सपना अभी भी!

-दर्शक- कहीं भी सुन सकते हैं, इस निराश माहौल में कुछ नहीं हो सकता. भविष्य अंधकारमय है. बिहार की हालत ! भगवान ही मालिक है. वगैरह-वगैरह. पर जीवन, घुटती निराशा में संभव नहीं. समाज या राष्ट्र इस माहौल में टिक नहीं सकते. सही है कि रहनुमाई करनेवालों के पापों और चरित्र से लोग उम्मीद खो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 4, 2016 4:28 PM

-दर्शक-

कहीं भी सुन सकते हैं, इस निराश माहौल में कुछ नहीं हो सकता. भविष्य अंधकारमय है. बिहार की हालत ! भगवान ही मालिक है. वगैरह-वगैरह. पर जीवन, घुटती निराशा में संभव नहीं. समाज या राष्ट्र इस माहौल में टिक नहीं सकते. सही है कि रहनुमाई करनेवालों के पापों और चरित्र से लोग उम्मीद खो बैठे हैं. पर जीवन का एक दूसरा लक्ष्य भी है. यह लय, पानी के प्रबल वेग जैसा है. घोर अंधेरे में भी कोई किरण दिखाई देने लगती है. जहां रास्ते बंद दिखते हैं, वहां से एक नया क्षितिज चमकने लगता है.

एक तरफ बिहार के राजनीतिज्ञ हैं. घोर भ्रष्ट और भविष्य बंधक बनानेवाले. अक्षम सरकार है. दृष्टिहीन विपक्ष है. प्रशासन-पुलिस का वजूद नहीं है. कहीं सृजन-रचना का माहौल नहीं है. समाज को जीवंत रखनेवाली संस्थाएं असमय मर गयी हैं. आबोहवा में चाटुकारिता, भ्रष्टाचार और अपराध के गंध हैं. पूरा समाज मानो अपराधियों, अक्षम-भ्रष्ट नेताओं और नाकाबिल प्रशासन-पुलिस की गिरफ्त में है. शिक्षण संस्थाएं खत्म हो गयी हैं. ऐसे नकारात्मक माहौल में भी बिहार में (खास तौर से छोटानागपुर में) रोशनी चमक रही है.

रांची आज सीबीएसइ और आइसीएसइ पाठ्यक्रम में देश के नक्शे पर अपनी सफलता के निशान छोड़ रहा है. 12वीं कक्षा तक रांची, बोकारो, जमशेदपुर देश के पैमाने पर चमक रहे हैं. बिहार को रहनुमाओं ने बदनाम किया है. कर्णधारों ने बंद दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया है. पर उस बंद दरवाजे में सुराख बना कर ताजी हवा के झोंके लानेवाले संस्थानों का अभिनंदन करिए. रांची के मशहूर स्कूलों, मसलन डीएवी (श्यामली), डीपीएस, लॉरेटो, डीएवी (हेहल), सेक्रेड हार्ट, सेंट थॉमस, संत जेवियर्स, संत अंथोनी वगैरह के प्राध्यापकों और प्रिंसिपलों का सार्वजनिक अभिनंदन करिए.

आइआइटी या मेडिकल की अखिल भारतीय परीक्षाओं में रांची के छात्र जो अपनी विशिष्ट जगह बना रहे हैं, उच्च स्थान पा रहे हैं, उसके लिए उन अध्यापकों-संस्थाओं का गौरव बढ़ाइए, श्यामला श्रीनिवास जैसी महिला, एके सिंह, तपन भट्टाचार्य, एम बनर्जी, प्रत्युष सिन्हा, प्रकाश नारायण जैसे अध्यापकों (ऐसे काम अनेक अध्यापक कर रहे हैं) को वह सम्मान दीजिए, जो कभी इस देश में रहनुमाओं को मिलता था. इन्हें सम्मान इसलिए दीजिए कि 21वीं शताब्दी की तकनीकी दुनिया में बिहार और भारत का भविष्य बनाने में इनका अमूल्य योगदान है.

