मुजफ्फरपुर: आजादी के वक्त आये थे दो सौ परिवार अब हैं मात्र 65

मुजफ्फरपुर: शहर से पंजाबी समुदाय के लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. जीवन की आधी उम्र गुजारने के बाद अब यह शहर हालात के चलते इनके लिए बेगाना होता जा रहा है. वजह है, सिख समुदाय के लोग खुद को महफूज नहीं समझ रहे हैं. हालांकि हाल के सालोंमेंऐसा कोई बड़ा मामला देखने को नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 10, 2013 9:25 AM

मुजफ्फरपुर: शहर से पंजाबी समुदाय के लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. जीवन की आधी उम्र गुजारने के बाद अब यह शहर हालात के चलते इनके लिए बेगाना होता जा रहा है. वजह है, सिख समुदाय के लोग खुद को महफूज नहीं समझ रहे हैं. हालांकि हाल के सालोंमेंऐसा कोई बड़ा मामला देखने को नहीं मिला है, जिसमें पंजाबी समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया है, लेकिन इसके बाद भी इनके मन में डर समाया हुआ है, जो इन्हें अपनी जन्मभूमि से दूर जाने को विवश कर रहा है. इस समय हर माह एक से दो पंजाबी परिवार शहर छोड़ कर जा रहे हैं, लेकिन कम ही लोगों को इसकी भनक लग पाती है.

उदासीनता बनी कारण
पंजाबी समुदाय के शहर छोड़ने के पीछे सरकारी उदासीनता भी बनी है. 1984 में दंगा पीड़ितों को अब तक मुआवजा नहीं मिलने से पंजाबी समुदाय दुखी है. बिहार गुरुद्वारा कॉर्डिनेशन कमेटी के संयोजक योगेंद्र सिंह गंभीर कहते हैं, देश की आजादी के बाद जो लोग पाकिस्तान छोड़कर दूसरे राज्यों में गये थे. वहां की सरकार ने उन्हें पाकिस्तान गये मुसलिम लोगों के घर व जमीन उनके नाम की, लेकिन बिहार में आये लोगों को कुछ नहीं मिला. अन्य राज्यों में रह रहे पंजाबी समुदाय के लोग, जिनकी घर व संपत्ति पाकिस्तान में पड़ गयी. राज्य सरकारों ने उन्हें मुआवजा दिया, लेकिन बिहार में ऐसे लोगों को मुआवजा भी नहीं मिला. आजादी के 66 वर्ष बाद भी पंजाबी समुदाय को सरकारी मदद के बजाय भय का माहौल ही मिला. यही इनके पलायन की वजह है.

145 परिवारों का पलायन
आजादी के बाद पश्चिमी पाकिस्तान से छोड़ कर यहां करीब 200 पंजाबी परिवार आये थे, लेकिन अब इनमें 65 परिवार ही बचे हैं. करीब 145 परिवार यहां से वापस दिल्ली व पंजाब लौट गये. इनका यह 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद शुरू हुआ था. उस वक्त शहर में भी पंजाबी समुदाय के लोगों के साथ लूटपाट हुई थी. उसके बाद से ही पंजाबी समुदाय यहां से वापसी का मन बनाने लगे थे. बाद के दिनों में अपराधियों के खौफ ने भी उन्हें यहां से सब कुछ समेटने को विवश कर दिया. शहर की मशहूर कोचिंग सेंटर के संचालक व गुरुद्वारा कमेटी के एक सदस्य भी पलान की तैयारी में हैं. ऐसा कहा जा रहा है, दोनों परिवार अगले महीने मुजफ्फरपुर से चले जायेंगे.

