मुंसिफ अब सब जज कहलायेंगे
पटना: व्यवहार न्यायालय के मुंसिफ अब सब जज कहलायेंगे. विधानसभा में मंगलवार को ‘बंगाल, आगरा एवं असम व्यवहार न्यायालय (बिहार संशोधन) विधेयक, 2013’ पारित कर दिया. इसके साथ ही सदन में ‘ बिहार प्रत्यायोजित विधान उपबंध विधेक 2013’ भी पारित कर दिये गये. विधेयकों को विधि मंत्री नरेंद्र नारायण यादव ने सदन की सहमति के […]
पटना: व्यवहार न्यायालय के मुंसिफ अब सब जज कहलायेंगे. विधानसभा में मंगलवार को ‘बंगाल, आगरा एवं असम व्यवहार न्यायालय (बिहार संशोधन) विधेयक, 2013’ पारित कर दिया. इसके साथ ही सदन में ‘ बिहार प्रत्यायोजित विधान उपबंध विधेक 2013’ भी पारित कर दिये गये. विधेयकों को विधि मंत्री नरेंद्र नारायण यादव ने सदन की सहमति के लिए पेश किया.
जिसे सदन ने ध्वनि मत से पारित कर दिया. बंगाल, आगरा एवं असम व्यवहार न्यायालय संशोधन विधेयक, 2013 पेश करते हुए विधि मंत्री नरेंद्र नारायण यादव ने सदन को बताया कि पूर्व के दीवानी न्यायालयों के नाम में परिवर्तन किया गया है. सब जज व मुंसिफ को असैनिक न्यायाधीश वरीय कोटि व असैनिक न्यायाधीश कनीय कोटि बनाया गया है. पूर्व में ऐसी अदालतों को 30 हजार तक के मामले सुनने का अधिकार था, जिसे बढ़ा कर अब डेढ़ लाख कर दिया गया है. इससे वादों की संख्या में कमी आयेगी. जिला जज को दो लाख की जगह 10 लाख तक के मुकदमे सुनने का अधिकार होगा. हाइकोर्ट में 10 लाख से अधिक के मामले ही जायेंगे.
विधेयक पर अरुण शंकर प्रसाद ने जनमत जानने का प्रस्ताव पेश किया. उनका कहना था कि यह महत्वपूर्ण विधेयक किसानों से जुड़ा हुआ है. इस विधेयक पर जनमत लेने का लाभ होगा कि पुन: इसे दोबारा लाने की नौबत नहीं आयेगी. जनमत से जो गंभीर सुझाव आयेंगे, उनका लाभ मिलेगा. सरकार को जल्दीबाजी में विधेयक लाने की जगह 31 दिसंबर तक इसे प्रचारित-प्रसारित करने का मौका दिया जाये. उनके इस प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया गया.
भाजपा ने दी प्रवर समिति को सौंपने की सलाह
इसके बाद भाजपा के विनोद नारायण झा ने विधेयक को संयुक्त प्रवर समिति को सौंपने का प्रस्ताव पेश किया. उनका तर्क था कि तीन माह तक प्रवर समिति इस पर विचार कर उचित सुझाव देगी. वर्ष 2010 में एक विधेयक लाया गया था और पुन: इसे लाने की आवश्यकता पड़ गयी है. सेट्ठी कमेटी की अनुशंसा के आलोक में अलग-अलग राज्यों ने अपने-अपने विधेयक तैयार किये.
साथ ही उनका सुझाव था कि सिविल जज के लिए कोई सम्यक शब्द को ढूंढ़ा जाये. उन्होंने कहा कि अक्सर अदालतों में अंगरेजी में फैसला होता है. ऐसे में सामान्य जनता को कोर्ट की भाषा समझ में नहीं आती. सरकार को हिंदी में फैसला देने की व्यवस्था करनी चाहिए. साथ ही हिंदी,भोजपुरी व मैथिली में वकीलों को बहस कराने का प्रावधान किया जाना चाहिए. उनके प्रस्ताव को भी सदन ने अस्वीकृत कर दिया. इस विधेयक को लेकर दुर्गा प्रसाद सिंह और विनोद नारायण झा के संशोधन प्रस्ताव को भी अस्वीकृत कर दिया गया.