बिहार चुनाव : ‘दुलरूआ’ बेटों के मोह में फंसी राजनीतिक पार्टियां

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार नेताओं और उनकी पार्टियों पर परिवार का मोह साफ नजर आता है. टिकटों का बंटवारा हो या उम्मीदवारों का चयन यह मोह साफ नजर आता है. घोषणापत्र और मंच से लोगों के हित और सही उम्मीदवार को आगे बढ़ाने की बात करने वाले नेता परिवार और रिश्तेदारों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 24, 2015 4:20 PM

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार नेताओं और उनकी पार्टियों पर परिवार का मोह साफ नजर आता है. टिकटों का बंटवारा हो या उम्मीदवारों का चयन यह मोह साफ नजर आता है. घोषणापत्र और मंच से लोगों के हित और सही उम्मीदवार को आगे बढ़ाने की बात करने वाले नेता परिवार और रिश्तेदारों में किस तरह सिमट जाते हैं, बिहार चुनाव इसका उदाहरण पेश कर सकता है.

जरा बिहार के मुख्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों गौर करेंगे तो साफ पता चल जायेगा किस तरह परिवार की हिमायत की गयी है.अब लालू की पार्टी राजद को ही लें. लोकसभा चुनाव में बेटी मीसा भारती को सांसद बनाने का लालू पर ऐसा भूत सवार हुआ कि लालू अपने एक विश्वासी साथी को कुर्बान करने के लिए तैयार हो गये. बेटी तो सांसद नहीं बनी. विद्रोह का बिगुल बजाकर सहयोगी रामकृपाल पार्टी छोड़ गये और अब मोदी सरकार में मंत्री बन बैठे हैं. अब लालू यादव पर पुत्र मोह हावी हो गया है. बेटों को विधायक बनाने के लिए वे चुनाव लड़वा रहे हैं. कई विश्वासपात्रों के सपनों को दरकिनार कर लालू अपने बच्चों का भविष्य सेटल करना चाहते हैं. लालू ने एक बेटे को राघोपुर से मैदान में उतारा है वहीं दूसरे बेटे तेज प्रताप को महुआ सीट से मैदान में उतारा है.

यही हाल कमोबेश उनके साथी रहे लोजपा प्रमुख रामविलास की पार्टी का भी है. रामविलास की पार्टी को लोग बिहार में पहले ही छोटे परिवार की पार्टी बताकर हंसी-ठिठोली करते थे. अब तो बकायदा बॉलीवुड से फ्लाप हीरो का तमगा लेकर लौटे चिराग लोजपा के संसदीय बोर्ड के चेयरमैन हैं. पासवान ने अपने भाई पशुपति पारस के अलावा अपने भतीजे प्रिंस राज,अपनी संबंधी सरिता पासवान और विजय पासवान को भी टिकट दिया है. पासवान के टिकट वितरण और रिश्तेदारों की लिस्ट देखकर लगता है कि उन्होंने हम साथ-साथ हैं ज्यादा देखी है.

नीतीश कुमार से संबंधों की साख खराब होने के बाद बीजेपी के पाले में पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपनी पार्टी ‘हम’ के नाम को सार्थक करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. मांझी ने अपने पुत्र संतोष सुमन को सत्ता का स्वाद चखाने के लिए अपनी ही पार्टी की टिकट पर मैदान में उतारा है. वैसे भी मांझी डॉयलॉग इन दिनों राजकुमार की स्टाइल में बोले हैं. हम से है जमाना जमाने से हम नहीं.

अनुशासित और पार्टी के अंदर लोकतंत्र की बात कहने वाली बीजेपी में भी इसबार हम साथ-साथ हैं वाली बात साफ देखने को मिल रही है. बक्सर से पार्टी के सांसद अश्विनी चौबे ने अपने बेटे अरिजीत शाश्वत को टिकट दिलाया है. जबकि बीजेपी बिहार के एक और वरिष्ठ नेता सीपी ठाकुर ने अपने बेटे विवेक ठाकुर को ब्रम्हपुर से टिकट दिलवाया है. भले ही पार्टी ने वर्तमान विधायकों का टिकट काट दिया हो. लेकिन पार्टी के दुलरूआ नेताओं के बेटों की इच्छा का ख्याल रखा गया है.

टिकट बंटवारे के बाद से सभी पार्टियों को कार्यकर्ताओं के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. पार्टियों पर पैसे लेनदेन का आरोप के साथ धांधली के आरोप को सभी पार्टियां झेल रही हैं. लेकिन सवाल है कि हम साथ साथ का असर इतना ज्यादा है कि नेता क्या करें. नीतीश कुमार स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन उन्हें हर मोर्चे पर लालू के इशारे का ख्याल रखना पड़ रहा है. क्योंकि अब उन्हें भी साथ रखना है.

किसी ने सच ही कहा है सत्ता के लिए सिद्धांत के साथ समझौता ही वर्तमान राजनीति की सटीक परिभाषा है. सेवा और नैतिकता से दूर बिहार की सियासत में सिद्धांत कहीं नहीं दिखता. किसी पार्टी के अंदर झांककर देख लें. सभी पार्टियां परिवारवाद और स्व-स्वार्थ से ग्रसित हैं.

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