यह सचमुच सृजन धर्म है. उत्पादक श्रम और काम है. ये समुद्र में भटक गये जहाज (बिहार) के लिए आकाश द्वीप हैं. ये लगातार कई-कई घंटे पूरे दिन-रात तक श्रम करते हैं. बच्चों के साथ खटते हैं. जिन रहनुमाओं के रहन-सहन, सुरक्षा पर करोड़ों-अरबों का सरकारी खर्च (हमसे-आपसे वसूले गये टैक्स से) हो रहा है, वे उत्पादक काम नहीं करते. विधानमंडल, लोकसभा में उनका प्रदर्शन देख कर शर्म आती है. वे देश को कर्ज में डुबो चुके हैं. जाति-धर्म में बांट चुके हैं. अपनी अक्षमता (इनइफिशियेंसी), अकुशलता और पाखंड से बिहार को बदनाम कर चुके हैं. जिस दिन समाज में इन भ्रष्ट राजनेताओं और कुपात्र नौकरशाहों का सम्मान घट जायेगा, उनके प्रति नफरत बढ़ेगी, उनकी अकर्मण्यता-अकर्म की सजा उन्हें तिरस्कार के रूप में मिलेगी और उसकी जगह ऐसे सात्विक काम करनेवाले लोगों की मर्यादा बढ़ेगी, बिहार का भविष्य निखर जायेगा. कोशिश यह हो कि रांची के इन स्कूलों का बिहार के अन्य स्कूल अनुकरण करें, इन संस्थाओं को घटिया राजनीति और भ्रष्ट नेताओं के साये से दूर रखने का काम समाज करे. अन्यथा नेताओं-अफसरों के प्रभाव में ये संस्थाएं बिहार के उच्च शिक्षा संस्थानों जैसी हो जायेंगी. बिहार का बनता भविष्य खतरे में पड़ जायेगा.

वर्षों पहले जापान में पढ़नेवाले एक मित्र ने अपना अनुभव सुनाया था. वहां अध्यापकों को ‘साइंटिस्ट’ श्रेणी में रखा जाता है. उन्हें एक खास पहचान दी जाती है. अगर वे वह प्रतीक धारण करते हैं, तो पहले किसी भी सार्वजनिक जगह-दुकान पर उनको सम्मान-महत्व मिलेगा. उनका काम होगा. उन्हें विशेष रियायत मिलती है. प्रधानमंत्री की बगल में रहें, तो पढ़ानेवालों को पहले महत्व मिलेगा. रांची के जिन अध्यापकों-संस्थाओं ने रांची का नाम रौशन किया, उन्हें यह महत्व तो यह नाकाबिल व्यवस्था नहीं दे सकती, पर समाज उन्हें आदर-महत्व की दृष्टि से देखने लगे, तो बहुत फर्क पड़ेगा. सत्ता और पैसे को जो सार्वजनिक महत्व मिल रहा है, वह धारा शिक्षकों-अच्छा करनेवालों की ओर मुड़ जाये, तो बिहार का भविष्य बदल जायेगा.

भविष्य एक और रास्ते बदलेगा

बिहार के वर्तमान को बदलने के लिए जो संघर्ष हो रहा है, उसे समर्थन दें. पटना में 22 वर्षों बाद पहली बार एक व्यक्ति श्याम किशोर शर्मा के प्रयास से बड़े पैमाने पर नालों वगैरह की सफाई चल रही है. पटना उच्च न्यायालय और ‘श्याम किशोर के ‘एकला चलो रे’ अभियान से यह संभव हुआ है. इसलिए बिहार के ‘श्याम किशोरों’ को (जो अलग-अलग अकेले संघर्षरत हैं) पूरा समर्थन मिले, तो निश्चित रूप से झिलमिलाती रोशनी बढ़ेगी. बिहार का भविष्य बदलेगा.

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