जैविक उत्पादों की अब होगी ब्रांडिंग
पटना: राज्य में जैविक खेती का विस्तार तेजी से हो रहा है. इस वर्ष 10779.96 हेक्टेयर में जैविक फसलों की खेती का लक्ष्य है. यह पिछले साल की तुलना में करीब 20 फीसदी ज्यादा है. लेकिन, न तो इसकी ब्रांडिंग हो रही है और न ही सर्टिफिकेशन होने से बड़े बाजारों या दूसरे राज्यों में […]
पटना: राज्य में जैविक खेती का विस्तार तेजी से हो रहा है. इस वर्ष 10779.96 हेक्टेयर में जैविक फसलों की खेती का लक्ष्य है. यह पिछले साल की तुलना में करीब 20 फीसदी ज्यादा है. लेकिन, न तो इसकी ब्रांडिंग हो रही है और न ही सर्टिफिकेशन होने से बड़े बाजारों या दूसरे राज्यों में इसका प्रवेश हो पा रहा है. अब इसके लिए कृषि विभाग ‘बिहार राज्य बीज और जैविक प्रामाणीकरण एजेंसी’ का गठन किया जायेगा. एजेंसी गठित करने की कार्ययोजना विभागीय स्तर पर पूरी कर ली गयी है. जल्द ही इस पर कैबिनेट की मुहर लगनेवाली है.
एजेंसी का हुआ गठन
एजेंसी के बेहतर संचालन के लिए 15 सदस्यीय बोर्ड ऑफ गवर्निग का गठन किया गया है. कृषि उत्पादन आयुक्त इसके प्रमुख होंगे. कृषि निदेशक, बीज प्रामाणिकरण अधिकारी समेत अन्य अधिकारियों के अलावा दो प्रगतिशील किसानों को बोर्ड में रखा जायेगा. वैसे दो किसानों का चयन किया जायेगा, जिन्होंने पहले जैविक उत्पादों को लेकर काम किया हो.
यहां हो रही जैविक खेती
राज्य में फिलहाल नालंदा में 941.63 और पटना में 50 हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक सब्जी का उत्पादन होता है. मुजफ्फरपुर में 1288.33 हेक्टेयर में जैविक लीची और टाल दियारा क्षेत्र में 8500 हेक्टेयर में अन्य जैविक चीजों की खेती होती है.
ऐसे काम करेगी एजेंसी
यह एजेंसी किसी कृषि उत्पाद को पूरी तरह से ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट देने में तीन साल का समय लेगी. किसी कृषि उत्पाद के जैविक होने पर उसे सी1 सर्टिफिकेट मिलेगा. इसके बाद उसे सी2 और तीसरे साल अंतिम सर्टिफिकेट ‘सीटी’ प्रदान किया जायेगा. इसके बाद संबंधित जैविक उत्पाद किसी भी बड़े बाजार या राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात करने के लिए तैयार हो जायेगा. बड़े बाजार में जैविक उत्पादों को बेहतर दाम भी मिल सकेगा.
क्या होगा फायदा
फिलहाल कोई किसान अपने जैविक उत्पाद को दूसरे राज्यों में बेचना चाहता है, तो उसे एपीडा या एपीइडीए (एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट एजेंसी) से प्रमाणीकरण लेना पड़ता है. यह केंद्र की एजेंसी है. इससे सर्टिफिकेट लेने की प्रक्रिया काफी पेचीदा होने की वजह से आज तक राज्य का कोई किसान या संस्थान इसे प्राप्त नहीं कर पाया है. बिहार की अपनी स्वतंत्र एजेंसी होने से यहां के जैविक उत्पादों को अच्छी पहचान मिलेगी और इनकी बिक्री बढ़ेगी.