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बौद्ध धर्म दुनिया को अनुपम भेंट

बिहारशरीफ (नालंदा). बिहार की ओर से दुनिया को बौद्ध धर्म, संस्कृत, वैष्णव मत आदि अनुपम भेंट है. पूर्व से ही बिहार का विश्व से ऐतिहासिक संबंध रहा है. ये बातें प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के संग्रहालय परिसर में यूनिवर्सिटी ऑफ नालंदा द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान बुधवार को अमेरिका मिन्टोसा विश्वविद्यालय के विद्वान फेडरिक एम […]

बिहारशरीफ (नालंदा). बिहार की ओर से दुनिया को बौद्ध धर्म, संस्कृत, वैष्णव मत आदि अनुपम भेंट है. पूर्व से ही बिहार का विश्व से ऐतिहासिक संबंध रहा है. ये बातें प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के संग्रहालय परिसर में यूनिवर्सिटी ऑफ नालंदा द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान बुधवार को अमेरिका मिन्टोसा विश्वविद्यालय के विद्वान फेडरिक एम असर ने कहीं.
उन्होंने कहा कि थाईलैंड, म्यांमार, वियतनाम, कंबोडिया, जावा जैसे पूर्वी और दक्षिणी एशिया के देशों ने भारत से न केवल वस्तुओं का व्यापार किया बल्कि सच्चे अर्थो में ज्ञान का व्यापार किया. यही कारण है कि विश्व ने इसे विश्व गुरु की संज्ञा दी. यूनिवर्सिटी ऑफ नालंदा की कुलपति गोपा सभरवाल के नेतृत्व में आयोजित इस सम्मेलन में भारत के अलावा 12 देशों के विद्वान शामिल हुए. यूनिवर्सिटी ऑफ नालंदा के डीन डॉ अंजना शर्मा ने कहा कि आठ वर्षो तक विश्व को ज्ञान का पाठ पढ़ानेवाला प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की गरिमा को फिर से जीवंत किया जा रहा है. इसके लिए राजगीर के पास यूनिवर्सिटी ऑफ नालंदा का निर्माण किया जा रहा है. इसी साल से यहां पर्यावरण और इकोलॉजी की पढ़ाई शुरू की जायेगी. विश्व के विद्वानों ने सांस्कृतिक विरासत को संजोने पर अपने सभी पूर्वाग्रहों से हट कर चर्चा की. प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय, कोलकाता के सहायक प्राध्यापक श्रवण मुखर्जी ने बिहार के विभिन्न भागों से उत्खनन के दौरान प्राप्त बौद्ध एवं हिंदू संस्कृति के संदर्भ में चर्चा की. दिल्ली विश्वविद्यालय के दिवाकर सिंह ने कहा कि नालंदा की शानदार परंपरा मे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अलावा कई स्थानों की अहम भूमिका है. हेमिल्टन कॉलेज, यूएसए के अभिषेक एस अमर ने कहा कि अभिलेख या अन्य पुरातत्व की वस्तुएं उन लोक विचारों से जुड़ी होती है, जिसके माध्यम से स्थानीय लोग अपनी सुविधा के अनुसार उसे परिभाषित करते हैं. गया की महत्ता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पूर्व में यह स्थान वैष्णव मत का महत्वपूर्ण केंद्र था. सम्मेलन की समाप्ति के बाद सभी विद्वानों ने पुरातात्विक संग्रहालय एवं प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के भगAावशेष का अवलोकन किया.

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