बोरा बेच शुरू की जिंदगी
1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से यहां आये दो सौ परिवारों को पास अपना कुछ नहीं था, ज्यादातर सिख परिवारों के हाथ खाली थे. चल व अचल संपत्ति छूट चुकी थी. उस समय साहू पोखर के पास गुरुद्वारा थी. पंजाबी परिवारों को वहीं शरण मिली थी. इन लोगों में से कुछ लोग, जो थोड़ा सोना लेकर आये थे. उन्होंने छोटा-मोटा व्यवसाय शुरू किया, लेकिन ज्यादातर लोगों ने बोरा व पाचक बेच कर नये जीवन की शुरुआत की. यहां आये 40 परिवारों को बिहार सरकार ने कलमबाग रोड स्थित रिफ्यूजी कॉलोनी बना कर बसाया. बचे हुए लोग किराये का घर लेकर रहने लगे. ये लोग अपनी मेहनत से आगे बढ़े. पूंजी जमा कर नया व्यवसाय शुरू किया. पंजाबी समुदाय हर ट्रेड में अपनी पहचान बनायी. कोचिंग, कपड़ा, मोटर पार्ट्स, ट्रांसपोर्ट, टेंट हाउस व होटल के क्षेत्र में इनकी खासी पहचान बनी, लेकिन 1984 के दंगे व अपराधियों के निशाने पर आने के कारण इन लोगों ने अपना कारोबार समेटना शुरू किया.

अपराधियों के निशाने पर
पिछले तीन दशक से शहर के पंजाबी परिवार अपराधियों के निशाने पर रहे हैं. शहर में पिछले तीन दशकों में छह सिखों की हत्या हुई. इनमें काका मोटर्स के संचालक नरेंद्र बोहरा के बेटे, खुराना साइकिल स्टोर्स के संचालक, मोटर पार्ट्स व्यवसायी पप्पू सरदार, पाल हार्डवेयर के मालिक के बेटे महेंद्र सिंह, दीपक होटल के संचालक योगेंद्र सिंह व रामा हार्डवेयर के प्रोपराइटर की हत्या कर दी गयी. दीपक होटल में हरभजन सिंह व उनकी पत्नी को पीटा गया था. इसके अलावा इस्लामपुर में प्लास्टिक के सामान की दुकान चलानेवाले सुरेंद्र सिंह से रंगदारी की मांग की गयी.

बेच रहे पैतृक संपत्ति
जो पंजाबी परिवार शहर से जा रहे हैं. वह यहां का अपना घर व अन्य सामान बेच रहे हैं. वह अपने पूर्वजों की कोई भी निशानी शहर में नहीं रखना चाहते हैं. नाम न छापने की शर्त पर एक परिवार ने कहा, जब हम सही सलामत रहेंगे तो तमाम प्रापर्टी बना लेंगे. अपने पुरखों का बनाया घर छोड़ कर जाने का मन नहीं होता, लेकिन हमारे पास कोई चारा नहीं है.

तीन वर्ष में शहर छोड़ने वाले प्रमुख परिवार

जसवंत सिंह, पोशाक ड्रेसेज, बाटा के सामने, मोतीझील

महेंद्र सिंह, रंजीत कोल्ड स्टोरेज, काली कोठी

कुलदीप सिंह, कपड़ा व्यवसायी, मोतीझील

मेहताप सिंह, मोटर्स पार्ट्स व्यवसायी, बैरिया

महेंद्र सिंह गोगिया, मोटर्स पार्ट्स व्यवसायी, छोटी सरैयागंज

पप्पू गोगिया, गोगिया मशीनरी, जवाहर लाल रोड

मंजीत सिंह गोगिया, मोटर्स पार्ट्स, व्यवसायी, जवाहर लाल रोड

अवतार सिंह, गुजराल एंड कंपनी, जवाहर लाल रोड

नरेंद्र बोहरा, काका मोटर्स, जवाहर लाल रोड

महेंद्र सिंह, तंदूर होटल, जवाहर लाल रोड

पिंकी कौर, बुटीक दुकान, हरिसभा

चंदर राकेश, राकेश टेक्सटाइल्स सूतापट्टी

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