कहां गये पांच करोड़!

– नरेंद्र – पटना : बिहार राज्य पुलिस भवन निर्माण निगम के कार्यपालक अभियंता ने सवा दो साल पहले पंजाब नेशनल बैंक से वहां के कर्मियों की मिलीभगत से लगभग एक करोड़ की फर्जी निकासी करने की प्राथमिकी दरभंगा के बहादुरपुर थाने में दर्ज करायी थी. दो साल में जांच के नाम पर सिर्फ एसएसपी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 6, 2014 6:34 AM

– नरेंद्र –

पटना : बिहार राज्य पुलिस भवन निर्माण निगम के कार्यपालक अभियंता ने सवा दो साल पहले पंजाब नेशनल बैंक से वहां के कर्मियों की मिलीभगत से लगभग एक करोड़ की फर्जी निकासी करने की प्राथमिकी दरभंगा के बहादुरपुर थाने में दर्ज करायी थी.

दो साल में जांच के नाम पर सिर्फ एसएसपी की सुपरविजन रिपोर्ट सरकार को मिली है, लेकिन अब तक आरोपित बैंक कर्मी व अन्य पुलिस की पकड़ से बाहर हैं. दूसरी घटना हाल ही में पटना समाहरणालय की है, जहां से चार करोड़ की फर्जी निकासी की गयी. कार्रवाई के नाम पर नाजिर को निलंबित कर उसे जेल भेज दिया गया. दोनों ही मामलों में अब तक सरकार को जांच रिपोर्ट का इंतजार है. वित्त विभाग हर दो माह पर पुलिस मुख्यालय व गृह विभाग को जांच रिपोर्ट देने के लिए अनुरोध पत्र भेजता है, पर अब तक उसे रिपोर्ट नहीं मिली है.

एजी की रिपोर्ट से भी खुलासा : वित्त विभाग के अधिकारियों के अनुसार दरभंगा स्थित बिहार राज्य पुलिस भवन निगम के कार्यपालक अभियंता ने बहादुरपुर थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी थी. उसमें कहा गया था कि निगम का पंजाब नेशनल बैंक की लहेरियासराय शाखा में खाता है.

खाता संख्या 2407000100047988 से चार चेक विभिन्न तिथियों में जारी किये गये थे. इनमें 98.20 लाख रुपये की राशि सन्निहित थी. चेक प्रवीण कुमार व राजीव कुमार के नाम से जारी किये गये थे. प्रवीण कुमार जब उस चेक को मधेपुरा में भुनाने गया, तो पता चला कि उस चेक का भुगतान एनइपीजेड फेज दो नोएडा शाखा में हो चुका है.

इसी तरह, राजीव कुमार जब लहेरियासाय शाखा में चेक भुनाने गये, तो पता चला कि उस चेक की राशि का भुगतान दिल्ली की प्रीत विहार शाखा से हो चुका है. बाद में इसका खुलासा एजी की अंकेक्षण रिपोर्ट से भी हुआ.

अब तक नहीं आयी है जांच रिपोर्ट : पुलिस भवन निर्माण निगम मुख्यालय के निर्देश पर कार्यपालक अभियंता बाबूलाल प्रसाद ने तीन सितंबर, 2011 को बहादुरपुर थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी. इसमें बैंक प्रबंधन समेत कई अन्य को नामजद किया गया. तफतीश में भी यह बात सामने आयी कि बैंककर्मियों की मिलीभगत से ही राशि का भुगतान हुआ.

कार्यपालक अभियंता के दस्तखत को जांच के लिए फॉरेसिंक लैब में भेजा गया था, जहां से अब तक रिपोर्ट नहीं मिली है. अब सवाल उठ रहा है कि जब पुलिस बैंककर्मियों की भूमिका संदिग्ध मान रही है, तो वह उनके खिलाफ आगे की कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है? एसएसपी की सुपरविजन रिपोर्ट में अब भी यही कहा जा रहा है कि मामले की जांच और गहराई से करना जरूरी है.

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