सहरसा में पशुओं के स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर पशुपालकों की परेशानी बढ़ती जा रही है. खास कर बाढ़ की विभिषिका को देख सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालक पशुओं के स्वास्थ्य को लेकर सकते में है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिले के पशु अस्पतालों में लगभग 80 फीसदी डॉक्टर व कर्मचारियों के पद वर्तमान में खाली है. इस स्थिति में बीमार पशुधन के साथ पशुपालकों की चिंता लाजमी है.
बता दें कि वर्तमान में भारत में कृषि के साथ-साथ आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए पशुपालन को अपना कर किसान आर्थिक स्थिति को मजबूत कर देश को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन सुविधा नहीं मिलने और इलाज के अभाव में दम तोड़ने से पशुपालक पशुओं को पालने से अब परहेज करने लगे हैं. वर्तमान में जिला में 24 पशु चिकित्सालय हैं. जिसमें चिकित्सक व कर्मियों के अभाव को लेकर आठ पशु चिकित्सा केंद्र पर डॉक्टर नदारद हैं. दूसरी ओर जिले में पदस्थापित एक पशु चिकित्सक पर दो से तीन पशु चिकित्सा केंद्रों की जिम्मेदारी हैं.
विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिला में 2017 की पशुधन जनगणना के आंकड़ों पर गौर करें तो छह लाख 36 हजार पशुधन है. इसके इतर कुछ चिकित्सा केंद्रों पर चिकित्सकों की साप्ताहिक ड्यूटी रहती है. जिला मुख्यालय स्थित पशु चिकित्सा केंद्र में मात्र दो चिकित्सक तैनात हैं. इनके अलावा यहां संविदा पर एक सफाई कर्मी व बड़ा बाबू के अलावे कोई कर्मी नहीं है. पशु गर्भाधान केंद्र का भी हाल कर्मी के अभाव के कारण दयनीय है. डॉक्टर के रहने पर ही पशु गर्भाधान का लाभ पशुपालकों को मिल पाता है.
जिला समेत प्रखंड व मुख्यालय स्तर पर संचालित पशु चिकित्सा व्यवस्था का हाल बद से बदतर है. विभागीय स्तर पर अस्पतालों में एक साल से दवा की भी आपूर्ति नहीं की गयी है. बीते एक वर्ष से दवा की आपूर्ति नहीं होने से कई आवश्यक दवा भी केंद्र पर उपलब्ध नहीं है. पशुपालक को डॉक्टर इलाज के बाद मजबुरी में दवा लिख पर्ची थमा दवा बाजार से खरीदने के लिए भेज देते हैं. फिलहाल जिला मुख्यालय के 24 घंटा सेवा प्रदान करने वाली पशु चिकित्सालय में केवल नौ तरह की दवा निम्न मात्रा में उपलब्ध करायी गयी है. जो दो या तीन पशुओं को दिये जाय तो उसके बाद जिला मुख्यालय के अस्पताल में दवा नहीं उपलब्ध होगी.
पशु पालकों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च कर पशु चिकित्सालय का निर्माण कराया. बेहतर सुविधा मिल सके, इसके लिए कुछ जगहों पर संसाधन व सुविधाएं भी जुटाये. लेकिन डॉक्टरों की नियुक्तियां नहीं होने से पशु स्वास्थ्य सेवाएं राम भरोसे हो गयी है. विभाग के पास कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं रहने से लगातार परेशानियां बनी रहती है. नतीजतन बीमारियों से हर साल हजारों पशुधन दम तोड़ रहा है.
इस मामले को लेकर जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ. दिनेश कुमार जौनपुरी ने कहा कि जिले में पशु चिकित्सक के साथ कर्मियों की कमी है. जिसे लेकर लगातार समस्या बनी रहती है. इन समस्याओं के बाद भी पशु चिकित्सा व्यवस्था को सुदृढ़ रख जिला में पशुपालकों की परेशानी को दूर करने का प्रयास जारी है. आपूर्ति नहीं होने के कारण दवा की उपलब्धता नहीं रहती है. स्थानीय स्तर पर कुछ दवाओं की खरीद की गयी है. 33 प्रकार की दवाओं को सरकार के द्वारा खरीद करने को लेकर स्वीकृति मिली है. विभाग की पहल पर जल्द ही समस्याओं से जिला के पशुपालकों को निजात मिल जायेगी.