायतों में मात्र पांच पंचायत विशनपुर, गोलमा पूर्वी, गोलमा पश्चिम, पामा एवं पस्तपार पंचायत के 3231 लाभुकों को इस योजना के तहत भवन निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसमें से 3033 लाभुकों को ही राशि मुहैया करायी गयी. शेष आज भी उक्त लाभ से वंचित हैं.

गुनहगार को सरकार आज तक भी नहीं खोज सकी

कुसहा त्रासदी से प्रभावित हुए लोगों का आज भी कहना है कि मानव निर्मित त्रासदी के असली गुनहगार को सरकार आज तक भी नहीं खोज सकी है. सरकार द्वारा गठित वालिया जांच समिति की रिपोर्ट में कुसहा त्रासदी के जिम्मेदार पर आज तक कतिपय कारणों से कोई कार्रवाई नहीं किया जाना संदेह उत्पन्न करता है. कोसी की संरचनाओं को संवारकर सुंदर कोसी बनाये जाने का अब क्या होगा, यह अहम सवाल आज भी जिंदा है.

Also Read: Bihar Flood: कोसी ने दिए अनहोनी के संकेत तो लोगों को घर छोड़ने की हो रही अपील, बराज के 56 फाटक खोले गए

बंद हो गयी कुसहा त्रासदी से जुड़ी फाइलें

18 अगस्त 2008 का वह काला दिन जहां नेपाली प्रभाग के अंतर्गत कुसहा गांव के समीप लगभग दो किलोमीटर की लंबाई में तटबंध बह जाने से नेपाल के 34 गांव सहित कोसी के 441 गांवों की बड़ी आबादी बाढ़ की चपेट में आकर बह गया. बेकाबू कोसी जिधर से गुजरी, उधर सिर्फ पानी के साथ साथ बर्बादी ही बर्बादी ही नजर आया.

हरा भरा नजर आ रहा है कुसहा त्रासदी का जख्म

बेकाबू स्थिति पर तब के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोसी क्षेत्र में आयी प्रलयंकारी बाढ़ की चपेट में आये मृतक के परिजनों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन राहत कोष से एक लाख, मुख्यमंत्री आपदा प्रबंधन राहत कोष से एक लाख तथा राज्य आपदा प्रबंधन राहत कोष से 50 रुपये दिये जाने की घोषणा की थी. बावजूद आज भी यहां के क्षेत्रवासियों को कुसहा त्रासदी का जख्म हरा भरा नजर आ रहा है.

Next Article

Exit mobile version