नयी दिल्ली: हिंदीपट्टी के दो क्षेत्रीय दिग्गज जल्द ही रिश्तों की डोर में बंधनेवाले हैं. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के पोते के साथ राजद प्रमुख लालू प्रसाद की बेटी की होनेवाली शादी से दोनों परिवारों के बीच नजदीकी बढ़ने की संभावना है. कुछ समय पहले ही मुलायम सिंह के घर जनता परिवार के नेताओं ने भाजपा के खिलाफ मोरचा बनाने पर चर्चा की थी. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनता परिवार के सभी पार्टियों के बीच विलय की बात तक कही थी.
सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह के पोते और लालू प्रसाद की बेटी राजलक्ष्मी के बीच विवाह की बात तय हो चुकी है. हाल ही में तेज प्रताप मुलायम की छोड़ी गयी मैनुपरी सीट से लोकसभा का उपचुनाव जीत कर सांसद बने हैं.
तेजप्रताप मुलायम के भाई रणवीर सिंह के पुत्र है. सूत्रों के मुताबिक मुलायम के पोते तेज प्रताप और लालू की बेटी राजलक्ष्मी की सगाई दिसंबर में होगी, जबकि शादी फरवरी में. लोकसभा में सपा नेता रामगोपाल यादव से जब संवाददाताओं ने इस विषय में पूछा तो उन्होंने इसे पारिवारिक बात बताया. यह पूछने पर कि दो दलों के नेताओं के बीच होनेवाले इस संबंध का कोई असर पड़ेगा, उन्होंने कहा कि सुचेता और कृपलानी जी भी अलग-अलग दलों में थे. इसलिए परिवारिक रिश्ते और राजनीति अलग-अलग चीजें हैं.
कभी रिश्तों में थी खटास
1990 के दशक में पिछड़ों का स्वीकार्य नेता बनने के मुद्दे पर दोनों नेताओं के बीच मतभेद काफी मुखर हो गये थे. सार्वजनिक तौर पर सपा प्रमुख मुलायम इस बात पर दुख जता चुके हैं कि वर्ष 1997 संयुक्त मोरचा सरकार के दौर में लालू के विरोध के कारण ही वह प्रधानमंत्री नहीं बन सके. कांग्रेस के कारण देवगौड़ा को हटाये जाने के बाद मुलायम प्रधानमंत्री के सबसे प्रबल दावेदार थे, लेकिन लालू के विरोध के कारण इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने. तभी से दोनों नेताओं के रिश्तों में कड़वाहट आ गयी थी.
जनता परिवार की एकजुटता को मिलेगा बल
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और लोकसभा चुनावों में जनता परिवार के दलों की दयनीय स्थिति के मद्देनजर इस पारिवारिक संबंध से एक नयी राजनीति का सूत्रपात हो सकता है. कुछ समय पूर्व मुलायम के घर जुटे पूर्व जनता परिवार के सदस्यों ने इसके संकेत भी दिये थे. लेकिन दो प्रमुख क्षेत्रीय नेताओं के बीच पारिवारिक संबंध बनने के बाद इसे मजबूती मिलने की पूरी संभावना है. सूत्रों का कहना है कि जनता परिवार के सदस्यों के पास विकल्प सीमित हैं. कांग्रेस की मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए जनता परिवार का विलय एनडीए के लिए एक नयी राजनीतिक परेशानी का सबब बन सकता है. बिहार विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने इसे बल दिया है.